नीम का औषधीय गुण, फायदे व उसके उपयोग, Neem drug properties, benefits and uses.
भारत का प्रसिद्ध वृक्ष है, यह सम्पूर्ण भारत मे पाया जाता है, वर्षा ऋतु में स्वाभाविक रूप से ही इसके बीज उग आते हैं, यह काफी ऊंचा, अनेक शाखाओं वाला और घनी छतरी दार हरा-भरा वृक्ष होता है। टहनियों से इधर-उधर अनेक पत्रक दंडिकाए निकलती है, इनकी लंबाई लगभग 8 से 14 इंच या लगभग 22 से 37 सेंटीमीटर तक होती है। इन शलाकाओं के आमने-सामने 10-15 तक के पत्ते होते हैं, पत्तों का पिछला भाग छोड़ा और नुकीला होता है तथा इधर-उधर आरी की तरह दांते होते हैं, पत्ते गहरे हरे रंग के नसों वाले होते हैं।
नीम के पुष्प छोटे-छोटे, श्वेत रंग के एवं खुशबूदार होते हैं तथा पत्तों के पास से गुच्छों मे लगते हैं, नीम के फलों को निबोली, निबोरी, निमकोरी अथवा निमकौली कहते है, नीबोलिया ½ से 3/4 इंच तक लंबी और पहले हरी होती है, लेकिन पकने पर पीली हो जाती हैं, कच्ची अवस्था में इन्हे दबाने पर दूध निकलता है, मगर पीले पके फल को दबाने पर चिपचिपा मधुर कडुआ पदार्थ आता है। निबोली के भीतर बीज होता है, तोड़ने पर गिरी निकलती है जिसमें तेल निकाला जाता है ।
नीम के पत्ते स्वाद में कड़वे होते हैं, अंदर की छाल पीताभ रंग की होती है और इसका स्वाद कुछ कसैलापैन लिए हुए काफी तीखी होती है तथा इसमें तीव्र रुचिकर गंध आती है, गिरी का तेल हल्के या गाढ़े पीले रंग वाला, स्वाद में तीखा-कड़वा एवं तीव्र गंध युक्त होता है।
पतझड़ के समय नीम की पत्तियां गिर जाती है, फिर ताम्रलोहित कोमल हरे-हरे पत्ते निकलते हैं। वसंत में इसमें पुष्प आते हैं और गर्मियों में वर्षा ऋतु की शुरुआत में इसमें फल लगते हैं, कभी-कभी किसी पुराने वृक्ष से एक प्रकार का काफी मात्रा में पानी निकलने लगता है, यह पिताभ फेनयुक्त और तेज गंध वाला होता है। नीम के पेड़ के हर तत्व चाहे वह पत्ते हो, फल हो, छाल हो, जड़ हो सभी किसी न किसी प्रकार से औषधि में प्रयोग किए जाते हैं। चरक संहिता, सुश्रुत संहिता जैसे पुराने चिकित्सा ग्रंथों में इसका उल्लेख सराहनीय है। यह एक प्रकार से औषधालय है।
नीम को संस्कृत व हिन्दी में नीम, लेटिन में आजाडीरेक्टा इंडिका कहते हैं।
गुणधर्म और उपयोगिता-
नीम हल्का, अरुचिनाशक, कसैला, शीतवीर्य, कफपित्त शामक, ग्राही मतलब मल बांधने वाला, कृमि नाशक, रक्तशोधक, दाहशामक, घाव भरने वाला एवं ज्वरनाशक है, यह प्यास, खांसी ,पित्त प्रकोप, कतिपय रक्त विकार एवं प्रमेह नाशक है ।
नीम की छाल में कई प्रकार के कड़वे पदार्थ पाए जाते हैं, जिनमें मार्गोसीन तथा निमबीडीन उल्लेखनीय है, इसके अतिरिक्त इसमें निम्बेस्टेरोल, एक उड़नशील तेल और लगभग 6% टैनिन पाया जाता है। उपरोक्त और उड़नशील तेल इसके फूलों में भी पाया जाता है । पत्तियों में कड़वे तत्व अपेक्षाकृत कम होते हैं परंतु छाल की अपेक्षा यह जल में अधिक घुलनशील होते हैं, इसकी निंबोली की गिरियों में से 4% तक एक स्थिर तेल प्राप्त होता है जिसे नीम का तेल कहा जाता है।
नीम में सिनकोना की छाल के समान ही ज्वर प्रतिबंधक गुण होता है।
नीम के शास्त्रीय प्रयोग -
कण्डुधन महाकषाय, निम्बादिचूर्ण, निम्बादि क्वाथ , निम्बादि तेल, निम्बारिष्ट, अर्शोहर वटी, निम्बहरिद्राखंड, पंचतिक्तघृत, हब्बे बवासीर आदि प्राचीन योग है ।
विविध प्रयोग तथा उपयोग
विविध प्रकार के ज्वर - नीम के कोमल पत्ते 25 ग्राम, फिटकरी फूला 12 ग्राम, एक साथ खरल में अच्छी तरह घोटकर 4-4 रत्ती की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें, एक-एक गोली 4-4 घंटे पर ताजे अथवा मिश्री मिले हुए पानी से लें, मलेरिया सहित सभी प्रकार के ज्वरों पर उपयोगी है।
नीम की जड़ या तना की अंतरछाल 60 ग्राम को मोटा-मोटा कूटकर 12 गुना जल में मिलाकर लगभग 20 मिनट तक उबालें फिर उतारकर छान लें, मलेरिया का बुखार चढ़ने से पहले लगभग 4 से 8 तोला तक यह दवा 1 से 3 घंटे के अंतर पर दो से तीन बार पिलावे। इससे मलेरिया जोर नहीं चढ़ता है। हानि रही दवा है। कुनैन से भी ठीक ना होने वाले मलेरिया ज्वर इससे ठीक हो जाते हैं। ज्वर ना आने के बाद सुबह दोपहर शाम 3 से 4 दिन तक देते रहे।
बवासीर - नीम और बकायन के बीजों की सूखी गिरी 50-50 ग्राम, छोटी हरड़ और रसौत 50 ग्राम, घी में भुनी हींग 30 ग्राम, बीज निकले हुए मुनक्के 60 ग्राम बर्तन में अच्छी तरह कूट कर सिल या खरल में पीसकर मटर के बराबर गोलियां बना लें, मात्र दो दो गोलियां प्रातः शाम दूध या पानी से लें, यह खूनी और बादी दोनों प्रकार की बवासीर के लिए अत्यंत उपयोगी है।
नीम की गिरी का तेल दो से पांच बूंद तक कैप्सूल में भरकर प्रातः काल निगल लिया करें। साथ में केवल दूध चावल का भोजन करें। दोनों प्रकार के अर्थ में लाभदायक है।
फोड़ा-फुंसी - नीम की हरी पत्तियां 25 ग्राम तथा चावल का आटा 25 ग्राम इन दोनों को सिलबट्टी पर पीसकर चटनी जैसी बना लें । ऐसे गंदे फोड़े और जख्म जिनमें कीड़े पड़ गए हों उनपर इसे बांधने से तुरंत लाभ होता है, सुबह की पट्टी शाम को बदल देना चाहिए।
त्वचा के रोग - नीम की मोटी टहनी की छाल उतार डालें, फिर उससे चंदन की तरह पानी के साथघिस ले, नीम के इस चंदन को बच्चों व बड़ों के मौसमी दानों पर लगाने से भी शीघ्र ठीक हो जाते हैं। यह नीम चंदन मुहांसों पर भी गाढ़ा-गाढ़ा प्रति रात्रि को लेप करें, सुबह इसे गर्म पानी से धो डालें, कुछ ही दिनों में मुंहासे ठीक हो जाएंगे।
नीम का तेल 25 ग्राम में जरा सी कपूर मिलाकर रख लें, यह तेल घाव भरने के लिए बहुत उपयोगी है, पहले उबलते पानी में नीम की पत्तियां डालकर घाव को धोकर साफ रुई से पोछकर साफ कर लें, फिर रुई का फाहा बनाकर इस तेल में भिगोकर रखें व पट्टी बांध दें। इससे प्रतिदिन करें, घाव अतिशीघ्र ठीक हो जाएगा।
सिर में जुएं या लीख होने पर नीम के तेल को सिर पर अच्छी तरह मलें, फिर सुबह साबुन से सिर धो डालें, इस तरह तीन-चार दिन करें, जुए व लिख नष्ट हो जाएंगे।
नीम के पत्तों को पानी में उबालें ठंडा होने पर इससे बाल धोए कुछ दिनों में ही बाल झड़ना बंद हो जाएंगे और मजबूत व काले होंगे।
चमत्कारी निम्बादि चूर्ण - नीम के पत्ते छाया में सुखाएं हुए 100 ग्राम, अजवाइन 50 ग्राम, जवाखार, सोंठ, कालीमिर्च, पिपली, गुठली निकाली हुई हरड़, गुठली रहित बहेड़ा, गुठली रहित आंवला, सेंधा नमक, बिडनमक और काला नमक, ये 10 औषधियाँ प्रत्येक 10-10 ग्राम ले, सबको कूट छानकर रख लें। इस चूर्ण की एक खुराक 2 से 6 ग्राम तक की है। मलेरिया ज्वर में तो यह रामबाण है, पारी के बुखार में ज्वर उतरने पर उसी दिन दो खुराक दें, अगले दिन चार खुराक दें, पारी वाले दिन बुखार चढ़ने से पहले हर 1 ½ घंटे बाद एक-एक खुराक देकर चार खुराक दे डालें। सब पैत्तिक ज्वरों मे इसके प्रयोग से लाभ होता है। जिगर की कमजोरी, पित्त का अवरोध, आंखों का रंग मेला या पीला रहना आदि अवस्थाओं में इसे कुछ दिन लगातार दो बार देने से जिगर सक्रिय रहता है और जिगर तथा पित्ताशय से पित्त का स्राव सुचारू रूप से होने लगता है। जिगर की कमजोरी के कारण उत्पन्न हुई और संबंधी अवस्थाएं इसके सेवन से ठीक हो जाती है। आमाशय की मांसपेशी में बल की कमी हो जाने, भूख न लगने, मुंह का स्वाद खराब रहने आदि में, दिन में दो बार देते हैं। यह औषधि अमाशय के लिए अच्छा टॉनिक है।
कब्ज – नीम के फूलों को सुखाकर इसका चूर्ण बनाकर रख लें, इस चूर्ण को 1 से 2 ग्राम की मात्रा में रात को गर्म पानी के साथ सेवन करें, कुछ दिन इसे लेने पर आंतों की शक्ति बढ़ जाती है और दस्त शुद्ध होने लगता है, यह प्रयोग पुराने कब्ज के लिए हितकर है।
अर्श रोग - नीम की निंबोली की गिरी का तेल पांच बूंद शक्कर या कैप्सूल में रखकर निकलते रहने से थोड़े ही दिनों में मस्से नष्ट हो जाते हैं और कब्ज भी नहीं रहता तथा रोग मिट जाने से शरीर बलवान बन जाता है।
नीम के तेल का उपयोग
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नीम के तेल का उपयोग
Neem oil usage
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इसके तेल से
मालिश करने से कई प्रकार के त्वचा रोग ठीक हो जाते हैं।
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मच्छर भगाने में
भी नीम बहुत बढ़िया औषिधि का काम करता है।
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इसके लिए इसके तेल का दिया जलाएं तो मच्छर मक्खी भाग जाते हैं। और डेंगू
मलेरिया आदि रोगों से बचाव होता है।
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नीम के पत्ते के
फायदे / benefits of neem leaves
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इसकी पत्तियां
चबाने से खून साफ होता है। और त्वचा में होने वाले इन्फेक्शन, दाद, खाज, खुजली आदि चर्म रोगों
से निजात मिलती है।
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इसके पत्ते
जलाने से उसके धुंए से मच्छर नष्ट हो जाते हैं।
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नीम के तेल का उपयोग
1.
चर्म रोग में नीम बहुत ही चमत्कारिक असरदार परिणाम दिखाता है। फोड़ा फुंसी
या घाव होने पर इसके 25 ग्राम तेल में थोड़ा सा कपूर मिलाकर
लगाने से लाभ मिलता है।
2.
इसके तेल की मालिश गठिया या सूजन में करने से आराम होता है। अनाज या कपड़ों
या किताबों को दीमक, कीड़े – मकोड़ों से बचाने के लिए उनमें
इसके पत्ते रखें तो कीड़े नहीं लगते।
3.
जल जाने पर है- जले हुए जगह पर नीम की निंबोली का तेल लगाने पर लाभ मिलता
है।
4.
बुखार होने पर नीम की जड़ को उबालकर पीने से बुखार उतर जाता है।
इसके
अलावा बहुत सारे फायदे, उपयोग हैं। यदि इस की कोमल पत्तियां
रोजाना खाली पेट निराहार सुबह के वक्त अगर आप खाते हैं तो आपको ढेरों बीमारियों से
छुटकारा अपने आप ही मिल जाता है। मधुमेह से लेकर ऐड्स कैंसर ना जाने किस किस तरह
की बीमारियों का इलाज इसके द्वारा संभव है। तो सिर्फ जरूरी है तो इसका नियमित
तौर पर इस्तेमाल करने की अपनी दिनचर्या में इसको जरुर शामिल करें और इसका
परिणाम देखें।
नीम के नुकसान
1. ऑटो-इम्यून रोगों का कारण
यदि
आपको कोई ऑटो-इम्यून रोग है तो आपको नीम के प्रयोग से बचना चाहिए।
नीम
प्रतिरक्षा प्रणाली को अत्यधिक सक्रिय कर देता है और कई ऑटो-इम्यून रोग जैसे
स्केलेरोसिस का कारण बनता है।
हमें
ऐसी स्थिति में नीम के प्रयोग से बचना चाहिए व डॉक्टर की सलाह को तरजीह देना
चाहिए।
2. शिशुओं के लिए हानिकारक
मौखिक
रूप से नीम का सेवन शिशुओं को गंभीर रूप से हानि पहुँचाता है।
नीम
के दुष्प्रभावों के चलते शिशुओं को उल्टी,
दस्त, कोमा वह मस्तिष्क संबंधी समस्याएं हो जाती हैं।
कभी
कभी तो शिशुओं की मृत्यु भी हो जाती है अतः नीम के सेवन से शिशुओं को बचाना आवश्यक
है।
3. गर्भवती महिलाओं को हानि
नीम
से गर्भपात होने का ख़तरा होता है अतः गर्भवती महिलाओं को नीम के सेवन से बचना
चाहिए।
यह
स्तनपान कराने वाली महिलाओं को भी हानि पहुँचाता है अतः उन्हें भी नीम से दूर रहना
चाहिए।
4. अन्य दुष्प्रभाव
नीम
पुरुषों व महिलाओं दोनों में ही बांझपन की समस्या का कारण बन सकता है।
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