शंखपुष्पी के फायदे और नुकसान, SHANKHPUSHPI BENEFITS & SIDE EFFECTS .
शंखपुष्पी शांतिदायक और बुद्धिवर्धक बूटी के रूप में बहु प्रसिद्ध वनस्पति है, यह समस्त भारतवर्ष में पाई जाती है, शंख के समान आकृति वाले श्वेत पुष्प होने से इसे शंखपुष्पी कहते हैं। यह सारे भारत में पथरीली भूमि में जंगली रूप मे पायी जाती है।
यह सुंदर ऊपर चढ़ने वाली लता है, इसमें व्रनतों पर 5 - 7 पट्टियाँ होती है, पत्तियों की लंबाई 1 इंच से लेकर 2 इंच होती है और आकार में यह लंबी दीर्घवत अंडाकार अग्रभाग गोलाई लिए हुए होती है, इसके फूल चमकदार नीले अथवा सफेद रंग के 1-1/2 से 2 इंच तक लंबे और कुछ-कुछ शंख जैसी आकृति के होते हैं, फुल सितंबर से जनवरी तक आते हैं। इस पर 2 इंच से लेकर 4 इंच तक लंबी फलियां आती है, इसका अग्रभाग पैनी चोंच की आकृति का होता है। पुष्पभेद से शंखपुष्पी की तीन जातियाँ बताई गई हैं। श्वेत, रक्त, नील पुष्पी। इनमें से श्वेत पुष्पों वाली शंखपुष्पी ही औषधि मानी गई है।
शंखपुष्पी का पौधा तीन रंग के फूलों वाला होता है, लाल, सफेद और नीले. इसमें से सफेद रंग के फूलों वाला पौधा औषधि के रूप में सबसे अच्छा माना जाता है और इसी का प्रयोग सबसे ज्यादा आयुर्वेदिक दवाओं के बनाने में किया जाता है।
विविध नाम - संस्कृत - शंखपुष्पी क्षीरपुष्पी, शंखमालिनी आदि। हिंदी - शंखहुली, शंखपुष्पी, कौड़िल्ला, काइडियाला आदि
वैज्ञानिक नाम - कोनोवुल्लुस प्लुरिकालिस ।
उपयोगी अंग - पंचांग ठंडाई की तरह या सुखाकर चूर्ण रूप में ।
संग्रह - पुष्पित क्षुप को जड़ सहित निकालकर छाया में सुखाएं और ढक्कन वाले डब्बों में सूखे स्थान में रखें, यह 6 माह से 1 वर्ष तक गुणकारी बनी रहती है।
सामान्य मात्रा - चूर्ण 3 से 6 ग्राम, 10 से 20 ग्राम पंचांग की ठंडाई तैयार करें । स्वरस 10 से 20 ग्राम तक प्रातः काल या दोनों समय में खाये ।
गुणधर्म - शंखपुष्पी के लाभ शंखपुष्पी सबसे ज्यादा स्मरण शक्ति को तेज करने में लाभदायक होती है इसका महीन पिसा हुआ जो एक-एक चम्मच सुबह शाम मीठे दूध के साथ या मिश्री की चासनी के साथ सेवन करना चाहिए ऐसा करने से दिमाग की ताकत बढ़ती है। ;
आयुर्वेद ग्रंथ इसे बुद्धिवर्धक, शांति दायक और रसायन औषधि मानते हैं । यह शीतवीर्य, मधुर विपाकी तथा त्रिदोषहर है।
यहअपने उत्तेजना सामक प्रभाव के कारण यह तनाव जन्य उच्च रक्तचाप जैसी परिस्थितियों में भी बड़ी लाभदायक है। आदत डालने वाले ट्रैंक्विलाइजरस की तुलना में यह अधिक उपयोगी है,
क्योंकि यहां तनाव का शमन करके शांत और दुष्प्रभाव रहित निद्रा लाती है।
विविध प्रयोग तथा उपयोग
स्मरण शक्ति वर्धक चूर्ण - शंखपुष्पी का छाया में सुखाया हुआ पंचांग 250 ग्राम, कालीमिर्च 20 ग्राम का महीन चूर्ण बना लें, फिर इसमें 250 ग्राम मिश्री का चूर्ण मिलाकर सुरक्षित रखें। मात्रा - बच्चों को 1 ग्राम से 2 ग्राम तक तथा बड़ों को 3 ग्राम से 6 ग्राम तक सुबह-शाम दूध के साथ देना है, दूध के अभाव में चाय कॉफी या ताजे पानी से ले सकते हैं, यह योग बौद्धिक कार्य करने वाला के लिए अत्यंत उपयोगी है ।
हिस्टीरिया [दौरा] नाशक चूर्ण - शंखपुष्पी 200 ग्राम, ब्रह्मी 100 ग्राम, बच 100 ग्राम का महीन चूर्ण बना लें, मात्रा 4 से 6 ग्राम तक प्रातः शाम मधु से चलाएं ऊपर से दूध या चाय पिला दे, शहद मिलने में कठिनाई हो तो पूरे चूर्ण में 200 ग्राम पिसी हुई मिश्री मिलाकर रखें, इसकी मात्रा 5 से 7 ग्राम है, यह प्रयोग हिस्टीरिया और मिर्गी के दौरों वाले रोगियों के लिए उपयोगी है । इससे मस्तिष्क के ज्ञान तंतु पर शामक प्रभाव पड़ता है, मन को शक्ति मिलती है एवं विचार सौम्य बनते हैं, दौरों का वेग क्रमशः शांत होता जाता है, यह प्रयोग पागलपन की स्थितियों में भी लाभकारी है .
शंखपुष्पी शरबत - शंखपुष्पी के ताजे पंचांग का रस निकालकर 250 ग्राम लें अथवा सुखी वनस्पति को भिगोकर 6 घंटे बाद सिल पर पीसकर कपड़े से रस निचोड़ लें, यह रस 250 ग्राम लेकर बराबर चीनी मिलाएं, इसे आग पर रखकर पकाएं जब एक तार की चाशनी आ जाए तो इसी में दो से तीन कागजी नीबू निचोड़ दें कुछ देर और पकाकर शरबत उतार ले .
मात्रा - बच्चों को आधा से एक चम्मच सुबह शाम ऐसे ही या दूध में मिलाकर दे, बड़ों को दो से तीन चम्मच सुबह-शाम लें. इससे शंखपुष्पी के सभी लाभ मिलते हैं. शक्ति दायक बुद्धि वर्धक एवं शामक है, बच्चों बड़ों सभी के लिए समान उपयोगी है. आजकल कई कंपनियां शंखपुष्पी शरबत बनाकर बेच रही हैं .
शंखपुष्पी तेल - ताजी शंखपुष्पी का रस 400 ग्राम अथवा सूखी शंखपुष्पी 400 ग्राम पीसकर गाढ़ा गोल बनावे अब इसमें 400 ग्राम तिल का तेल डालकर मंद आंच पर पकावे, पानी जल जाने पर तेल छान लें, इस तेल को छोटे बच्चों के शरीर पर मलने से बड़ा लाभ मिलता है, सूखा रोग रिकेट्स में भी अत्यंत लाभदायक है ।
शंखपुष्पी के कुछ नुकसान भी होते हैं इसलिए जब भी शंखपुष्पी का सेवन करें तो इन बातों का विशेष ध्यान रखें -
गर्भवती महिलाओं को इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
3 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
स्तनपान करने वाली महिलाओं को भी इसका सेवन चिकित्सक की सलाह से लेना चाहिए।
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