ईसबगोल, Iasabgol
इसबगोल एक विदेशी मूल की औषधि है, तथापि भारत में शहर से लेकर गांव तक यह चिकित्सा तथा घरेलू औषधि के रूप में प्रचलित है, इसका मूल उत्पत्ति स्थान फारस है, फारसी में इसको अस्पगोल कहा जाता है, अब अपने देश में पंजाब के मैदानों तथा उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में यह काफी मात्रा में बोई और उगाई जाती है, मैसूर बंगाल आदि के तटवर्ती क्षेत्रों में भी इसको बोया जाता है, आजकल सम्पूर्ण भारत मे इसकी खेती की जाती है, भारत ईसबगोल का सबसे ज्यादा निर्यात भी करता ।
ईसबगोल का पौधा 1 वर्षीय, छोटा और बड़ा रोमल होता है, इसकी ऊंचाई अधिकतम 3 फुट होती है, इसमे तना नही होता है, और कोमल रोम युक्त होता है, इसकी पत्तियां धान की पत्तियों के समान दिखाई पड़ती है, जिनकी लंबाई 3 इंच से लेकर 9 इंच तक और चौड़ाई 1/4 इंच तक होती है। यह आगे की और नुकीली होती है, इसकी टहनियों की कक्ष में से गेहूं की बाली की तरह फूलों के लंबे तुर्रे से निकलते हैं, फूल की मंजरिया धान की बाली की भांति गुच्छेदार होती है, जिनमें भूसी सहित बीज होते हैं। इसके बीज रंग व रूप में अलसी के बीजों जैसे होते हैं, किंतु कुछ मोटे नौकाकार होते हैं, बीजों के ऊपर की झिल्ली उतार ली जाती है जो ईसबगोल की भूसी के नाम से विख्यात है, पानी या किसी तरल में भिगोने से बहुत जल्दी ही इसका लोआब बन जाता है, यह गंधहीन और स्वादहीन होता है ।
ईसबगोल के विविध नाम :- हिंदी में से इसबगोल, ईश्वर बोल आदि बोला जाता है, लेटिन- प्लैनटेगोओवटा तथा प्लेनटेगो इसप्घुल।
गुणधर्म:- ईसबगोल, पोस्टिक, शीतल, ग्राही, मधुर, मुत्र्ल्क, स्निग्ध, सारक, कब्ज व शुक्रमेह नाशक होता है । यह प्रदर, प्रमेह, आंतरिक गर्मी, आंतों की खुश्की, दाह और घावों में हितकारी होता है। अतिसार, आमातिसार, रक्तातिसार, जीर्ण प्रवाहिका तथा संग्रहणी में परम उपयोगी है, और आजकल विदेशों में भी आंत्र रोगों में इसका प्रयोग बहुतायत से किया जाने लगा है। यह शरीर, अमाशय आंतों के लिए बल प्रदान करने वाला है ।
ईसबगोल व इसकी भूसी दोनों ही वायु पैदा करते हैं तथा अधिक दिनों तक लेने से भूख कम कर देते हैं। यह प्रसूता के लिए भी हानिकारक है, अधिक समय तक लेने पर इससे शरीर की पेशियों में निर्बलता, अंगों में दर्द तथा सिर में खालीपन सा महसूस होने लगता है, इसके दुर्गुणों को दूर करने के लिए शहद, सोंठ, और सत्तू का सेवन करना चाहिए, इसबगोल के बीजों को कभी भी पीसना नहीं चाहिए, ऐसा माना जाता है कि पीसने से विषाक्त हो जाता ।
प्रयोग विधि :- ईसबगोल के बीज और भूसी दोनों का ही प्रयोग चिकित्सा के कार्य में होता है परंतु इसकी भूसी का अधिक उपयोग होता है । इसका उपयोग मुख्य रूप से अतिसार रोग में किया जाता है, हर प्रकार के अतिसार में यह लाभदायक है, यद्यपि चिकित्सा ग्रंथों में इसको अनेकों प्रकार से प्रयोग करने की विधियां बताई गई है, परंतु इसके सेवन की सही और वैज्ञानिक विधि यह है कि मीठा मिले थोड़े से पानी अथवा मीठा या नमकीन दही, मट्ठे में से 5- 10 ग्राम भूसी को चम्मच से मिलाकर तुरंत ही इसे खा लिया जाए, इस प्रकार सेवन करने से यह भूसी आंतों में पहुंचती है तो वहां जाकर और फूलती है और यह लोआब जैसा पदार्थ दांतो के आंतरिक भाग को इस प्रकार ढक लेता है कि आंतों पर जीवाणुओं और पदार्थों का प्रभाव बहुत कम पड़ता है, अतः आंतों की जलन तुरंत ही समाप्त हो जाती है । यह लोआब आंतों मे में उपस्थित विषैली सामग्री को भी निकाल देता है, 12 घंटे में ही यह औषधि आंतों में से समस्त विषैले पदार्थों को लेकर निकाल देती है, इससे रोगी को तत्कालिक शांति ही नहीं मिलती बल्कि हानिकारक पदार्थों के निकल जाने से उसकी हालत में भी बहुत सुधार हो जाता है। जिन लोगों को कभी-कभी दस्तों की शिकायत होती है वह भोजन करते समय के बीच उपरोक्त विधि से ईसबगोल की भूसी खा लिया करें ।
यदपि ईसबगोल अतिसार के लिए आदर्श औषधि मानी जाती है परंतु कब्ज नाशन के लिए भी यह अत्यंत उपयोगी है। कब्जी दूर करने के लिए इसको उपरोक्त मात्रा में रात्रि में सोते समय गर्म दूध में मिलाकर तुरंत खा ले, स्मरण रहे कि कब्ज के रोगी केवल गर्म दूध से ही सेवन करें अन्यथा लाभ नहीं होगा । इसबगोल अथवा इसकी भूसी दोनों से एक जैसा लाभ होता है और दोनों की प्रयोग विधि भी उपरोक्त है अर्थात पानी, दूध, दही में मिलाकर तुरंत सेवन नहीं करना चाहिए ।
अन्य उपयोग :-
बवासीर - खूनी बवासीर में अत्यंत लाभकारी ईसबगोल का प्रतिदिन सेवन आपकी इस समस्या को पूरी तरह से खत्म कर सकता है। पानी में भिगोकर इसका सेवन करना लाभदायक है।
अतिसार - पेट दर्द, आंव, दस्त व खूनी अतिसार में भी इसबगोल बहुत जल्दी असर करता है, और आपकी
तकलीफ को कम कर देता है ।
पाचन तंत्र - यदि आपको पाचन संबंधित समस्या बनी रहती है, तो ईसबगोल आपको इस समस्या से निजात दिलाता है। प्रतिदिन भोजन के पहले गर्म दूध के
साथ ईसबगोल का सेवन पाचन तंत्र
को दुरूस्त करता है।
जोड़ों में
दर्द - जोड़ों में दर्द होने पर ईसबगोल का सेवन राहत देता
है। इसके अलावा दांत दर्द में भी
यह उपयोगी है। विनेगर के साथ इसे दांत पर लगाने से दर्द ठीक हो जाता है।
कफ - कफ जमा होने एवं तकलीफ होने पर ईसबगोल का काढ़ा बनाकर
पिएं। इससे कफ निकलने में आसानी होती है।
सांस की दुर्गन्ध - ईसबगोल के प्रयोग से सांस की दुर्गन्ध से बचाता है, इसके अलावा खाने में गलती से कांच या कोई और चीज पेट में चली जाए, तो ईसबगोल सकी मदद से वह बाहर निकलने में आसानी होती है।
पेट के लिए वरदान है इसबगोल
पेट के लिए वरदान
पेट से जुड़ी बीमारियों को ठीक करने में यह बेहद कारगर साबित होता है। आंत में दर्द या जलन से परेशान हैं तो ठंडे पानी के साथ इसबगोल का सेवन करने से राहत मिलती है। अगर आपका बच्चा डायरिया से पीड़ित है तो उसके लिए इसबगोल का सेवन लाभदायी होता है। इसबगोल के दाने को भून कर उसका सेवन करने से डायरिया में तुरन्त राहत मिलती है। अपच, डायरिया और दस्त से परेशान हैं तो दही में दो चम्मच इसबगोल की भूसी डालकर दिन भर में दो-तीन बार इसका सेवन करें, तुरंत राहत मिलेगी।
डायरिया, पेचिश और पेट की ऐंठन को खत्म करने के लिए एक गिलास ताजे पानी में इसबगोल और चीनी मिलाकर लें, आराम मिलेगा। एक या दो चम्मच इसबगोल की भूसी को दूध में मिलाकर रात में पीने से कब्ज से राहत मिलती है।
मूत्र सम्बन्धी समस्या
अगर आप पेशाब में जलन की समस्या से परेशान हैं तो 4 चम्मच भूसी के साथ एक गिलास पानी में स्वाद के अनुसार चीनी डालकर पिएं, राहत मिलेगी।
अस्थमा
अगर आप अस्थमा से परेशान हैं तो 3 से 5 ग्राम इसबगोल की भूसी में एक गिलास गर्म पानी घोलकर पिएं, फायदा होगा।
दांत दर्द में आराम दे
अगर आप दांत दर्द से परेशान हैं तो इसबगोल की भूसी को सिरके में डुबो कर दांतों पर लगाएं, आराम मिलेगा।
कोलेस्ट्रोल का स्तर घटाए
इसबगोल कोलेस्ट्रोल के स्तर को घटाता है। साथ ही इसका सेवन करने से वजन कम होता है और मोटापे से छुटकारा मिलता है। यही नहीं, यह इन्सुलिन को नियंत्रित कर खून में ग्लूकोज की मात्रा को भी ठीक रखता है।
हार्मोन असंतुलन ठीक करे
महिलाओं में मोनोपॉज के बाद आने वाले हार्मोन अंसतुलन को संतुलित करने में भी यह फायेदमंद साबित होता है। इसबगोल का सेवन शरीर में एस्ट्रोजन के उत्पाद को भी बढ़ाता है।
Post a Comment