गर्दन का दर्द सर्वाइकल पेन, Cervical spondylosis.


जिस प्रकार मजबूत वृक्ष का आधार उसकी गहरी  मजबूत जड़ें होती है, ठीक उसी प्रकार शरीर में रीड या मेरुदंड का स्थान होता है, मेरुदंड में कुल 33 कशेरुका होती हैं, जिनमें सात कशेरुका गर्दन से संबंधित हैं, इन्हें सर्वाइकल वर्टिब्रा कहते हैं, इन्हीं कशेरुकाओं से निकली वानाडिया मस्तिष्क, आंख, माथा, कान, नाक, जीभ, तालू, मुंह, दांत, थायराइड ग्रंथि एवं कहुनिया का संचालन करती है, इस कारण गर्दन में ऐसी कोई विकृति हो जाने पर इन समस्त अंगों पर भी असर पड़ता है .


लक्षण -
गर्दन के दर्द की शुरू की अवस्था में गर्दन में अकड़न  दर्द महसूस होता है, धीरे-धीरे दर्द  अकड़न बढ़ती जाती है, दर्द कभी कंधे  सिर  दोनों बाजुओं में शुरू हो जाता है, इससे एक या दोनों बाजुओं में सुन्नता आने लगती है, इससे सब्जी काटने या लिखने में कठिनाई महसूस होती है, 

कारण - 
बैठने या खड़े रहने का गलत ढंग जैसे - कूबड़ निकाल कर बैठना या खड़े रहना,
आहार में खनिज लवण एवं विटामिंस का भाव, 
तली भुनी मसालेदार या ठंडा बासा खाना, 
शारीरिक श्रम का भाव, 
नरम गद्देदार, मोटे गद्दों पर सोना, 
कब्ज या पाचन में गड़बड़ी, 
चिंता, क्रोध, ईर्ष्या, शोक या मानसिक तनाव, 
किसी दुर्घटना आदि में लगी चोट, आदि अनेक कारण हो सकते हैं.

गर्दन के दर्द का प्राकृतिक उपचार -

आहार प्रकृति चिकित्सा का आधार स्तंभ है, यदि रोगी का आहार गलत या पौष्टिक तत्वों से रहित है अर्थात विटामिन डी, लोहा, कैल्शियम, फास्फोरस, आदि की कमी है तो हड्डियों का विकास रुक जाता है,  उनमें विकृति पैदा हो जाती है, इस कारण इन तत्वों की कमी पूरी करने के लिए रोगी को सात्विक एवं विटामिन से भरपूर खाना देना चाहिए, रोगी के आहार में गाजर, नींबू, आंवला, मूली, पालक, मेथी, टमाटर आदि सब्जियों का भरपूर समावेश होना चाहिए. फलों में रोगी को संतरा, मौसमी, सेब, अंगूर, पपीता, चीकू, खाने को देना चाहिए. चोकर युक्त रोटी, अंकुरित खाना देने से शीघ्र लाभ होता है .

गर्दन के दर्द में जल चिकित्सा -
गर्दन के दर्द में जल चिकित्सा जैसे स्टीम बाथ, गरम ठंडी पट्टी का से, आदि उपचार लाभदायक होते हैं .इन उपचारों द्वारा रक्त संचालन बढ़ जाता है,  रोम कूपों द्वारा विजातीय पदार्थ बाहर निकल जाते हैं, इससे रोगी को आराम महसूस होता है .

गर्दन दर्द को मालिश द्वारा चिकित्सा -
रोगी की शक्ति के अनुसार गर्दन पर तिल या सरसों के तेल की मालिश करनी चाहिए, मालिश हल्के हाथों से करनी चाहिए .
गर्दन के दर्द के योगासन द्वारा चिकित्सा - 
गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं, धीरे-धीरे गर्दन को आगे की ओर झुकाए, ठुड्डी को कंठ कूप से लगाएं, गर्दन को दाएं से बाएं, बाएं से दाएं हल्के झटके के साथ घुमाए, सर्पआसन भुजंगासन, धनुरासन करें, प्राणायाम  ध्यान करें, सुबह खुली ताजी हवा में घूमे .

सर्वाइकल दर्द के लिए आयुर्वेदिक औषधियां :-
(1)  दशमूल क्वाथ (2)  प्रसारिणी तेल (3)  लक्षा गुग्गुल (4)  योगराज गुग्गुल .


विशेष सावधानी -
गर्दन के रोगी को चिकित्सा के समय अधिक बौद्धिक श्रम नहीं करना चाहिए . 
गर्दन या आंखों पर अधिक बोझ या तनाव आए ऐसे कार्य नहीं करने चाहिए . 
प्रतिदिन 6 से 8 घंटे की तनाव रहित नींद बहुत जरूरी है . 
उठते बैठने एवं सोने की सही मुद्रा का ध्यान देना चाहिए, जैसे यदि खड़े हैं तो तन कर खड़े रहना चाहिए बैठने की स्थिति में पीठ बिल्कुल सीधी होनी चाहिए, सोने के लिए सख्त तख्त का प्रयोग करना चाहिए .  गर्दन के नीचे तकिए का प्रयोग नहीं करना चाहिए, 
किसी भी कार्य को करते समय रीड सीधी तनी हुई रहनी चाहिए .
इस प्रकार गर्दन के रोगी संतुलित आहार प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा शीघ्र लाभ प्राप्त कर सकते हैं .

सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस  से बचने के उपाय 

भले ही स्पॉन्डिलोसिस को रोकने का कोई ठोस उपाय नहीं है परन्तु कुछ आसान से कदम उठाकर हम इस बीमारी से बच सकते है:
· एक सही पोस्चर रखना हमारे गर्दन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है | आप किस ढंग से बैठे हैं और आपकी गर्दन किस अवस्था में है इसका हमेशा ध्यान रखें | “कोशिश करें की आप हमेशा पीठ और गर्दन सीधा करके बैठें |”
· ज़्यादा भारी चीज़ें उठाकर अपने गर्दन और कन्धों को तनाव न दें |
· सोते वक़्त ध्यान रहे कि आप अत्यंत ऊँचे तकिये के ऊपर नहीं सो रहे हैं | एक माध्यम ऊंचाई वाला तकिया गर्दन के लिए सबसे सही होता है |
· रोज़ थोड़ा थोड़ा व्यायाम करें | इससे न सिर्फ आपके गर्दन और कंधे परन्तु आपके पूरे शरीर में स्फूर्ति आएगी |
· अपना पोस्चर ठीक करने के लिए आप विशेष प्रकार के योग आसन भी कर सकते हैं | इससे मांसपेशियों में मज़बूती भी आती है |
· लगातार एक ही पोस्चर में कंप्यूटर के सामने न बैठें | काम के बीच में ब्रेक लें और पूरे दिन एक्टिव रहे |


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