हरड़ की जानकारी, लाभ, उपयोग एवं दुष्प्रभाव, Benefits, Uses & Side Effects Of Haritaki .
हरड़ को भारत की श्रेष्ठतम वनस्पति औषधियो में गिना जाता है, यह भारत में सभी क्षेत्रों में पाई जाती है मुख्यत: उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, पंजाब, मध्य प्रदेश, और दक्षिण भारत के वनों में प्रचुरता से होती है, हरड़ का वृक्ष काफी ऊंचा होता है, इसका तना लंबा, सीधा, सख्त एवं धूसर रंग का होता है जिस पर पीताभ हरे रंग के दाग से होते हैं, इसके पत्ते 3 से 8 इंच लंबे एवं डेढ़ से ढाई इंच तक चौड़े कुछ अड़ूसा के पत्तों की तरह होते हैं, यह हरे एवं डंठल में कुछ कुछ दूरी पर विपरीत मुखी लगे रहते हैं, फूल सफेदी लिए हुए में होते हैं।
हरड़ के पत्ते शीतकाल में गिर जाते हैं और गर्मियों के प्रारंभ में पुष्प का निकाल आते है, फल पांच उन्नत शिराओ वाला एवं कठोर तथा 1 से 2 इंच तक लंबा होता है। फल में केवल एक बीज होता है, आयुर्वेद ग्रंथों में कई प्रकार की हरड़ का वर्णन मिलता है, किंतु आजकल केवल तीन प्रकार की हरण ही बाजार में उपलब्ध है। -
1. छोटी हरड़
2. पीली हरण
3. बड़ी हरण
वास्तव में तीनों एक ही वृक्ष के फल है, जो अवस्था भेद से अलग अलग हो जाते हैं, हरीतकी के वृक्ष से जो कच्चे कोमल फल गुठली पढ़ने से पूर्व ही आम की कैरी की तरह पेड़ से गिर जाते हैं, यह सूखने पर काले रंग के हो जाते हैं इन्हें काली हरण या छोटी हरड़ या जंगी हरड़ कहते हैं, कहीं-कहीं इन्हें जवाहरड़ भी कहते हैं, जो फल गुठली पढ़ने के बाद पूर्ण परिपक्व होने से पहले संग्रह कर लिए जाते हैं इन्हें पीली हरड़ कहते हैं। जो फल वृक्ष पर ही पूरी तरह पक जाने पर तोड़ लिए जाते हैं उन्हें बड़ी हरड़ या अमृतसरी हरड़ कहते हैं, यद्यपि तीनों ही प्रकार की हरड़ औषधि के रूप में उपयोग में लाई जाती है, परंतु छिद्र रहित बड़े बक्कल वाली, भारी, पुष्ट और 15 ग्राम से अधिक वजन वाली हरड़ चिकित्सा कार्य में श्रेष्ठ मानी जाती है।
इसे आयुर्वेद के फेमस चूर्ण त्रिफला में भी डाला जाता है। इसके चूर्ण को आधी चम्मच की मात्रा में अगर रोज़ाना कुछ दिनों तक गर्म पानी से ले लिया जाए रात में सोते वक्त तो बहुत सारे बेहतरीन लाभ होते हैं।
हरड़ के विविध नाम- संस्कृत- हरीतकी, शिवा,पथ्या, अभया आदि, हिंदी- हरड़, हार्ट, हद, लेटिन - टर्मिनेलिया चेब्यूला।
गुणधर्म - नमक के अतिरिक्त हरण में पांच रस पाए जाते हैं। हरड़ रुक्ष,उष्णवीर्य, त्रिदोषहर, दीपन, पाचन और मृदुरेचन है, यह रसायन, बुद्धि प्रदायक, आयु और शक्ति वर्धक है, यह नेत्रों के लिए हितकर तथा वायु का अनुलोमन करती है। यहां श्वास, कास, विविध उदर विकार, बवासीर, क्रमी, हिचकी, प्रमेह, कब्ज, वमन, कामला, शूल और यकृत प्लीहा की विकृतियों को दूर करती है। इसका सेवन हर प्रकार से उपयोगी होता है, भोजन से पहले या बाद कभी भी इसका प्रयोग करें यह किसी भी स्थिति में हानि नहीं पहुंचाती है इसलिए पुराने आयुर्वेदाचार्य ने हरड़ को माता के समान व्यक्ति की भलाई करने वाली माना है ।
मात्रा - छोटी हरड़ 1 ½ ग्राम से 3 ग्राम तक (घी में भूनकर बनाया हुआ चूर्ण) और बड़ी हरड़ का चूर्ण - विरेचन के लिए 3 से 6 ग्राम व रसायन हेतु 1 ½ से 3 ग्राम तक ।
ऋतु के अनुसार हरण सेवन विधि - ग्रीष्म ऋतु में गुड़ के साथ, वर्षा ऋतु में सेंधा नमक मिलाकर, शरद ऋतु में मिश्री या चीनी के साथ, हेमंत ऋतु में सोंठ मिलाकर, शिशिर ऋतु में छोटी पीपल के साथ तथा बसंत ऋतु में मधु मिश्रित करके हरड़ सेवन करना चाहिए, इससे शक्ति संचय, आंतरिक शोधन व रसायन गुणों के लिए ऐसा करना चाहिए, हरड़ शरीर की समस्त क्रियाओं को सुधरती एवं स्वाभाविक ही बनाती है।
हरण की विशेषता- हरण सेवन करने से पहले वह मल शोधन करती है अर्थात दस्तों के द्वारा आंतों में संचित दूषित मल को सहज रूप से बाहर निकाल देती है, त्त्प्श्चत मल का पतलापन स्वयं ही ठीक हो जाता है। इससे जठराग्नि प्रदीप्त होकर पेट ठीक हो जाता है, भूख लगने लगती है और व्यक्ति स्वस्थ महसूस करने लगता है। शरीर के सभी छोटे-बड़े अंगों की शिथिलता समाप्त होकर मनुष्य स्वस्थ बना रहता है। इसके सेवन से सप्त धातुए शुद्ध और पुष्ट हो जाती हैं, हरण को लंबे समय तक सेवन करने पर भी हानि की संभावना नहीं होती ।
हरड़ के शास्त्री योग – त्रिफलादी तेल, अभयारिष्ट, अग्स्तय हरीतकी, हरितक्यादी चूर्ण, हरितक्यादी क्वाथ, हरीतकी खंड, हरितकी गुग्गुल, पंचसकार चूर्ण, त्रिफला, दशमूल हरीतकी, ब्रह्मरसायन तथा इत्रीफल सगीर आदि।
विविध प्रयोग तथा उपयोग-
बहु उपयोगी अमृत रसायन - अच्छी साफ-साफ बड़ी हरड़ ऐसी छाठे जो 6 ग्राम से 10 ग्राम के बीच वजन वाली हो और पानी में डालने से डूब जाए अर्थात पानी में तेरे नहीं, गर्मियों के दिनों में यह रसायन इस प्रकार तैयार करें कि हरड़ को रात्रि में गोमूत्र में भिगो दें और सुबह निकालकर धूप में सुखा लें, रात्रि में फिर गोमूत्र में भिगो दें इसी तरह 21 दिन तक भिगो भिगो कर धूप में सुखाते रहना चाहिए, इसकी मात्रा 1 - 1 हरड़ प्रतिदिन सुबह को है अथवा इसका छिलका उतारकर 4 से 6 ग्राम तक सुबह को खा लें अगर कब्ज हो तो दो-चार दिन तक इतनी ही यह थोड़ी अधिक मात्रा में सुबह और शाम दोनों समय सेवन कर सकते हैं, इस रसायन को धैर्य पूर्वक लंबे समय तक सेवन करते रहना चाहिए, इस रसायन पेट साफ होता है, पेट भारी रहना, गैस बनना, भूख कम लगना, पेट में मीठा-मीठा दर्द रहना, अग्निमांध, अजीर्ण, यक्र्त दौर्बल्य, पेट फूलना, खूनी व बादी बवासीर आदि मे अच्छा लाभ मिलता है। जो लोग बैठे-बैठे जीवन बिताते हैं, श्रम जिन्हें नहीं करना पड़ता और पांचन विकारों से ग्रस्त रहते हैं उनके लिए यह रसायन बहुत उपयोगी है। इससे किसी तरह की हानि संभव नहीं है। यदि गोमूत्र ना मिले अथवा उसमें हरड़ भिगोना न चाहें तो इसे भाँति मठे मे केवल 21 दिन तक भिगोकर प्रयोग कर सकते हैं ।
पेचिश-आव - छोटी हरड़, सौफ, सोंठ बराबर-बराबर ले। हरड़ को देसी घी में डालकर भून लें, कोई चीज जलने ना पाए, अब इन्हें कूट छानकर चूर्ण करें, चूर्ण के बराबर मिश्री या चीनी पीसकर मिलाएं, बस चूर्ण तैयार है, मात्रा 1 ½ से 3 चाय के चम्मच तक ताजे जल से दिन में तीन बार ले, लाभ - नई पुरानी दोनों प्रकार की आंव-पेचिश में सबसे अच्छा लाभ होता है, तले पदार्थों से परेज रखें, खाने में खिचड़ी दही ले।
बच्चों के रोग - शिशु को कभी-कभी दस्त कई कई दिनों तक नहीं होते हैं या बहुत सख्त होते हैं अथवा जब तक उन्हें फटी-फटी, हरी-पीली दस्त होती रहती है। बच्चे चिड़चिड़ा कमजोर हो जाते और दूध पीने में अरुचि दिखाने लगते हैं, मुख्यत: दांत निकलते समय उन्हें अक्सर ऐसी परेशानियां घेर लेती हैं। कई बार उदर शूल से भी बच्चे रोते रहते हैं। इन सभी स्थितियों में छोटी हरड़ बड़ी उपयोगी है। हरड़ को साफ पत्थर पर पानी में साथ घिसकर चंदन की तरह ¼ से ½ चम्मच उतार लें और चावल भर काला नमक मिलाकर या यूं ही गुनगुना करके अथवा मां के दूध के साथ मिलाकर दिन में 1 बार पिला दिया करें, आवश्यकता होने पर इसे दोबारा भी दे सकते हैं, यदि ऐसे कोई कष्ट बच्चों में ना हो तो भी सप्ताह में एक-दो बार उसे घुट्टी की तरह देते रहने से बच्चे की पाचन क्रिया ठीक बनी रहती है ।
कब्ज, वायु विकार - हरड़ का चूर्ण 20 ग्राम, सोंठ का चूर्ण 10 ग्राम, गुड़ 10 ग्राम। इनको मिलाकर चने के बराबर गोलियां बना लें, रात्रि में तीन से छह गोली तक पानी से सेवन करें, कब्ज मिटाकर सुबह साफ दस्त लाती है। अनेकों उधर रोगों में रामबाण है ।
कब्ज- जिन लोगों में मलाशय के निष्क्रिय हो जाने के कारण प्राय: कब्ज रहता है, जिसके कारण गैस बनती है और तबियत बहुत बेचैन रहती है, उन लोगों के लिए एक सरल प्रयोग यह है। लगभग 250 ग्राम छोटी हरड़ को थोड़े से अरंडी के तेल में भून लें, जब हरड़ भून जाए तो इन्हें कूटकर चूर्ण बना कर सीसी में बंद करके रख ले। इसकी 10 से 20 ग्राम तक मात्रा में रात्रि में सोते समय गर्म पानी से लें, प्रातः काल एक दो बार खुलकर दस्त आ जाएंगे।
कब्ज और गैस के लिए एक और सरल प्रयोग - छोटी हरड़ यानी काली हरड़ ले। इनको ना भून्ने की जरूरत है ना कूटने की, जैसी खरीद के लाए हैं उसी रूप में इसका प्रयोग करना है। इन हरड़ को पानी से धोकर और कपड़े से साफ करके एक चौड़े मुंह की शीशी में रख लें इसमें से एक हरण मुंह में डालकर चूसते रहें, यह लगभग 1 घंटे में मुंह में खुल जाएगी, इसी तरह दिन में दो से तीन हरड़ चूस लिया करें, यह कब्ज और गैस के लिए सर्वोत्तम और सस्ती दवा है।
किसे हरड़ नहीं खाना चाहिए - जो लोग कमजोर बल रहित, रुक्ष, अधिक पित्त वाले हो तथा गर्भावस्था में हरीतकी का सेवन नहीं करना चाहिए। उपवास में भी इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए। जिन लोगों को अधिक प्यास रखती हो मुख सुकता हो और नया बुखार हो उन्हें भी इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
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