हल्दी के औषधीय गुण और उपयोग, Turmeric (Haldi) benefits & uses.
हल्दी बहुवर्णायु स्वभाव की वनस्पति है जिसकी लगभग समस्त भारत में खेती की जाती है । इसके पौधों की ऊंचाई 2 सै 3 फुट तक होती है और यह देखने में अदरक के पौधो जैसें लगते है । इनकी लम्बी आयताकार भालाकार पत्तियां होती है जो आधार और अग्र भाग दोनों और क्रमश: कम चौडी होती जाती हैं । यह पत्तियां आपस में इस तरह लिपटी हुई होती हैं कि एक डंडा जैसा मालूम पड़ता है । पुष्पबाहक दण्ड 6 इंच तक लम्बा होता है जिस पर मन्जरियों में पीले रंग के फूल आते है । इसकी फसल 9 से 1 0 महीने में तैयार हो जाती है । जब नीचे की पत्तियां सूखकर पीली पड जाती हैं तब कन्द खोदकर अलग कर लिए जाते है । इसकी जड अर्थात् इसका मुख्य कंद नारंगी रंग का प्राय: गोलाकार गांठ के रूप मे होता है जिसमें छोटी अंगुली की तरह लम्ब गोल शाखाएं लगी होती हैं । यह दोनों प्रकार की हल्दी अलग-अलग बेची जाती है । लम्बी गांठ वाली हल्दी गोल गांठ की अपेक्षा अधिक अच्छी समझी जाती है तथा भोजन और औषधि कार्य में इसी का व्यवहार अधिक होता है । हल्दी सब जगह किराना दुकानों के यहां मिल जाती है । रसोई की शान होने के साथ-साथ हल्दी कई चामत्कारिक औषधीय गुणों से भरपूर है।
विविध नाम : संस्कृत - हरिद्रा, रजनी, हिन्दी-हल्दी, फारसी-जर्द चोब, अंग्रेजी – टर्मेरिक, लेटिन नाम - करकूमा डोमेस्टिका ।
उपयोगी अंग - कन्दाकार जडे ।
सामान्य मात्रा :- हल्दी चूर्ण 1 ग्राम से 3 ग्राम तक ।
कच्ची हल्दी का स्वरस - 10 से 20 ग्राम तक ।
गुण-धर्म - रस-कटु तिक्त, वीर्य-उष्ण, विपाक-कटु, गुण-दीपन, ग्राही, रुक्ष, वनर्य दोष शमन-कफ पित्त हर त्वचा रोग, कामता, पांडु, प्रमेह, कृमि रोगों में हितकुर ।
हल्दी में कर्कुमिन नामक एक पीत रंजक पदार्थ पाया माता है जो अल्कोहल मे घुलकर पीले रंग का विलयन बनाता है । इसके कन्दो मैं एक वाष्पशील तेल 4 से 6०/० तक की मात्रा में पाया जाता है जिससे कपूर जैसी हल्की-हल्की सुगंधि आती है । इस तैल का मुख्य रचक कर्कुमेन नाम का टर्पीन होता है । इसके अतिरिक्त इसमें 2 5 ०/० तक स्टार्च तथा 30% तक एलब्यूमिन पदार्थ भी पाए जाते है ।
वहुत प्राचीन काल से चोट लगने पर प्रभावित स्थान पर हल्दी चूने का लेप लगाते है और दूध के साथ हल्दी खाई जाती है ताकि सूजन न आए ओर इसमें यह लाभ भी करती है । हल्दी के वाष्पशील तैल में प्रबल एलर्जी रोधी गुण पाए गए है । हल्दी के रंजक तत्व करकुमिन में भी शोथ उतारने के गुण है । हल्दी में कई प्रकार के ग्राम नेगेटिव तथा ग्राम पाजिटिव जीवाणुओं को नष्ट करने अथवा उनके बिषों को निष्प्रभावी करने की सामर्थ मौजूद है ।
शास्त्रीय योग – हरिद्रा खण्ड ।
विविध प्रयोग व योग
शीतपित (पित्ती उछलना) – पित्ती एलर्जी के कारण उछलती है । इस रोग में शास्त्रोक्त हरिद्रा खण्ड 3 से 6 ग्राम तक दिन में तीन बार गरम जल से कुछ दिनों सेवन कराना चाहिए । उत्तम लाभ होता है । शुद्ध सोडा बाईकार्ब 10 ग्राम को 200 ग्राम जल में घोलकर उसमें महीन कपड़ा भिगोकर शीतपित्त के ददोड़ों पर फिराने से ददोड़े शीघ्र ही बैठ जाते है ।
कफ कास (ब्रोंकाइटिस) --हल्दी को दीपक की लौ पर सेंक कर चूर्ण करके 1-2 ग्राम चूर्ण शहद के साथ चाटना चाहिए । अति धूम्रपान तथा वृद्धावस्था आदि कारणों से छाती में अधिक मात्रा में कफ भरा रहता हो, थोड़ा-सा परिश्रम करने या चलने-फिरने सै ही स्वास फूलने लगता हो तो हरिद्राद्यवलेह का सेंवन कराने से कफ निकल जाता है ।
हरिद्राद्ययलेह – हल्दी, कालीमिर्च, मुनक्का, पीपल, रास्ना और शठी । इन छहों औषधियों को सम भाग मिला लें । तदोपरांत सबके वज़न सै आधा गुड मिलायें । इनमें एक-एक तोला अवलेह को थोडे से सरसों के तेल में मिलाकर दिन में तीन बार चाटने से अधिक कफ प्रकोप वाले श्वास में बहुत लाभ होता है ।
टांसिल वृद्धि - रोगी को 5 ग्राम हल्दी का चूर्ण शहद के साथ प्रात: दोपहर व सायं सेवन कराते है । साथ ही पानी को गरम करके उसमें थोडा नमक डालकर दिन में 4-5 बार कुल्ला (गरारे) करने को कहते है । प्राय: 1 5 दिन चिकित्सा करने सै स्वास्थ्य लाभ हो जाता है ।
अफारा - पिसी हल्दी और नमक एक-एक ग्राम थोड़े से गर्म पानी में मिला कर पी जाए तो 5-1 0 मिनट में ही हवा खारिज होने लगती है । इसके पश्चात आधे-आधे घण्टे बाद यह मिश्रण 4-5 बार और लेने से पूरा आराम मिलता हो जाता है।
इसके अलावा अन्य कई गुण भी है --
1. कच्ची हल्दी में कैंसर से लड़ने के
गुण होते हैं। यह खासतौर पर पुरुषों में होने वाले प्रोस्टेट कैंसर के कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकने के साथ साथ उन्हें खत्म भी कर देती है। यह हानिकारक रेडिएशन
के संपर्क में आने से होने वाले
ट्यूमर से भी बचाव करती है।
2. हल्दी में सूजन को रोकने का खास
गुण होता है। इसका उपयोग गठिया रोगियों को अत्यधिक लाभ पहुंचाता है। यह शरीर के प्राकृतिक सेल्स को खत्म करने वाले फ्री रेडिकल्स को खत्म करती है और गठिया रोग में
होने वाले जोडों के दर्द में
लाभ पहुंचाती है।
3. कच्ची हल्दी में इंसुलिन के स्तर
को संतुलित करने का गुण होता है। इस प्रकार यह मधुमेह रोगियों के लिए बहुत लाभदायक होती है। इंसुलिन के अलावा यह ग्लूकोज को नियंत्रित करती है जिससे मधुमेह के
दौरान दी जाने वाली उपचार का असर बढ़ जाता है। परंतु अगर आप जो दवाइयां ले रहे हैं बहुत बढ़े
हुए स्तर (हाई डोज) की हैं तो हल्दी के
उपयोग से पहले चिकित्सकीय सलाह अत्यंत आवश्यक है।
4. शोध से साबित हो चका है कि हल्दी
में लिपोपॉलीसेच्चाराइड नाम का तत्व होता है इससे शरीर में इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। हल्दी इस तरह से शरीर में बैक्टेरिया की समस्या से बचाव करती है। यह बुखार
होने से रोकती है। इसमें शरीर को फंगल इंफेक्शन से
बचाने के गुण होते है।
5. हल्दी के लगातार इस्तेमाल से
कोलेस्ट्रोल सेरम का स्तर शरीर में कम बना रहता है। कोलेस्ट्रोल सेरम को नियंत्रित रखकर हल्दी शरीर को ह्रदय रोगों से सुरक्षित रखती है।
6. कच्ची हल्दी में एंटीबैक्टीरियल और
एंटी सेप्टिक गुण होते हैं। इसमें इंफेक्शन से लडने के गुण भी पाए जाते हैं। इसमें सोराइसिस जैसे त्वचा संबंधि रोगों से बचाव के गुण होते हैं।
7. हल्दी का उपयोग त्वचा को चमकदार और
स्वस्थ रखने में बहुत कारगर
8. कच्ची हल्दी से बनी चाय अत्यधिक
लाभकारी पेय है। इससे इम्यून सिस्टम मजबूत होता है।
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