अपामार्ग या चिरचिटा, अपामार्ग के फायदे,


Apamarg -Washerman’s plant Benefits.



यह भारत में प्राय सभी जगह पाई जाने वाली अत्यन्त उपयोगी वनस्पति है । इसे शताब्दियों से औषधीय कार्यों में प्रयोग किया जा रहा है । पहली वर्षा होते ही इनके पौधे अंकुरित होना आरम्भ हो जाते हैं । यह वारिश में पनपते तथा सदियों के दौरान इनमे फूल-फल आते है । किंतु गर्मी में यह सूख जाते है ।




सामान्यतद्: इसके पौधे 2 से 4 फुट या इससे भी अधिक ऊंचे होते हें । यह स्वावलम्बी पौधा है, पर इसकी शाखाएं पतली व लम्बी होती हैं । इसकी पत्तियां अंडाकार एवं लम्बाग्र होती है  ये अभिमुख क्रम से स्थिहोती हैं । ये लगभग एक से डेढ इंच लम्बी था आधे से डेढ इंच तक चौडी होटी है । यों इनके आकार-प्रकार में काफी भिन्नना रहतीं है । अपामार्ग सफेद व लाल दो प्रकार का होता है। दोनों की लम्बी, कटीली मंजरियां पत्तों के डठलों के वीच से निकलती हैं । इनमें चावलों के आकाके सूक्ष्म और कांटे युक्त बीज होते हैं । इनका रंग गठीला-सा होहै । लाल अपामार्ग की टहनियां एवं मंजरियां कुछ लाली लिए होती हैं । पत्तों पर शूक्ष्म-रक्ताभ धब्बे से होते हें । पुष्प हरिताश्वेत तथा कभी-कभी हल्के बैगनी रंग के होते हैं ।



शरद ऋतु के अन्त में अपामार्ग का पंचांग संग्रह किया जाता है और छाया मे  सुखाकर रख लिया जाता है । ज और बीज पौधा पकने पर निकाल कर रखना चाहिए । इन्हें बंद डिब्बो में रखने से यह एक वर्ष तक गुणकारी रहता है । पामार्ग का क्षार यदि बन्द शीशी में रखा जाये तो कई वर्षों तक खराब नहीं होता । अपामार्ग का पंचांग एवं क्षार ही अधिक काम में लाया जाता है ।




विविध नाम - संस्कृन-अपामार्ग, हिन्दी - लटजीरा, चिरचिटा, ओँगा, आंधीझाडा, लेटिन - "अकीरांथेस आस्पेरा ।



गुण-धर्म - यद्यपि दोनो प्रकार के अपामार्ग के गुणों में कुछ भिन्नता है तथापि प्रकृति एवं मुख्य गुण प्राय: समान हैं । यह लघु, रुक्ष, तीक्षण, कटु, तिक्त, कटुविपाकी, उष्णवीर्य, मूत्रल, पथरी ना, श्वास-कास हारी, पौष्टिक, विष को दूर करने वाला, पसीना लाने वाला, अम्लतानाशक, रक्तवर्धक, शिरोविरेचक एवं शोथ हर है ।



विभिन्न प्रयोग तथा उपयोग



अपामार्ग क्षार -अपामार्ग का पंर्चाग (जड़, ना, पत्ते,  फूल और फल) को छाया में सुखाकर किसी तसले में या साफ पक्के स्थान पर रखकर जला दें । फिर इस राख को समेट लें । पर ध्यान रहे कि इसमें मिदृटी कंकड़ आदि न मिजाएं । अब जितनी राख है उससे आठ गुना पानी लेकर उसमें इसे घोल दें । पहले थोड़े पानी में गाढा घोल करके शे पानी मिलाना ठीक रहता है । हाथ से घोल को मसल-मसलकर पानी मिलाते जाना चाहिए ताकि उका कण-कण पानी में अच्छी तरह घुल जाए । इस सम्पूर्ण पानी को कम-से-कम छ: घण्टे तक बिना उसे दोबारा छेड़े रखा रहने देना चाहिए । अब ऊपर-ऊपर का पानी (निथरा हुआ) सावधानी से अलग कर लें । इस पानी को लोहे की कढाही में डाल कर आग पर चढावें । जयह पककर जल जाए तो कढाई में चिपके हुए पदार्थ को खुरचकर निकाल ले और खरल में सामान्य रूप से घोट कर अथवा चम्मच से मसलकर सुरक्षित रखें । यही अपामार्ग क्षार है ।



यह क्षार अत्यन्त उपयोगी है । यह स्वास, कास, विभिन्न उदर-विकारों, उदरशूल, अग्निमांद्य, यकृत, गुल्म, प्लीहावृद्धि आदि में परम उपयोगी है । मात्रा - विशैष स्थितियों में 1 से 2 ग्राम तक । सामान्य रूप में ½ से 1 ग्राम तक । सभी क्षार टीक्ष्य होते है । इन्हें रोगानूसार अनुपान अथवा मधु, शर्बत या पिसी हुई चीनी में मिलाकर लेना चाहिए ।




कास-स्वास – अपामार्ग क्षार ½ ग्राम, पिसी हुई चीनी ½ ग्राम अच्छी तरह मिला ले । फिर इसको लगभग चाय वाले छ: चम्मच भर गर्म पानी में घोलकर पियें । यह एक मात्रा है । इसको दिन-रात में 4-6 बार तक लिया जा सकता है । इसको पानी के जाए शहद या शर्बत वासा के साथ भी लिया जा सकता है । इससे जमा हुआ गाढा बलगम पतला हो जाता है । स्वासपीटीएच का अवरोध मिटता है और बार-बार उठने वाली खांसी और उससे होने वाला स्वास कष्ट समाप्त दो जाता है ।



दांत के रोग - अपामार्ग की मोटी टहनी को अच्छी तरह चबाकर कूची बना कर उससे दांत साफ करें । प्रतिदिन ताजी दातून करने से मसूडों की शिथिलता, दांतों की टीस, बदबू, रक्त, मवाद आना और असमय दांतों का हिलना बन्द हो जाता है । ताजी दातुन यदि दोनों समय की जाए तो अधिक लाभकर रहता है । यदि प्रतिदिन अपामार्ग की ताजी टहनी न मिल सके तो एक दिन कई टहनियां लाकर उनके गीले रहने तक प्रयोग कर सकते हें ।



उदर शूल (पेट का दर्द ) - अपामार्ग क्षार एक-दो ग्राम में समान भाग पिसी



हुई चीनी अथवा सोडा बाईकार्व मिला कर दिन में 2-3 बार गर्म जल से लें । यदि गर्म जल न मिले तो ठंडे जल से भी लाभ मिलता है ।



पथरी - अपामार्ग की ताजी जड 5-6 ग्राम पानी के साथ घोट-छानकर दिन में 2 3 बार तक पियें । यह मूत्राशय की पथरी के लिए कारगर प्रयोग है । इसके कुछ ही दिनों के प्रयोग से पथरी के छोटे-छोटे टुकड़े होकर निकल जाते है ।



मासिक अवरोध - अपामार्ग की ताजी-मोती का टुकड़ा धो-पोंछ कर नारी गुप्तांग पथ में धारण करने से मासिक स्राव समुचित मात्रा में आने लगता है । यह प्रयोग मासिक साव की तिथि के प्रारम्भ या एक दो दिन पूर्व से ही रम्भ कर देना चाहिए । इससे रज:स्राव उचित मात्रा में होकर वेदना आदि भी शान्त हो जाती है । रक्ताल्पता तथा गुप्तांग की आन्तरिक सूजन आदि मूकारणों का इलाज साथ-साथ अवश्य कराते रहना चाहिए ।



अपामार्ग का पौधा के फायदे बांझपन में

यह एक औषधीय जड़ी बूटी है जो स्‍वास्‍थ्‍य लाभ दिलाने के साथ ही  प्रजनन क्षमता को बढ़ाने  में मदद करती है। यह ऐसी जड़ी बूटी है जो सामान्‍य रूप से कहीं भी उपलब्‍ध हो सकती है। विशेष रूप से इसे हम खरपतवार समझते हैं। इस जड़ी बूटी का उपयोग कर कुछ विशेष स्‍त्री रोगों का उपचार किया जा सकता है। यदि कोई महिला अनियमित मासिक धर्म या अधिक रक्तस्राव के कारण जो स्त्रियाँ गर्भ धारण नहीं कर पातीं हैं वे अपामार्ग के उपाय को अपनाकर लाभ उठा सकती हैं। ऋतुस्नान के दिन से उत्तम भूमि में उत्पन्न इस दिव्य बूटी के 10 पत्ते या इसकी 10 ग्राम की जड़ लें। इसको गाय के 125 मिली दूध के साथ पीसकर छान लें।

इसे 4 दिन तक सुबह, दोपहर तथा शाम पिलाने से स्त्री गर्भ धारण कर लेती है। यह प्रयोग यदि एक बार में सफल न हो तो अधिक से अधिक 3 बार करें



प्रसव को आसान बनाने के लिए अपामार्ग फायदेमंद

आप प्रसव के समय भी अपामार्ग का उपयोग कर सकती हैं। पाठा, कलिहारी, अडूसा, अपामार्ग में से किसी एक औषधि की जड़ को नाभि, योनि पर लेप के  रूप में लगाएं। इससे प्रसव आसानी से हो जाता है।

प्रसव पीड़ा शुरू होने से पहले अपामार्ग की जड़ को एक धागे में कमर पर बांधें। इससे प्रसव आसानी से होता है। ध्यान रखना है कि प्रसव होते ही उसे तुरन्त हटा लेना चाहिए।

अपामार्ग की जड़, पत्ते एवं शाखाओं को पीस लें। इसे योनि में लेप करने से सुखपूर्वक प्रसव होता है।

अपामार्ग फूलों का पेस्ट बनाकर सेवन करने से प्रजनन से जुड़े रोगों में लाभ होता है।





अपामार्ग के इस्तेमाल की मात्रा

आप अपामार्ग का इस्तेमाल इतनी मात्रा में कर सकते हैंः-

रस- 10-20 मिली

जड़ का चूर्ण- 3-6 ग्राम

बीज- 3 ग्राम

क्षार- 1/2-2 ग्राम



अपामार्ग के इस्तेमाल का तरीका

अपामार्ग का इस्तेमाल इस तरह से किया जाना चाहिएः-

पत्ते

जड़

पञ्चाङ्ग


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