अशोक के पेड़ के फायदे, Ashok tree Uses & Benefits .
अशोक का वृक्ष भारत में ही सर्वाधिक रूप से होता है । यह मुख्यतः मध्य व पूर्व हिमालय, कुमायूं के नजदीकी क्षेत्रों, मूलाबार पहाड़ों और कोंकण आदि में होता है। जो देश में प्राय: सर्वत्र उसके वृक्ष दिखाई पड़ते हैं। बागों, बगीचों, मकानों के आसपास के वृक्ष सुंदरता आदि के लिए भी लगाए जाते हैं। यह बहू शाखा वाला और घनी छाया वाला पेड़ है। यह 12 महीने हरा-भरा रहता है । इसका तना 10 से 16 फुट तक लंबा गोल और सुडौल होता है, इसके पत्ते लगभग 3 से 9 इंच लंबे लहरदार नुकीले और वृत्त के दोनों और लगते हैं। पत्ते निकलते समय सफेदी लिए हुए लाल रंग के किंतु बाद में हरे रंग के हो जाते हैं इसके पत्ते सूखने पर लाल होते हैं ।
अशोक में पुष्प का आगमन वसंत ऋतु में होता है । पुष्प पहले नारंगी रंग के फिर लाल सुगंधित और दिखने में बड़े भले लगते हैं। यह गुच्छों में होते हैं तथा पेड़ पुष्पो से लदा होता है। मई-जून में इसमें फलियां आती है। फली की लंबाई 4 से 10 इंच और चौड़ाई 1 से 2 इंच तक होती है. फलियां प्रारंभ में जामुनी और पकने में काली हो जाती है। फली के अंदर एक से डेढ़ इंच लंबे कुछ चपटे 4 से 10 तक बीज रहते हैं। जिनकी ऊपरी परत रक्ताभ होती है।
पेड़ के तने को गोद देने से एक प्रकार का सफेद रस निकल कर जम जाता है। जो जमने पर लाल गोंद हो जाता है। तने की छाल का रंग धूसर वर्णी होता है। इसके अंदर की परत लाल होती है। औषधि के लिए यही छाल विशेष रूप से प्रयोग की जाती है ।
विभिन्न नाम - संस्कृत - रक्त पल्लव, हेंपुष्प, अशोक, हिंदी – अशोक, लेटिन - साराका अशोका।
गुणधर्म - अशोक कसेला, कटु, शीतवीर्य, रक्त संग्राहक, ग्राही, वेदनाहर, रंग निखारने वाला तथा प्यास, दाह, अर्शनाशक है । यह सर्वप प्रदर, गर्भाशय शैथिल्य, गर्भाशय दोष, क्रमी, रक्त विकार, व्रण एवं संधि शूलहारी भी है। इसमें थकावट, दुर्बलता तथा अजीर्ण आदि भी दूर होते हैं ।
अशोक की छाल में कषाय तत्व भी पाए जाते हैं। यह औषधि गर्भाशय की अंतः कला किसे एंडोमेट्रियम कहते हैं तथा ग्रंथियों के ऊतकों पर भी लाभदायक प्रभाव डालती है तथा अतिरिक्त रक्त स्राव को रूकती है । अशोक की छाल का क्वाथ जब भी अति रज स्त्राव में दिया गया । इससे 50% से अधिक रोगियों को लाभ हुआ । इसकी छाल के का सेवन कराने से गर्भाशय की संकोच दर बढ़ जाती है और यहां संकोच अधिक समय तक बना रहता है ।
सुप्रसिद्ध शास्त्रीऔषधि निर्माण – अशोकारिष्ट, अशोक घ्रत आदि ।
विविध प्रयोग और उपयोग –
सौंदर्य वर्धक उबटन और तेल - गेहूं का आटा चार चम्मच सरसों का तेल दो चम्मच अशोक की छाल का रस चार चम्मच मिलाकर हल्का गाढ़ा घोल बनावे। यदि घोल बहुत घाड़ा हो तो इसी में थोड़ा दूध या जल मिलाकर पतला कर लें । इसी प्रकार के घोलनीमा उबटन को प्रतिदिन मुख हाथ पैरों पर लगावे । रंग साफ होगा चिकनाहट और तेजस्विता आ जाएगी ।
अशोक घनसत्व वटी - अशोक की छाल 500 ग्राम को मोटा-मोटा कूटकर 8 किलो जल में पकाएं। जब जल 2 किलो बाकी रहे तो उतार कर छान लें, अब इसको फिर आप पर चढ़ाकर धीरे-धीरे पकाएं, जब यह गाढ़ा होकर गोली बनाने लायक हो जाए तो उतार ले, शीतल होने पर मटर के बराबर गोलियां बना लें और सोना गेरू के पाउडर में डालते जाएं, फिर सूखने पर सीसी में बंद करके रख ले, मात्रा दो से तीन गोली गर्म जल अथवा दूध के साथ सुबह-शाम खाना है । सब प्रकार के गर्भाशय तथा योनि रोगों में लाभदायक है। स्त्रियों की हर प्रकार की कमजोरी दूर करती है ।
शरबत अशोक - अशोक की ताजी छाल 250 ग्राम लेकर मोटा मोटा कुटे, अब इसको चाल 4 लीटर जल में डालकर पकाएं । जब 1 लीटर जल शेष रहे तो उतार कर छान लें, अब इस जल में 1 किलो चीनी डालकर पुनः पकाएं, पकाते पकाते जब सरबत की चासनी शहद जैसी गाड़ी हो जाए और जमीन में बूंद टपकाने पर फैले नहीं तो उतारले, शरबत तैयार हो जाएगा . इसे बोतल में भर लें। मात्रा 10 -10 ग्राम 2 गुने पानी मिलाकर दिन में तीन बार सुबह दोपहर शाम पिए ॰ अत्यधिक राज स्त्राव में तुरंत लाभ होता है, हर प्रकार के प्रदर में परम उपयोगी है ।
अशोक की छाल को कूट छान लें, 250 ग्राम इस चूर्ण में 250 ग्राम मिश्री मिलाकर अच्छी तरह घोट कर रख लें, 10 ग्राम चूर्ण फांकर ऊपर से आधा गिलास चावल के धोवन में एक दो चम्मच शहद मिलाकर सुबह शाम ले। श्वेत तथा रक्त हर प्रकार के प्रदर में अति लाभदायक है।
दवा सेवन के साथ-साथ श्वेत प्रदर की स्थिति में योनि प्रक्षालन भी जरूरी है। इसके लिए 200 ग्राम अशोक छाल को 500 ग्राम जल में पकाएं, जब आधा शेष रहे तो उतार कर उसमें आधा चम्मच फिटकरी का फूला मिलाकर इससे दिन में एक बारसिरिन्ज के द्वारा आंतरिक योनि प्रक्षालन कराते रहें ।
गर्भ स्त्राव की प्रवृत्ति - कुछ स्त्रियों में बार-बार गर्भ स्त्राव होने का रोग पनप जाता है, इससे गर्भधारण से पूर्व और फिर गर्भ के प्रारंभ से ही ऊपर लिखी अशोक घनसत्व वटी, प्रवाल पिष्टी दो रत्ती, गिलोय सत्व 4 रत्ती मिलाकर 1-1 मात्रा दिन में तीन बार देते रहे साथ ही सामान्य शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य सुधारने पर ध्यान देना चाहिए । अशोक घ्रत भी कुछ दिनों तक सेवन करना चाहिए।
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