बेल (Bael in Hindi): लाभ, उपयोग,

Bel benefits, uses,





बेल का भारतीय औषधियों में महत्त्वपूर्ण स्थान है । भारत के प्राचीन साहित्य और धार्मिक मान्यताओं में भी यह गौरवशाली वृक्ष माना गया है । इसके पेड़ प्राय: समस्त भारत में पाए जाते हैं तथापि बेल मध्यभारत, बिहार, बंगाल और दक्षिण भारत में अधिक होता है । इसके पौधे 9 मीटर या 25-30 फुट ऊंचे होते हैं । बेल की शाखायें सीधी होतीं हैं और उनमें एक इंच या इससे ड़े कठोर कांटे होते हैं । आमतौर पर डंठलों में 3-3 पत्ते एक साथ होते हैं । कभी-कभी 3 से अधिक पत्ते भी एक साथ देखें जाते हैं, जो बडा शुभ माना जाता है । पत्ते गहरे हरे और सुगन्ध युक्त होते हैं । वसन्त ऋतु की समाप्ति के अवसर पर पत्ते झड़ जाते हैं तथा चैत्-वैशाख में नए पत्ते निकलते हैं । इसके साथ ही हरिताभ सफेद रंग के मधुर सुगंध वाले फूल निकलते हैं, जिनमें 4-5 पंखुडियां होतीं हैं ।




बेल के फ़ल आरम्भ में छोटे, बीज रहित, गोल और हरे होते हैं । फिर धीरे-धीरे बढकर वे बड़े हो जाते हें तथा उनके पीले-पीले गूदे में सफेद बिनौले के समान कुछ मोटे बीज तथा उनके चारो ओर चिपचिपा गाढा रस हो जाता है । पकने पर बेल की ऊपरी परत कठोर और पीली हो जाती है । इसके साथ ही इसका गूदा गहरा पीला और सुगंध युक्त हो जाता है । फल पकने पर पेड पर केवल फल ही फल नजर आते हैं । पत्ते प्राय: झड जाते है ।



बेल दो प्रकार का होता है- जंगल में स्वयंजात तथा बागों में लगाए जाने वाले । जंगली बेल के पत्ते औरं फल छोटे होते हैं और इसका गूदा उतना स्वादिष्ट नहीं होता है । इसमें कांटे भी अधिक होते हैं । बांगों में लगाऐ जाने वाले बेल के पत्ते व फल बड़े होते हैं, छिलका भी मुलायम होता है तथा इसका गूदा स्वादिष्ट और मधुर सुगंध युक्त होता है। इन बेलों को कागजी बेल भी कह देते हैं । इसमें कांटे बहुत कम होते हैं । बेल दिव्य गुणों वाला वृक्ष है । इसके त्रिपत्रक से शंकर जो की पूजा की जाती है । इसे विषनाशक और पवित्र एवं वायुप्रदूषण  कों शुध्द करने वाला माना गया है । तोड कर रखें हुए बेलपत्र काफी दिनों तक हरे बने रहते हैं तथा डालों में लगे हुए पके फल अगर तोड़े नं जाएँ तो कहा जाता है कि वर्षा ऋतु के बाद वे पुन: हरे हो जाते हैं. 



विविध नाम – संस्कृत-बिल्ब, श्रीफल, हिन्दी – बेल, लेटिन –एगले मार्मेलोस।  




गुण-धर्म - कच्चा बेलफल, दीपन, पाचन, लघु, स्निग्ध, तिक्त, कषाय एवं ऊषण होता है । कच्चे फल का गूदा ही दवाओं में अधिक प्रयोग किया जाता है । इसकों विशेषता यह है कि यह मल को बांधने वाला होने पर भी पाचक है । यह प्रवाहिका, रक्त प्रवाहिका, संग्रहणी, आमवात एवं शूल में अत्यन्त हितकर है ।



बेल मूत्राधिक्य और मूत्र शर्करा को कम करता है । यह मधुमेह, श्वेत प्रदर,  और खूनी बवासीर में भी उपयोगी है । यह कफनाशक, हृद्य, वाशामक और रोचक भी होता है ।




नव्य मतानुसार बैल के गूदे में टेनिन, पेक्टिन, शर्करा, म्यूसिलेजयानी लोआबी पदार्थ, उड़नशील तेल, मार्मेलौसिन, कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन, वसा, विटामिन सी तथा कुछ लवण आदि महत्त्वपूर्ण तत्त्व पाए जाते हैं ।



अन्य फल पकने पर विशेष गुणकारी होते है किन्तु बेल की एक विशेषता यह भी है कि कच्चा वेल गूदा ओषधीय दृष्टि मे अधिक उपयोगी होता है । तथापि पका हुआ बेल मधुर रस प्रधान, उष्ण, दाकारक, मृदुरेचक, वातानुलौमक, हदय को हितकारी तथा बलकारक होता है । अधिक मात्रा में लेने से यह अपचन का पारण भी बन जाता है । पके हुए बेल की अपेक्षा कच्चे बेल का गूदा प्रवाहिका, अतिसार आदि उदर व आन्त्ररोगों में अधिक उपयोगी होता है ।

बेके पत्ते औषधीय काम के लिए अत्यन्त मूल्यवान होते हैं । बेलपत्रों के सेवन से शरीर में चयापचय का काम विधिवत होने में मदद मिलती है । इससे आहार शरीर में अधिकाधिक रूप में आत्मसात होने लगता और मलमूत्र कम निकलहै । इसके सेवन से मन एकाग्र रहता है, ध्यान केन्दित करने में भी सहायता मिलती है तथा पत्तियां शरीर को स्थायित्व भी प्रदान करती हैं ।



हाल के वर्षों में किए गए परीक्षणों से पता चलता है कि बेल के पत्ते सेवन करने से शारीरिक वृद्धि होती है । बेल के पत्तों को उबालकर यह काढा पिलाने से ह्रदय पर डिजीटेलिस जैसा बलदायक प्रभाव पडता है ।




प्रचलित शास्त्रीय योग- बिलवाड़ी चूर्ण, बिल्ब तेल, बिल्ब  पल्लासव, बेल का मुरब्बा, बेल-शर्बत आदि ।




विविध प्रयोग तथा उपयोग



बेल के कच्चे गूदे के छोटे-छोटे टुकड़े करके धूप मे सुखाकर रख लेना चाहिए ।



1. अतिसार, प्रवाहिकां (पेचिश) आदि - सूखी बेल गिरी 25 ग्राम, सफेद कत्था 10 ग्राम, को कूट-पीसकर महीन चूर्ण करें । अब इसमें 50 ग्राम मिश्री चूर्ण अच्छी तरह मिलाकर रख लें । मात्रा- 1- 1 ग्राम दिन में 5 बार ताजे पानीभ के साथ खिलाएं । इससे सभी तरह के अतिसार में लाभ होता है ।



2. एक कच्चे या अधपके बेल को पटक कर चिटका लें तथा उसे आग पर रखकर इस प्रकार भून लें कि उनका छिलका जल जाये । अब गूदे को निकाल बीज अलग करके उसे सुखा लें । अब 50 ग्राम यह सूखा हुआ बेल का गूदा और 10 ग्राम सूखी सोंठ कूटकर चूर्ण बनाले । इसमें 75 ग्राम मिश्री का चूर्ण मिला दें । मात्रा- 1 ग्राम से 2 ग्राम तक दिन में 3-4 बार जल से लें । इमसें दस्तों तथा सब तरह की पेचिश में वहुत लाभ होता है ये यह संग्रणी और जीर्ण प्रवाहिका में भी अच्छा लाभ पहुंचात है।





3. भुनी या कच्ची सुखाई हुई बेल गिरी तथा आम की गुठली की गिरी बराबर-बराबर पीसकर रख लें । मात्रा - 2 ग्राम से 3 ग्राम तक सुबह-शाम फांक कर ऊपर से उबले चावल का मांड 4-6 चम्मच या कच्चे चावल का धोवन 1 -2 का बकप ताजा जल पियें । इससे सभी तरह के दस्त, पेचिश ठीक होते है ।



4. सूखी बेल गिरी 50 ग्राम तथा धनिया 25 ग्राम कूट-पीसकर छान में । इसी में मिश्री मिला ले। मात्रा – 4-5 ग्राम 20-25 ग्राम चावल के धोवन के साध दिन में तीन बार ले खूनी दस्त, खूनी पेचिश तथा गर्मी के कारण आने वाले दस्तों में फायदा होता है ।



5. बच्चो का अतिसार - सूखी हुई बेल गिरी के टुकड़े किसी साफ पत्थर पर चंदन की तरह अर्क सौंफ डाल कर घिस लें । 1/4 से 1/2 चम्मच तक यह क्या दिन में 2-3 बार उम्र के हिसाब से बच्चों को चटाएं । इसमें जरा सी चीनी या शहद भी मिला लिया करें । इससे हरे-पीले दस्त ठीक हो जाते है ।




6. कब्ज - रात में अच्छी तरह पके हुए बेल के गूदे को 100-150 ग्राम तक खाने से आंतों का मल मुलायम हो जाता है और उसके सरक कर बाहर आने में आसानी हो जाती है । जिन्हें बहुत खुश्की रहती है उन्हें इस गूदे में चीनी या मिश्री मिलाकर इसे खाना चाहिए ।



7. शक्तिवर्धक योग- सुखी बेलगिरी 100 ग्राम असगन्ध 100 ग्राम को कूटपीस छान ले । इसमें 200 ग्राम पिसी हुई मिश्री मिला लें । मात्रा - 4-5 ग्राम प्रात:-सायं दूध के साथ । इसका प्रभाव मस्तिष्क व स्नायुमंडल पर बहुत अच्छा पडता है । रोगों से आई कमजोरी, शारीरिक मानसिक सुस्ती ठीक होती हे और धातु पुष्ट होकर शाक्ति मिलती है । इससे पाचन क्रिया भी ठीक बनी रहती है ।







8. मधुमेह- बेल पत्रों को पीसकर रस निकालें । 10-10 ग्राम यह रस दिन में 3 बार पीते रहने से मूत्र में शर्करा आना बन्द हो जाता है । मधुमेह में इसमे वड़ा लाभ मिलता है ।



9. बेल पत्र 8-10 नग, नीम के पत्ते 8-10 नग तथा तुलसी के पत्ते 5-6 नग प्रतिदिन सुबह-सुबह पीस कर या चबलाकर खाने की आदत बना ले । इससे 2-3 माह में ही मधुमेह के लक्षणों में उल्लेखनीय अन्तर आ जाता है ।



विशेष - मधूमेह में यदि इन्तुलिन आदि लेते है तो इसका प्रयोग करते हुए उसे घटाते जाएं या अन्तर बढाते जाएं । इसके साथ ही परहेज से रहना बहू जरूरी है । मीठी चीजों, भारी पदार्थों तथा स्टार्च पदार्थों से परहेज रखना पाहिए । अपने चिकित्सक की सलाह से उपर्युक्त योगों का सहयोगी दवा के तौर पर लेना हितकर होगा ।



10.                 धातु की दुर्बलता, प्र, प्रमेह, स्वानदोष आदि – बेल पत्तों को सुखाकर चूर्ण बना लें । मात्रा- 2-3 ग्राम सुबह-शाम शहद से चाट कर दूध पियें अथवा चीनी मिलाकर फांक कर दूध या पानी लें ।



11.                 शर्बत बेल- पका हुआ बेल तोडकर उसके बीज अलग कर दें । फिर परिपक्व गूदे को चार गुने पानी में डाल कर अच्छी तरह मसलें । जब सारा गुदा पानि में मिजाए तो उसे महीन कपडे में छान लें । अब जितना रस हो उससे आधी मात्रा में चीनी उसमें मिलाकर आग पर चढावें । अब ½ ग्राम फिटकरी एक कप पानी में घोलकर इसमें से 4-6 बूंद बीच-बीच में इस पकते हुए शर्बत में छींटे दे दिया करें । इससे मैल साफ होता रहेगा । इस मैल को निकालते रहना चाहिए । जब 1 तार की चाशनी बन जाए तो उतार कर पुन: छान लें और बोतलों में डाट न्द करके रखें ।



मात्रा- 5-6 चम्मच तक ऐसे ही चाटें या पानी में मिलाकर शर्बत पियें । 1 गिलास पानी में 5-6 चम्मच शर्बत मिलाना पर्याप्त होता है । यह शर्बत गर्मियों के लिए अमृत तुल्य लाभकारी है । इससे गर्मी कम सताती है; पाचन ठीक रहता है और यह मस्तिष्क को शीतल भी रखता है । अतिसार, अपचन, गैस बनने, पेचिश, आँआदि में इसको ऐसे ही या ईसगोल की भूसी में पानी के साथ मिलाकर लिया जा सकता है । यह हर उम्र वालों को लाभकारी होता है । इसे दवाओं के अनुपात रुप में भी प्रयोग किया जा सकता है ।



यह शर्बत खांसी में भी लाभकारी है । इसे खुश्क, वातज़ व पित्तज कास में 1-2 चम्मच की मात्रा में बार-बार प्रयोग करना चाहिए । बच्चों की कुकुर खांसी व पुराने दुखद दस्तों में भी किंचित कम मात्रा में इसका प्रयोग हितावह रहता है ।



12.                 बेल का मुरब्बा - मुरब्बा बनाने के लिए बेल फलों का चुनाव उस समय किया बाता है जब इनका गूदा पीला पडना शुरू हो जाये । उत्तर प्रदेश में सितम्बर से नवंबर तक बेल पकने शुरू हो जाते हैं । इन फलों को मय छिलको के तेज आरी से आधे-पौन इंच मोटे गोल टुकडों में काट लें । इसके बाद तेज धार वाले चाकू को छिलके के अंदर की ओर छिलके के साथ-साथ चलाते हुए गूदे के टुकडों की अलग कर ले। ऐसा करने से फल के टुकडे गोल रूप में कट जाते हैं । अब इन टुकडों मे से ल्हेसदार पदार्थ तथा बीजों को निकाल कर इनको कांटे से अच्छी तरह गोद दें और 2-3 प्रतिशत चूने के पानी में तीन-चार घण्टे पड़ा रहने देने के बाद साफ पानी से कई बार धो लें ताकि इनमें से चूने का अंश निकल जाये । ब्लाचिंग  करने के लिए एक पोटली में इन्हें बांध कर उबलते पानी में लगभग 8-1 0 मिनट तक पोटली को लटकाए रखें । ध्यान रहे कि लांचिंग क्रिया में फलों के टुकड़े थोड़े मुलायम हो जाना चाहिए । यह एकदम गल न जायें । लांचिंग करने के बाद ठंडे पानी में डूबो कर टुकडों को ठण्डा कर लें । थोडी देर इन्हें हवा लगने दें ताकि इनमे उपस्थित फालतू पानी उड़ जाये और यह कुछ फरहरे से हो जायें ।



मुरब्बा बनाने के लिए उपरोक्त उपचारित टुकडे एक किलो तथा एक किलो चीनी लीजिए ।

आधा किलो चीनी को एक किलो पानी में घोल कर आग पर रखें । जब शर्बत उबलने लगे तो इसमें 2 ग्राम पिसा हुआ साइट्रिक एसिड डाल दें । इसमें जो झाग आएं उन्हें उतारते रहें । फिर इसे कपडे से छान कर इसमें वेल के टुकडे डाल कर चाशनी को आधा घण्टे तक पकाएं और टुकडों को इसमें रात भर पड़ा रहने दें । अब इसमें से फल के टुकडों को निकाल कर शेष आधा किलो चीनी इससे मिला दें । इसे पुन: उबाल कर छान लें । अब इस चाशनी में फल के टुकडों को डाल कर उस समय तक पकाएं कि दो तार की चाशनी अर्थात् शहद जैसी गाढी चाशनी बन जाए । फलों को इस चाशनी में एक सप्ताह पड़ा रहने दें । यदि ऐसा प्रतीत हो कि चाशनी कुछ पतली ही गई है तो पुन: थोडी देर पका कर शहद जैसी गाढी कर लें । ठण्डा हो जाने पर उचित पात्रो में रख दें ।

उपयोग – बेल का मुरब्बा आमाशय व आन्त की गर्मी को शान्त करता है । इमे 30 से 50 ग्राम की मात्रा में दिन में एक-दो बार लेना चाहिए । यह अतिसार मे विशेष रुप से उपयोगी है ।

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