अमलतास के औषधीय गुण ओर उपयोग,
Cassia, Golden shower benefits & uses.
अमलतास एक औषधीय वृक्ष है । यह भारत के प्राय: सभी क्षेत्रों में पाया जाता है । जंगलों में स्वयं उगने वाले अमलतास वृक्षों के अलावा बाग बगीचो में भी इनके पेड लगाए जाते हैं । इसके पके फल लालिमा लिए हुए काले रंग के लम्बे छोटे वेंत की तरह मोटाई के होते हैं । इनका गूदा पंसारियों के यहां बिकता है । पड़ की छाल, फलों का गूदा, पत्ते एवं फूल इसके उपयोगी अंग हैं ।
अमलतास का वृक्ष लगभग 6-1/2 से 9-10 मीटर तक ऊंचा होता है । पेड की गोलाई पौन मीटर से 1 मीटर के लगभग होती है । शाखाएं खूब घनी एवं मोटी मजबूत होती हैं । पत्ते हरे, जामुन के पत्तों की तरह अण्डाकार और आमने-सामने जोड़ो में लम्बी-लम्बी सीको पर लगते हैं । पत्तों का डंठल छोटा तथा पत्तों का पिछला भाग चिकना सा होता है । पतझड के बाद प्राय: अप्रेल-मई में पीले-पीले फूलो से पेड़ लड़ जाता है और बडा सुंदर दिखाई पड़ता है । पत्तों के पास से सींक जैसी दांडी निकलती है जिसमे फूल लगे होते हैं । प्रत्येक फूल मे 5 पंखुड़िया होती है। फूल भूत शीघ्र झड़कर गिर जाते है।
जून के आस-पास जब फूल झड़कर गिर जाते हैं तो नीलापन लिए हुए रंग की सलाई सी पतली-पतली फलियां निकलती हैं । यह फलियां वर्षा के अन्त तक बढकर एक फुट से दो फुट तक लम्बी हो जाती हैं । इनकी गोलाई एक इंच के करीब होती है और यह नीचे लटकती रहती हैं । यह पकने पर लालिमा लिए हुए काले रंग की कठोर हो जाती है । फली का अगला हिस्सा नोकदार होता है । फली के अंदर छोटे-छोटे खाने होते हैं । इन खानों के दोनों ओर काले रंग का चिपचिपा गूदा होता है । प्रत्येक खाने में 2-3 बीज होते है । इनका रंग ललाई लिए हुए धूसर होता है । यह चिकने और कड़े होते हैं । इनको तोडने से अन्दर पीली दाल सी गिरी निकलती है । अमलतास का गूदा ही विशेष रूप से दवा के काम में आता है । अमलतास के पेड की छाल को सड़ाकर उसके रेशों से रस्सी बनाते है । लकडी की राख और पेड की छाल को रंगने के काम में भी लाया जाता है ।
विभिन्न नाम - इसको संस्कृत में कर्णीकार, राजवृक्ष या आर्गवध नाम से पुकारा जाता है । हिन्दी में अमलतास, सियार डंडा, धन बहेरा या बानर काकडी भी कहते हैं । इसका लेटिन नाम - कस्सिया फिसचूला ।
गुण-धर्म - आयुर्देद के अनुसार अमलतास रस में मधुर, शीतवीर्य, गुरु, स्निग्ध, मृदुविरेचक, जठराग्नि प्रदीप्त करने वाला, वात, उदावर्त, कृमि शूल, अजीर्ण, प्रमेह, रक्तपित्त, गुल्म, खुजली आदि नाशक और कुष्ठधन है । ज्वर आने पर मलावरोध दूर करने के लिए भी यह परम उपयोगी है । आंतों में रुके हुए कच्चे और पक्के मल को पचाकर यह निकाल देता है किन्तु इससे न कोई हानि होती है और न बाद में ही कुप्रभाव पडता है ।
अमलतास के गूदे में एक प्रकार का उड़नशील तेल, लगभग 60 % शर्करा तथा पेक्टिन, म्यूसिलेज जैसे कुछ उपयोगी तत्त्व भी होते है ।
प्रचलित औषधीय - आरग्वधारिष्ट, आर्गवध, पुष्पासव, शर्बत अमलतास, माजून अमलतास एवं अमलतासादि सूत्रवर्ति एवं तैल अमलतास आदि ।
विविध प्रयोग और उपयोग
मतावरोध - अमलतास गूदा 10 ग्राम, मुनवका 10 ग्राम अथवा गुलकन्द 10 ग्राम मिलाकर एक मात्रा खाने से पेट सही रूप में साफ हो जाता है । यह प्रयोग सर्वथा हानि रहित हैं ।
० अमलतास का गूदा 10 ग्राम, वडी हरड़ का छिलका 5 ग्राम, जल 2 50 ग्राम एक साथ पकाएं । लगभग 60 ग्राम शैष रहने पर उतार ले । फिर उसमें 10 ग्राम गुड़ मिलाकर मिलाएं । इससे 3-4 घण्टे बाद एक दस्त खूब साफ हो जाती है । अपने अनुरूप मात्रा घटाई या बढाई जा सकती है ।
० अमलतास के फूल 3-6 ग्राम शुद्ध घी में भूनलें । फिर भोजन करते समय पहले ग्रास या कौर के साथ इसे खायें । शाम को खाने से प्रात: दस्त साफ होकर कब्ज दूर हो जाता है ।
अर्श (बवासीर) - अमलतास का गूदा 10 ग्राम, बीज निकाली हुई मुनक्का 10 ग्राम, बडी हरड़ का छिलका 5 GM, लगभग 250 ग्राम जल मे पकाएं । लगभग 60 ग्राम शेष रहने पर उतार छानकर पिएँ । इसी तरह 4-5 दिन तक सुबह-सायं पीने से बवासीर का दर्द और कब्ज दूर होकर मस्से सिकुड़ बाते है ।
सूजन या गाँठ - अमलतास का गूदा 20 GM, जौ का आटा 20 ग्राम, कपूर 1 ग्राम को अलसी के 10 ग्राम तेल में डाल कर खरल में घोट कर लेप बना लें । अथवा पहली तीनों चीजों के साथ 15 ग्राम अलसी के बीज मिला कर पानी के साथ घोट लें । अब इसे गर्म करके प्रतिदिन लेप करें । किसी कपडे पर इसको फैलाकर सूजन या गांठ पर बांध देना चाहिए । फोड़े की प्रारम्भिक सूजन भी इससे ठीक हो जाती है । यह फीड़े को पका भी देता है । सूजे हुए टांसिल, गले का शोथ आदि में अमलतास के पेड की छाल 10 GM लेकर मोटा-मोटा कूट लें । फिर इसे लगभग 200 GM पानी में डालकर पकाएं । जब लगभग 50 ग्राम पानी बाकी रहे तो उतार ले । इस पानी को बूंद-बूंद करके जबान के पिछले भाग या गले में टपकाएं । इस तरह दिन-रात में 4-5 बार करें । इससे अति शीघ्र टांसिलों की लाली, सूजन, दर्द दूर हो जाती है । यह प्रयोग छोटे बच्चों के लिए भी बहुत लाभकर है । इससे टांसिलों के आपरेशन से भी बचा जा सकता है ।
Cassia, Golden shower benefits & uses.
अमलतास एक औषधीय वृक्ष है । यह भारत के प्राय: सभी क्षेत्रों में पाया जाता है । जंगलों में स्वयं उगने वाले अमलतास वृक्षों के अलावा बाग बगीचो में भी इनके पेड लगाए जाते हैं । इसके पके फल लालिमा लिए हुए काले रंग के लम्बे छोटे वेंत की तरह मोटाई के होते हैं । इनका गूदा पंसारियों के यहां बिकता है । पड़ की छाल, फलों का गूदा, पत्ते एवं फूल इसके उपयोगी अंग हैं ।
अमलतास का वृक्ष लगभग 6-1/2 से 9-10 मीटर तक ऊंचा होता है । पेड की गोलाई पौन मीटर से 1 मीटर के लगभग होती है । शाखाएं खूब घनी एवं मोटी मजबूत होती हैं । पत्ते हरे, जामुन के पत्तों की तरह अण्डाकार और आमने-सामने जोड़ो में लम्बी-लम्बी सीको पर लगते हैं । पत्तों का डंठल छोटा तथा पत्तों का पिछला भाग चिकना सा होता है । पतझड के बाद प्राय: अप्रेल-मई में पीले-पीले फूलो से पेड़ लड़ जाता है और बडा सुंदर दिखाई पड़ता है । पत्तों के पास से सींक जैसी दांडी निकलती है जिसमे फूल लगे होते हैं । प्रत्येक फूल मे 5 पंखुड़िया होती है। फूल भूत शीघ्र झड़कर गिर जाते है।
जून के आस-पास जब फूल झड़कर गिर जाते हैं तो नीलापन लिए हुए रंग की सलाई सी पतली-पतली फलियां निकलती हैं । यह फलियां वर्षा के अन्त तक बढकर एक फुट से दो फुट तक लम्बी हो जाती हैं । इनकी गोलाई एक इंच के करीब होती है और यह नीचे लटकती रहती हैं । यह पकने पर लालिमा लिए हुए काले रंग की कठोर हो जाती है । फली का अगला हिस्सा नोकदार होता है । फली के अंदर छोटे-छोटे खाने होते हैं । इन खानों के दोनों ओर काले रंग का चिपचिपा गूदा होता है । प्रत्येक खाने में 2-3 बीज होते है । इनका रंग ललाई लिए हुए धूसर होता है । यह चिकने और कड़े होते हैं । इनको तोडने से अन्दर पीली दाल सी गिरी निकलती है । अमलतास का गूदा ही विशेष रूप से दवा के काम में आता है । अमलतास के पेड की छाल को सड़ाकर उसके रेशों से रस्सी बनाते है । लकडी की राख और पेड की छाल को रंगने के काम में भी लाया जाता है ।
विभिन्न नाम - इसको संस्कृत में कर्णीकार, राजवृक्ष या आर्गवध नाम से पुकारा जाता है । हिन्दी में अमलतास, सियार डंडा, धन बहेरा या बानर काकडी भी कहते हैं । इसका लेटिन नाम - कस्सिया फिसचूला ।
गुण-धर्म - आयुर्देद के अनुसार अमलतास रस में मधुर, शीतवीर्य, गुरु, स्निग्ध, मृदुविरेचक, जठराग्नि प्रदीप्त करने वाला, वात, उदावर्त, कृमि शूल, अजीर्ण, प्रमेह, रक्तपित्त, गुल्म, खुजली आदि नाशक और कुष्ठधन है । ज्वर आने पर मलावरोध दूर करने के लिए भी यह परम उपयोगी है । आंतों में रुके हुए कच्चे और पक्के मल को पचाकर यह निकाल देता है किन्तु इससे न कोई हानि होती है और न बाद में ही कुप्रभाव पडता है ।
अमलतास के गूदे में एक प्रकार का उड़नशील तेल, लगभग 60 % शर्करा तथा पेक्टिन, म्यूसिलेज जैसे कुछ उपयोगी तत्त्व भी होते है ।
प्रचलित औषधीय - आरग्वधारिष्ट, आर्गवध, पुष्पासव, शर्बत अमलतास, माजून अमलतास एवं अमलतासादि सूत्रवर्ति एवं तैल अमलतास आदि ।
विविध प्रयोग और उपयोग
मतावरोध - अमलतास गूदा 10 ग्राम, मुनवका 10 ग्राम अथवा गुलकन्द 10 ग्राम मिलाकर एक मात्रा खाने से पेट सही रूप में साफ हो जाता है । यह प्रयोग सर्वथा हानि रहित हैं ।
० अमलतास का गूदा 10 ग्राम, वडी हरड़ का छिलका 5 ग्राम, जल 2 50 ग्राम एक साथ पकाएं । लगभग 60 ग्राम शैष रहने पर उतार ले । फिर उसमें 10 ग्राम गुड़ मिलाकर मिलाएं । इससे 3-4 घण्टे बाद एक दस्त खूब साफ हो जाती है । अपने अनुरूप मात्रा घटाई या बढाई जा सकती है ।
० अमलतास के फूल 3-6 ग्राम शुद्ध घी में भूनलें । फिर भोजन करते समय पहले ग्रास या कौर के साथ इसे खायें । शाम को खाने से प्रात: दस्त साफ होकर कब्ज दूर हो जाता है ।
अर्श (बवासीर) - अमलतास का गूदा 10 ग्राम, बीज निकाली हुई मुनक्का 10 ग्राम, बडी हरड़ का छिलका 5 GM, लगभग 250 ग्राम जल मे पकाएं । लगभग 60 ग्राम शेष रहने पर उतार छानकर पिएँ । इसी तरह 4-5 दिन तक सुबह-सायं पीने से बवासीर का दर्द और कब्ज दूर होकर मस्से सिकुड़ बाते है ।
सूजन या गाँठ - अमलतास का गूदा 20 GM, जौ का आटा 20 ग्राम, कपूर 1 ग्राम को अलसी के 10 ग्राम तेल में डाल कर खरल में घोट कर लेप बना लें । अथवा पहली तीनों चीजों के साथ 15 ग्राम अलसी के बीज मिला कर पानी के साथ घोट लें । अब इसे गर्म करके प्रतिदिन लेप करें । किसी कपडे पर इसको फैलाकर सूजन या गांठ पर बांध देना चाहिए । फोड़े की प्रारम्भिक सूजन भी इससे ठीक हो जाती है । यह फीड़े को पका भी देता है । सूजे हुए टांसिल, गले का शोथ आदि में अमलतास के पेड की छाल 10 GM लेकर मोटा-मोटा कूट लें । फिर इसे लगभग 200 GM पानी में डालकर पकाएं । जब लगभग 50 ग्राम पानी बाकी रहे तो उतार ले । इस पानी को बूंद-बूंद करके जबान के पिछले भाग या गले में टपकाएं । इस तरह दिन-रात में 4-5 बार करें । इससे अति शीघ्र टांसिलों की लाली, सूजन, दर्द दूर हो जाती है । यह प्रयोग छोटे बच्चों के लिए भी बहुत लाभकर है । इससे टांसिलों के आपरेशन से भी बचा जा सकता है ।
अमलतास के उपयोगी भाग
अमलतास के पेड़ के अनगिनत फायदे हैं। इस पेड़ के निम्न हिस्सों को उपयोग में लाया जा सकता हैः-
· पत्ते
· फूल
· बीज
· जड़
· तने की छाल
· फल का गूदा
अमलतास का इस्तेमाल कैसे करें ?
अमलतास का प्रयोग इतनी मात्रा में करना चाहिएः-
· काढ़ा- 20-40 मिली
· फलमज्जा (विरेचनार्थ)- 15-20 ग्राम
ईसका प्रयोग कई रोगों को ठीक करने में किया जाता है और इसके मुख्य प्रयोग नीचे दिये है :-
1. त्वचा रोग : त्वचा रोगों में इसका गूदा 5 ग्राम इमली और 3 ग्राम पानी में घोलकर नियमित प्रयोग से लाभ होता है | इसके पत्तों को बारीक पीसकर उसका लेप भी साथ-साथ करने से लाभ मिलता गये है |
2. कब्ज दूर करने के लिए : एक चम्मच फल के गूदे को एक कप पानी में भिगोकर मसलकर छान ले | इसके प्रयोग से कब्ज दूर हो जाता है |
गुलाब के सूखे फूल, सौंफ और अमलतास की गिरी बराबर मात्रा में लेकर पीस लें। एक कप पानी में दो चम्मच चूर्ण घोलकर शाम को रख दें। रात्रि में सोने से पूर्व छानकर पीने से अगली सुबह कब्ज़ में राहत मिलेगी।
3. सूखी खांसी ठीक करने के लिए : इसकी फूलों का अवलेह बनाकर सेवन करने से सूखी खांसी दूर हो जाती है |
4. बुखार ठीक करने के लिए : इसकी जड़ की छाल का काढ़ा ५० मिली. की मात्रा में नियमित प्रयोग से आमपाचन होकर बुखार ठीक हो जाता है |
5. गले की खरास ठीक करने के लिए: इसके लिए जड़ की छाल का काढ़ा बनाकर, गुनगुने काढ़े से गरारा करने से फायदा मिलता है |
6. एसिडिटी ठीक करने के लिए: फल के गूदे को पानी मे घोलकर हलका गुन्गुना करके नाभी के चारों ओर 10-15 मिनट तक मालिस करें। यह प्रयोग नियमित करने से स्थायी लाभ होता है ।
7. श्वास कष्ट ठीक करने के लिए अस्थमा के रोगी में कफ को निकालने और कब्ज को दूर करने के लिये फलों का गूदा दो ग्राम पानी में घोलकर गुनगुना सेवन करना चहिये ।
8. घाव ठीक करने के लिए : इसकी छाल के काढ़े का प्रयोग घावों को धोने के लिये किया जाता है । इससे संक्रमण नही होता है ।
9. गले की तकलीफें : अमलतास की जड़ की छाल 10 ग्राम की मात्रा में लेकर उसे 200 मिलीलीटर पानी में डालकर उबालें और पकाएं। पानी एक चौथाई बचा रहने पर छान लें। इसमें से एक-एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करने से गले की सूजन, दर्द, टांसिल्स में शीघ्र आराम मिलता है।
10. बिच्छू का विष : अमलतास के बीजों को पानी में घिसकर बिच्छू के दंश वाले स्थान पर लगाने से कष्ट दूर होता है।
11. बच्चों का पेट दर्द : इसके बीजों की गिरी को पानी में घिसकर नाभि के आस-पास लेप लगाने से पेट दर्द और गैस की तकलीफ में आराम मिलता है।
12. चर्म रोगों पर : अमलतास के पत्तों को सिरके में पीसकर बनाए लेप की चर्म रोगों यानी दाद, खाज-खुजली, फोड़े-फुसी पर लगाने से रोग दूर होता है। यह प्रयोग कम-से-कम 3 हफ्ते तक अवश्य करें। अमलतास के पंचांग (पत्ते, छाल, फूल, बीज और जड़) को समान मात्रा में लेकर पानी के साथ बनाए लेप से भी उपरोक्त लाभ मिलेंगे।
13. मुंह के छाले : अमलतास की गिरी को बराबर की मात्रा में धनिए के साथ पीसकर उसमें चुटकी-भर कत्था मिलाकर तैयार चूर्ण की आधा चम्मच मात्रा दिन में 2-3 बार चूसने से मुंह के छालों में आराम मिलता है।
14 वमन हेतु : अमलतास के 5-6 बीज पानी में पीसकर पिलाने से हानिकारक खाई हुई चीज वमन में निकल जाती है।
15. पेशाब न होना : पेशाब खुलकर होने के लिए अमलतास के बीजों की गिरी को पानी में पीसकर तैयार गाढ़े लेप को नाभि के निचले भाग (यौनांग से ऊपर) पर लगाएं।
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