वात दोष क्या है : असंतुलित वात से होने वाले रोग, लक्षण और उपाय। vaat rog kya hai karan, lakshan aur upchar


 


वात, पित्त और कफ इन दिनों में वा, प्रमुख है। पित्त और कफ वात के सहयोग से सक्रिय होते हैं। हमारे शरीर में वापांच स्थानों पर पांचो नामों से जानी जाती है।

1)    जैसे उदान वायु कंठ में रहती है।  

2)    प्राणवायु ह्रदय व इससे ऊपरी भाग में रहती है

3)    समान वायु आमाशय और बड़ी आंत में रहती है।  

4)    अपान वायु बड़ी आंत से मलाशय तक रहती है।  

5)    व्यान वायु जो पूरे शरीर में व्याप्त रहती है ।



हमारे शरीर में वायु का प्रमुख स्थान पक्वाशय है। वायु को कुपित होना ही वात रोग कहलाता है ।



वात रोग के कारण :-  

अमाशय, पकवाशय और मलाशय में वायु के प्रकोप हो जाने के कारण अपच होती है, अपच के कारण अजीर्ण होता है। अजीर्ण के कारण कब्ज होता है और इन सब कारणों से गैस बनती है। गैस का बढ़ना व बनना वायु रोग का प्रमुख कारण है। इस कारण जिनको कब्ज की शिकायत होती है उन्हें वात रोग अधिक होता है। नियमित उचित आहार-विहार द्वारा इसे बचा जा सकता है।  



वात रोग के लक्षण:-

पेट फूलना, पेट का भारी होना, शरीर में दर्द रहना, सभी जोड़ों में दर्द रहना, मुंह का बार-बार सूखना, शरीर में खुश्की व रूखापन होना, त्वचा का रंग मलिन होना, शरीर में जकड़न और दर्द का एहसास, सिर का भारीपन व सिर दर्द होना, डकार या हिचकी आना आदि प्रमुख लक्षण है। 



वात रोग के प्रकार :-


संधिवात - आंतों में संचित विश से शरीर के जोड़ जब रोग ग्रस्त होते हैं उसे हम संधिवात कहते हैं ।



आमवातयह सामान्यता बुखार होने से शुरू होता है । बुखार के साथ-साथ जोड़ों में दर्द एवं सूजन उत्पन्न होती है, फिर संधियों में पानी भर जाता है, सुबह उठते ही हाथ पैरों में अकड़न महसूस होती है एवं जोड़ों में भयंकर दर्द होता है, कुछ दिनों बाद दर्द और सूजन में कमी आती है परंतु जोड़ों के टेड़े-मेड़े होने से अंगों की आक्रति बिगड़ जाती है।  




गठियाइस रोग में संधि के चारों जोड़ों में ढकने वाली लचीली हड्डियां 
घिस जाती है एवं अस्थियों के पास से ही एक नई अस्थि निकलनी शुरू हो जाती है। जांघों और घुटनों के जोड़ों पर इस रोग का अधिक प्रभाव होता है


गाउट - वात रोगों में यह सबसे कष्टप्रद रोग है, यह रक्त में यूरिक एसिड की वृद्धि होकर संधियों में संचित होने से होती है। हमारे शरीर में प्रोटीन से यूरिया उत्पन्न होता है, परंतु किसी कारण जब यूरिया शरीर के भीतर ल नहीं पाता तब वह जोड़ों में इकट्ठा होने लगता है, बाद में यही पथरी रोगों का कारण बनता है। 



मांसपेशियों में वेदना - इस रोग में गर्दन, कमर, बगल, आंख, ह्रदय आदि शरीर की किसी भी मांसपेशी में दर्द उत्पन्न हो जाता है। दर्द होने पर रोगी को ऐसा महसूस होता है जैसे उस स्थान को किसी भारी वस्तु से दबाया गया हो, रोगी उठते बैठते बहुत दर्द महसूस करता है ।



वात बढ़ने के कारण 

जब आयुर्वेदिक चिकित्सक आपको बताते हैं कि आपका वात बढ़ा हुआ है तो आप समझ नहीं पाते कि आखिर ऐसा क्यों हुआ है? दरअसल हमारे खानपान, स्वभाव और आदतों की वजह से वात बिगड़ जाता है। वात के बढ़ने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।



  • मल-मूत्र या छींक को रोककर रखना
  • खाए हुए भोजन के पचने से पहले ही कुछ और खा लेना और अधिक मात्रा में खाना
  • रात को देर तक जागना, तेज बोलना
  • अपनी क्षमता से ज्यादा मेहनत करना
  • सफ़र के दौरान गाड़ी में तेज झटके लगना
  • तीखी और कडवी चीजों का अधिक सेवन
  • बहुत ज्यादा ड्राई फ्रूट्स खाना
  • हमेशा चिंता में या मानसिक परेशानी में रहना
  • ज्यादा सेक्स करना
  • ज्यादा ठंडी चीजें खाना
  • व्रत रखना

ऊपर बताए गये इन सभी कारणों की वजह से वात दोष बढ़ जाता है। बरसात के मौसम में और बूढ़े लोगों में तो इन कारणों के बिना भी वात बढ़ जाता है।







वात रोगों में प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा उपचार-



1, रोगी को 2 से 4 दिन तक केवल रस आहार दे। रस आहार में संतरा, मौसमी, अंगूर, नींबू, शहद दिन में तीन चार बार दे।  

2, रस हार के बाद एक-दो दिन फलाहार दें।

3, खाने में कैल्शियम फास्फोरस की कमी से हड्डियां कमजोर हो जाती है, इस कारण दूध, पालक, टमाटर, गाजर व ताजी सब्जियां अधिक खानी चाहिए ।  

4, कच्चा लहसुन वात रोगी के लिए रामबाण औषधि है, रोजाना दो से 4 कलियां भोजन के साथ अवश्य लें 

5, चोकर युक्त रोटी, अंकुरित हरे मूंग व सलाद भरपूर खाएं ताकि पर्याप्त मात्रा में रेशे मिल सके।

6, मेथी दाना ½ चम्मच थोड़ी सी अजवाइन रोज खाएं।



व्यायाम :-

सुबह-शाम खुली हवा में गहरी सांसे लेनी चाहिए ताकि ऑक्सीजन अधिक मिल सके।  

रोजाना प्रत्येक संधियों को चलाना व घुमाना चाहिए ।



मालिश :-

मालिश के लिए तिल का तेल सर्वोत्तम होता है।  

मालिश सुबह की धूप में ही करनी चाहिए। धूप वात रोगियों के लिए उत्तम टॉनिक है।

तिल के तेल में दो-तीन कली लहसुन और थोड़ी सी अजवाइन डालकर गर्म करें, ठंडा होने पर छानकर बोतल में रखे व रोजाना संधियों पर मालिश करें, इस प्रकार संयमित जीवन एवं प्राकृतिक चिकित्सा के कुछ उपचार द्वारा रोगी शीघ्र ही स्वास्थ्य लाभ करता है।



वात को संतुलित करने के उपाय 

वात को शांत या संतुलित करने के लिए आपको अपने खानपान और जीवनशैली में बदलाव लाने होंगे। आपको उन कारणों को दूर करना होगा जिनकी वजह से वात बढ़ रहा है। वात प्रकृति वाले लोगों को खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि गलत खानपान से तुरंत वात बढ़ जाता है. खानपान में किये गए बदलाव जल्दी असर दिखाते हैं।



वात प्रकोप शामक नुस्खा  हल्दी पाउडर 10 ग्राम, मेथी दाना चूर्ण 20 ग्राम, अश्वगंधा चूर्ण 20 ग्राम, सौंफ चूर्ण10 ग्राम, वायविडंग चूर्ण 10 ग्राम, निर्गुण्डी चूर्ण 10 ग्राम, अविपत्तिकर चूर्ण 10 ग्रामअग्रीमुख चूर्ण 10 ग्राम, अजमोदादि चूर्ण 10 ग्राम, देवदारू चूर्ण 5 ग्राम, पिपलामूल चूर्ण 5 ग्राम, विधारा चूर्ण 10 ग्राम, सनाय चूर्ण 20 ग्राम, पिपल्यादि चूर्ण 10 ग्राम, अजवायन चूर्ण 10 ग्राम, गुड़वेल चूर्ण 10 ग्राम, त्रिफला चूर्ण 20 ग्राम और आंवला चूर्ण 20 ग्राम। इन सभी 18 द्रव्यों को अच्छी तरह से मिलाकर 5-5 ग्राम की 44 पुड़िया बना लें। दोनों समय के भोजन उपरान्त एक पुड़िया पानी के साथ सेवन करें।


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