बाबची के औषधीय फायदे । Medicinal benefits of Babchi.





समस्त भारत में बाबची के पौधे स्वयं ही उग आते हैं, कई जगह इनकी खेती भी की जाती है, इसके पौधे कोमल सीधे खड़े और ऊंचाई में 1 से 4 फुट तक होते हैं| साधारणत: इन पौधों की आयु 1 वर्ष होती है, इस पौधे की शाखाओं पर घना गांठदार रोम होता है, इसकी पत्तियां 1 से 3 इंच तक लंबी और रूपरेखा में गोलाकार होती है, पत्तियां दोनों ओर से चिकनी होती है परंतु इन पर सूक्ष्म काले काले उभरे हुए धब्बे पड़े होते हैं , इसके फूल छोटे बैगनी या नीले रंग के और पत्तों की बगल में से निकलने वाली मंजरी पर 10 से 30 तक की संख्या में आते हैं । इस पर काले रंग की लम्ब गोल फली आती है।  जिसमें एक-एक लंबोत्तर-सा बीज होता है, यह बीज मसूर के दाने की तरह किंतु कुछ बड़े काले रंग के होते हैं । इनमें से बेल की तरह सुगंध आती है।




विभिन्न नाम- संस्कृत बाकूची, पुतिफली, कुष्टधनी, हिंदी - बकुची, बाबची, अंग्रेजी - सोरेलिया सीडस। लेटिन - सोरालेआ कोरिलिफोलिया। बीज का नाम - सोरालेय सेमिना।



उपयोगी अंग - बाबची के बीज तथा इन बीजों से निकाला गया तेल ही प्रयोग में आते हैं ।



मात्रा - बीजों की मात्रा साधारणतया 1 से 3 ग्राम तक है, परंतु कृमि  के लिए 3 से 6 ग्राम तक की मात्रा उपयोग की जा सकती है , तेल केवल बाहरी प्रयोग के लिए होता है।



गुणधर्म - यहां गुणों में लघु ,रूक्ष ,कटु ,तिक्त रस वाली, उष्ण वीर्य, वात-कफ नाशक, कृमि धन,दीपन-पाचन, वाजीकरण तथा ज्वर धन है। इसका प्रयोग मुख्य रूप से श्वेत कुष्ठ में किया जाता है।

इसके बीजों में एक रालीय पदार्थ, एक स्थिर तेल, एक उड़न शील तेल तथा दो क्रिस्टली सत्व सोरोलेन तथा आइसोसोरलेन  पाए जाते हैं। यह दोनों ही तेल में घुलनशील होते हैं ।  बाबची में कुष्ट नाशक तथा कृमि नाशक गुण इन्हीं दोनों सत्वों के कारण होते हैं । आधुनिक परीक्षणों से ज्ञात हुआ है कि इन सत्वों में विषाक्त अधिक मात्रा देने पर भी बहुत कम होती है । इसे कृमि नाशक और जीवाणु नाशक गुणों की पुष्टि भी हो गई है





विभिन्न प्रयोग तथा उपयोग

श्वेत कुष्ठ या फुल बहरी - श्वेत कुष्ठ वाले को बाबची के बीच पहले दिन पांच दाने से आरंभ करके और प्रतिदिन एक-एक दाना बढ़ाकर प्रातः काल ठंडे जल से निकलवाए । इसी प्रकार बढ़ाते हुए 21 दानों पर पहुंचकर फिर एक-एक दाना हटाते हुए 5 दानों पर आ जाएं । इसी प्रकार यह कोर्स उस समय तक बार-बार करते रहे जब तक रोग अच्छा ना हो जाए । इसके साथ ही खालिस बाबची का तेल या उसके बराबर तुबरक तेल मिलाकर श्वेत धब्बों पर लगावे। इस प्रकार खाने और लगाने में बाबची का प्रयोग करने से कुष्ठ में लाभ होता है।



श्वेत कुष्ठ नाशक पेटेंट एलोपैथिक औषधियां

श्वेत कुष्ठ की चिकित्सा एलोपैथी में भी बाबची से ही की जाती है। इस पद्धति में बाबची के सत्व सोरालेन से खाने की टेबलेट तथा सफेद धब्बों पर लगाने के लिए क्रीम आदि बनाए जाते हैं । यह स्मरण रखना चाहिए कि बाबची के बीच की अपेक्षा उसका सत्व कई गुना अधिक वीर्यवान तथा उग्र होता है । अतः इन पेटेंट औषधियों को निर्माता कंपनी द्वारा बताई गई मात्रा तथा प्रयोग विधि के अनुसार ही सेवन करना चाहिए अन्यथा बड़ी हानि हो सकती है।

कुछ पेटेंट औषधियां निम्नलिखित है

सोरोलिन पी निर्माता ग्रीफन लैबोरेट्रीज मुंबई

मेक सोरलेन तथा नियो सोरा लेन - निर्माता मेक लैबोरेट्रीज मुंबई

मैनाडर्म - ज्याफे मैनर्स मुम्बई



बाकुची के प्रयोग से सफेद दाग का इलाज

बाकुची के बीज चार भाग और तबकिया हरताल एक भाग का चूर्ण बना लें। इसे गोमूत्र में मिलाकर सफेद दागों पर लगाएं। इससे सफेद दाग दूर हो जाते हैं।

बाकुची और पवाड़ को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर सिरके में पीसकर सफेद दागों पर लगाएं। इससे सफेद दाग में लाभ होता है।

बाकुची, गंधक व गुड्मार को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर तीनों का चूर्ण कर लें।  12 ग्राम चूर्ण को रात में जल में भिगो दें। सुबह निथरा हुआ जल सेवन कर लें तथा नीचे के तल में जमा पदार्थ को सफेद दागों पर लगाते रहने से सफेद दाग खत्म हो जाते हैं।

10-20 ग्राम शुद्ध बाकुची चूर्ण में एक ग्राम आंवला मिलाएं। इसे खैर तने के 10-20 मिली काढ़ा के साथ सेवन करें। इससे सफेद दाग की बीमारी ठीक हो जाती है।

बाकुची को तीन दिन तक दही में भिगोकर फिर सुखाकर रख लें। इसका शीशी में तेल निकाल लें। इस तेल में नौसादर मिलाकर सफेद दागों पर लेप करें। इससे सफेद दागों में लाभ होता है।

बाकुची, कलौंजी तथा धतूरे के बीजों को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर आक के पत्तों के रस में पीसें। इसे सफेद दागों पर लगाने से सफेद कुष्ठ के रोग में लाभ होता है।


बाकुची, इमली, सुहागा और अंजीर के जड़ की छाल को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर जल में पीसें। इसे सफेद दागों पर लेप करने से सफेद दाग रोग में लाभ होता है।

सफेद दाग से परेशान लोग बाकुची पवांड़ तथा गेरू को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर कूटकर पीसें। इसे अदरक के रस में खरल कर सफेद दागों पर लगाकर धूप में सेंके। इससे सफेद दाग की बीमारी में फायदा होता है।

सफेद दाग के इलाज के लिए बाकुची, गेरू और गन्धक को बराबर-बराबर मात्रा में ले। इसे पीसकर अदरक के रस में खरल कर 10-10 ग्राम की टिकिया बना लें। एक टिक्की रात को 30 मिग्रा जल में डाल दें। सुबह ऊपर का स्वच्छ जल पी लें। बाकी के नीचे की बची हुई औषधि को सफेद दागों पर मालिश करें। इसके बाद धूप सेंकने से सफेद रोग में लाभ होता है।

बाकुची, अजमोद, पवांड तथा कमल गट्टा को समान भाग लेकर कूट पीसकर मधु मिलाकर गोलियां बना लें। एक से दो गोली तक सुबह-शाम अंजीर की जड़ की छाल के काढ़ा के साथ सेवन करने से सफेद दाग में लाभ होता है।

सफेद दाग के उपचार के लिए 1 ग्राम शुद्ध बाकुची तथा 3 ग्राम काले तिल के चूर्ण में 2 चम्मच मधु मिला लें। इसे सुबह और शाम सेवन करने से सफेद दाग की बीमारी में लाभ होता है।

सफेद दाग मिटाने के लिए शुद्ध बाकुची अंजीर मूल की छाल, नीम छाल तथा पत्ते का बराबर-बराबर भाग लेकर कूट पीस लें। इसे खैर की छाल के काढ़ा में खरल करके रख लें। दो से पांच ग्राम तक की मात्रा को जल के साथ सेवन करने से सफेद दाग मिट जाता है।

बाकुची पांच ग्राम तथा केसर एक भाग लेकर दोनों को कूट पीस लें। इसे गोमूत्र में खरल कर गोली बना लें। इस गोली को जल में घिसकर लगाने से सफेद दाग रोग में लाभ होता है।

100 ग्राम बाकुची, 25 ग्राम गेरू तथा 50 ग्राम पंवाड़ के बीज लेकर कूट पीस लें। इसे कपड़े से छानकर चूर्ण कर लें और भांगरे के रस में मिला लें। सुबह और शाम गोमूत्र में घिसकर लगाने से सफेद दाग ठीक होता है।

बाकुची चूर्ण को अदरक के रस में घिस कर लेप करने से सफेद रोग में लाभ होता है।

बाकुची दो भाग, नीलाथोथा तथा सुहागा एक-एक भाग लेकर चूर्ण कर लें। एक सप्ताह भांगरे के रस में घोटकर रख लें कपड़े से छान लें। इसको नींबू के रस में मिलाकर सफेद दाग पर लगाने से सफेद दाग नष्ट होते हैं। यह प्रयोग थोड़ा जोखिम भरा होता है। इसलिए इसके प्रयोग के फलस्वरूप छाले होने पर यह प्रयोग बन्द कर दें।  

शुद्ध बाकुची चूर्ण की एक ग्राम मात्रा को बहेड़े की छाल तथा जंगली अंजीर की जड़ की छाल के काढ़े में मिला लें। इसे रोजाना सेवन करते रहने से सफेद दाग और पुंडरीक (कोढ़ का एक प्रकार) में लाभ होता है। 

बाकुची, हल्दी तथा अर्क की जड़ की छाल को समान भाग में लें। इसे महीन चूर्ण कर कर कपड़े से छान लें। इस चूर्ण को गोमूत्र या सिरका में पीसकर सफेद दागों पर लगाएं। इससे सफेद दाग नष्ट हो जाते हैं। यदि लेप उतारने पर जलन हो तो तुवरकादि तेल लगाएं।

1 किग्रा बाकुची को जल में भिगोकर, छिलके उतार लें। इसे पीसकर 8 ली गाय के दूध तथा 16 लीटर जल में पकाएं। दूध बच जाने पर उसकी दही जमा दें। मक्खन निकालकर उसका घी बना लें। एक चम्मच घी में 2 चम्मच मधु मिलाकर चाटने से सफेद दाग में लाभ होता है।
बाकुची तेल की 10 बूंदों को बताशे में डालकर रोजाना कुछ दिनों तक सेवन करने से सफेद कुष्ठ रोग में लाभ होता है।

बाकुची को गोमूत्र में भिगोकर रखें। तीन-तीन दिन बाद गोमूत्र बदलते रहें। इस तरह कम से कम 7 बार करने के बाद उसको छाया में सुखाकर पीसकर रखें। उसमें से 1-1 ग्राम सुबह-शाम ताजे पानी से खाने से एक घंटा पहले सेवन करें। इससे श्वित्र (सफेद दाग) में निश्चित रूप से लाभ होता है।



बाबची के नुकसान –

बाबची या बाकुची का अधिक मात्रा में सेवन सेहत को नुकसान पहुँचा सकता है। इसका अधिक मात्रा में सेवन करने से सिर दर्द, उल्टी, चक्कर आना, दस्त आना या खुजली आदि की समस्या भी हो सकती है इसीलिए इसका अधिक मात्रा में सेवन न करें।


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