अलसी के फायदे, उपयोग और नुकसान –
Flax Seeds (Alsi) Benefits, Uses and Side Effects ॰
अलसी- भारत की बहुत प्रसिद्ध तिलहन वाली वनस्पति है। यह प्राय: समस्त देश में पैदा होती है, इसको खेतों में गेहूं के साथ अलग-अलग होते हैं, इसका पौधा दो से 4 फुट तक ऊंचा होता है, इसका मुख्य तना सुतली सा पतला होता है, जिसमें प्राय: दो तीन शाखाएं होती हैं, इन्हें तोड़ने पर सफेद रेशे से दिखाई पड़ते हैं। इसके पत्र घास की तरह कम चौड़े, किंतु प्रायः 1 से 3 इंच तक लंबे होते हैं, पत्र भी बहुत अधिक नहीं होते हैं इसकी जड़ गोल और 4 से 10 इंच तक लंबी होती है, तथा इसमें इधर उधर सूक्ष्म रोए होते हैं इनका सफेद रंग होता है।
अलसी में प्राया 30 से 40% तक तेल निकलता है, तेल खाने और औषधि और वार्निश के तौर पर उद्योगों में काम आता है ।
नाम – संस्कृत- क्षुमा, अलसी,पिच्छिला, हिन्दी- अलसी, तीसी, अंग्रेजी- लिनसीड, फ्लेक्स सीड, लेटिन – लाइनुम यूसिटेटीस्सिम्म ।
उपयोगी अंग – इसका मुख्य उपयोगी अंग अलसी के बीज है ।
गुणधर्म - अलसी के बीज व तेल मधुर, स्निग्ध, वीर्य, कटु, भारी, ऊषण, शक्ति दायक, कामोद्दीपक, शोथ नाशक तथा वायु नाशक होते हैं, यह फोड़ा घाव, वात रक्त, स्वास, खासी, शोथ व दर्द और प्रमेह नाशक है,
अलसी के तेल में लाईनोलिक एसिड और ग्लाइसेरिल का मिश्रण रहता है। इसमें लोआब, प्रोटीन, राल, एमिग्डलीन, मोम और शर्करा आदि तत्व भी पाए जाते हैं। इसकी भस्म में मैग्नीशियम, फास्फेट, पोटेशियम के सल्फेट और क्लोराइड आदि मूल्यवान तत्व भी मिलते हैं । इनके सम्मिश्रण से अलसी स्निग्धता कारक और मृदुताकारी होती है। यह स्वास कास नाशक, मूत्र निस्तारक, पोषक, शक्तिवर्धक होने के साथ-साथ मूत्रक्रच्छ, व्रक्क में अच्छा लाभ करती है ।
अलसी की विभिन्न प्रयोग तथा उपयोग
आग से जलने पर - अलसी का तेल और चूने का निकला हुआ जल लेकर किसी चौड़े बर्तन में डालकर उसे अच्छी तरह से फेटे, अच्छे से फेटने से यह सफेद मलहम सा बन जाएगा, आग से जले हुए स्थान पर इस मलहम को दिन में दो-तीन बार लगाते रहे इससे जलन व पीड़ा शांत होकर घाव शीघ्र भर जाता है ।
कब्ज- अलसी का तेल दो से चार चाय के चम्मच रात में आधी से एक गिलास गर्म दूध के साथ पीना चाहिए, सुबह 1-2 साफ दस्त हो जाएंगे इससे जमा हुआ मल निकल कर आंत साफ हो जाती हैं, यह प्रयोग बवासीर के रोगियों के लिए परम हितकर है।
जोड़ों का दर्द आदि - अलसी तेल 250ml में 15 ग्राम पिसी हुई सोंठ और चार चाय के चम्मच भर नमक मिलाकर गर्म करें । जब तेल में धुआं उठने लगे तो उतार कर रख लें, इस तेल की मालिश से पीठ का दर्द कोई भी मासल पीड़ा, कमर का दर्द, जोड़ों का दर्द आदि ठीक होता है ।
अलसी की चाय - अलसी के भुने और कटे हुए बीज 10 ग्राम को 250 से 300 ml पानी में डालकर मंद मंद अग्नि पर 10-15 मिनट तक उबालें तथा कलचुरी से सावधानीपूर्वक इसे चलाते रहें, फिर इसमें लोंग जायफल और छोटी इलायची के दाने प्रत्येक का चूर्ण पांच पांच रत्ती का स्वाद के लिए 20-25 ग्राम चीनी मिला दे और 10 मिनट तक ढककर रखा रहने दें। बाद में इस स्वादिष्ट चाय को पी जाएं, यह कफ नाशक है इससे पेशाब खुलकर आता है तथा फेफड़ों को शक्ति मिलती है और कफ ढीलाहोकर सांस रोग में भी आराम मिलता है, इस चाय में जरा सा दूध भी मिला सकते हैं, यह चाय शुष्क और गीली दोनों ही तरह के श्वास-कास में उपयोगी है, इस योग को पांच छे महीने प्रयोग कर लेने से उस पुराना श्वास रोग ठीक हो जाता है।
शक्ति वर्धक प्रयोग - अलसी बीज 20 ग्राम, सफेद मूसली, सोंठ, अश्वगंधा 10-10 ग्राम, ताल मखाना और तज 5-5 ग्राम को कूटकर महीन चूर्ण बना लें, मात्रा 10 -10 ग्राम सुबह-शाम दूध के साथ ले, यहां चूर्ण शुक्र वर्धक, पौष्टिक और दुर्बलता नाशक है, इससे धातु दुर्बल व प्रमेह भी ठीक होता है एवं शरीर हष्ट पुष्ट बन जाता है।
अलसी 50 ग्राम, असगंध 25 ग्राम को पीसकर चूर्ण करें फिर इसमें 50 ग्राम मिश्री या चीनी मिलाकर रख लें, मात्रा - चार चार चम्मच सुबह-शाम दूध चाय अथवा जल से ले, पौष्टिक और दुर्बलता नाशक स्वस्थ एवं फल दायक प्रयोग है।
अलसी का नियमित सेवन जरूर करना चाहिए. अलसी के सेवन से रक्त पतला होता है, जो खून के थक्के नहीं जमने देता, जिससे हृदय का रक्तसंचरण सुचारू रूप से चलता रहता है. अलसी के सेवन से हृदय रोगों से तो बचाव होता ही है साथ ही कोलोन कैंसर,ब्रेस्ट कैंसर और प्रोस्टेट कैंसर से भी बचाव होता है.
अलसी खाने का तरीका
अलसी का
सेवन अलग-अलग बीमारियों में अलग तरह से किया जाता है, अलसी के सेवन के लिए बेहतर है कि उसे पीसकर प्रयोग में लाया जाए और एक दिन में
30 ग्राम से ज्यादा इसका प्रयोग न किया जाए. अलसी का सेवन आप गर्म पानी के साथ, दही या मट्ठे के साथ,फलों के रस
के साथ, रोटी या परांठे में मिलाकर आदि कई तरीकों से कर सकतें हैं.
अलसी के बीज खाने के फायदे
अलसी मधुमेह
रोग में भी खासी फायदेमंद है, जो कोलेस्ट्रॉल, ब्लड प्रेशर और हृदयगति को सामान्य बनाये रखती है. अलसी में ओमेगा-थ्री, फाइबर, सेलेनियम, पोटेशियम, लिगनेन, विटामिन बी ग्रुप, मैग्नीशियम और जिंक आदि तत्व होते हैं, जो इसे अपने-आप में ही एक ‘सुपरफूड बनातें हैं. अलसी एंटी-ऑक्सीडेंट्स और फाइटोकैमिकल्स से भी युक्त होती
है जो त्वचा पर झुर्रियां नहीं होने देती और त्वचा
का कसाव बनाये रखती है. इसका उचित मात्रा में नियमित सेवन त्वचा को स्वस्थ और सुन्दर बनाता है. अलसी वज़न कम करने में भी सहायक है. आयुर्वेद में अलसी को कई यौन संबंधी रोगों के लिए
रामबाण माना गया है.
लेकिन जैसा कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, वैसे ही तमाम गुणों के साथ ही अलसी के कुछ नुक़सान भी हैं- तीसी का अधिक सेवन पेट में गैस, बदहज़मी और सीने में जलन जैसे परेशानियां खड़ी कर सकता है. साथ ही अलसी का सेवन खून पतला करता है, इसलिए इसका अधिक सेवन किसी घाव को भरने की प्रक्रिया को धीमा कर देता है, जो खतरनाक भी हो सकता है. मधुमेह की दवा के साथ ही अलसी का सेवन भी करना ब्लड-शुगर का स्तर काफ़ी गिरा सकता है. ऐसे ही ब्लड-प्रेशर की दवा के साथ ही अलसी के सेवन से ब्लड-प्रेशर काफी लो भी हो सकता है. अलसी के अधिक सेवन से त्वचा पर एलर्जी भी हो सकती है. बहरहाल, अति हर चीज़ की बुरी होती है फिर चाहे वह चीज कितनी भी अच्छी और फायदेमंद क्यों ना हो? यही आठ अलसी पर भी लागू होती है, कई गुणों से युक्त होने के बावज़ूद अलसी का ज्यादा सेवन काफी हानिकारक भी हो सकता है इसलिए अलसी का सेवन सोचसमझकर और उचित मात्रा में करना ही श्रेयस्कर है.
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