साइटिका क्या है कारण, लक्षण, इलाज और बचाव – sciatica causes, symptoms and treatment
साइटिका नाड़ी जिसका ऊपरी सिरा लगभग 1 इंच मोटा होता है प्रत्येक नितंब के नीचे से शुरु होकर पैर के पिछले भाग से गुजरती हुई पैर की एड़ी पर खत्म होता है। इस नाड़ी का नाम अंग्रेजी में सायटिक नर्व है। इसी नाड़ी में जब सूजन और दर्द के कारण पीड़ा होती है तो उसे साइटिका का दर्द कहते हैं । (साइटिका नसों में होने वाला एक ऐसा दर्द है,जो कमर के निचले हिस्सों से शुरू होकर पैरों के नीचे तक जाता है।) इस रोग का आरंभ अचानक और तीव्र वेदना के साथ होता है । 30 से 50 वर्ष की आयु वर्ग के लोगों को यहां रोग होता है । साइटिका की एक समय में एक ही पैर में होती है सर्दियों के दिनों में रोगियों के दर्द में बढ़ोतरी होती है, किसी किसी को कफ प्रकोप भी दिखाई देता है । पूरे वात का प्रकोप सबको अधिक परेशान करता है। रोगी को चलने में कठिनाई होती है, रोगी जब सोता या बैठता है तो पैर की पूरी नस खिंच जाती है और बहुत कष्ट होता है ।
कारण
नसों पर दबाव का मुख्य कारण प्रौढ़ावस्था में हड्डियों तथा चिकनी सतह का घिस जाना होता है। मुख्य रूप से इस परेशानी का सीधा संबंध उम्र के साथ जुड़ा है। अधिक मेहनत करने वाले या भारी वजन उठाने वाले व्यक्तियों में यह परेशानी अधिकतर देखी जाती है क्योंकि ऐसा करने से चिकनी सतह में स्थित पदार्थ पीछे की तरफ खिसकता है। ऐसा बार-बार होने से अंतत: उस हिस्से में सूखापन आ जाता है और वह हिस्सा घिस जाता है। क्या होता है?
सायटिका में पैरों में झनझनाहट होती है तथा खाल चढ़ने लगती है। पैर के अंगूठे व अंगुलियां सुन्न हो जाती हैं। कभी-कभी कुछ पलों के लिए पैर बिल्कुल निर्जीव से लगने लगते हैं। इस समस्या के लगातार बढ़ते रहने पर यह आंतरिक नसों पर भी बुरा असर डालना प्रारंभ कर देती है
निदान
इस प्रकार के रोग का निदान X-रे से सम्भव नहीं। इसलिये ऍम.आर.आई. कराना आवश्यक होता है। उपचार की बात करें तो सही उपचार पद्धति से लगभग 85-90 प्रतिशत लोगों को सायटिका से निजात मिल जाती है। फिर भी इसमें पूरी तरह ठीक होते-होते 4 से 6 हफ्तों का समय लग ही जाता है।
बड़े पैमाने पर 4-5 दिनों के पूर्ण शारीरिक आराम और दवाओं व इंजेक्शन की मदद से दर्द नियंत्रण में लाया जा सकता है। अगर बहुत ज्यादा दर्द हो रहा हो तो ‘स्टेराइड’ का उपयोग भी करना पड़ता है और कभी-कभी कमर के अंदर तक इंजेक्शन द्वारा दवाओं को पहुंचाना पड़ता है।
इसके अलावा कसरत और फिजियोथैरेपी से भी बहुत आराम मिलता है। इस तरह की तमाम प्रक्रियाओं के बाद भी अगर दर्द की समस्या लगातार बनी रहे तो फिर व्यक्ति के पास एकमात्र विकल्प ही शेष रह जाता है और वह है-ऑपरेशन। ऑपरेशन को लेकर आपको घबराने की जरूरत नहीं है।
नई चिकित्सा पद्धति अर्थात दूरबीन या माइक्रोसर्जरी से किए गए ऑपरेशन के बाद मरीज दूसरे दिन ही घर जा सकता है और दैनिक कार्य कर सकता है। इस चिकित्सा पद्धति में एक छोटा सा ही चीरा लगाना होता है जिससे मरीज को अस्पताल में सिर्फ एक-दो दिन ही रुकना पड़ता है।
साइटिका की प्राकृतिक चिकित्सा :-
गर्म पानी में 15 से 30 मिनट तक रोज पैर रखना ।
आधी बाल्टी पानी उबलने रखें, उसमें 30 - 40 पत्तियां नीम की डाल कर उबालें, उबलते पानी में थोड़ा सा मेथी दाना व काला नमक डालें, अब इसे छान लें, अब इस गर्म पानी को बाल्टी में डालो व कुंकुना (अर्थात जितना गरम सहन कर सके) पानी के अंदर दोनों पैरों को डालकर बैठे हैं व शरीर के चारों और कंबल लपेट लें। कम से कम 10 मिनट तक बैठे, इसके बाद पैर बाहर निकालकर पोछ ले, सप्ताह में एक बार अवश्य करें ।
फिजियोथेरेपी से भी संभव है इलाज :-
रीढ़ की हड्डी का मैनुअल मैनीपुलेशन।
कमर और पूरे टांग की मांसपेशियों के खींचने और उनकी ताकत बढ़ाने वाले व्यायाम।
हैमस्ट्रिंग स्ट्रेचिंग जिसमें सीधा खड़ा होकर अपने पैर के अंगूठों को छूने का प्रयास करें।
कमर की आगे और पीछे झुकाने वाली मांसपेशिओं के व्यायाम।
काइनेसिओ टैपिंग के अंतर्गत मांसपेशियों को एक टेप के साथ जोड़ दिया जाता है, जिससे मांसपेशियों की काम करने की क्षमता बढ़ जाती है।
पोस्चर ट्रेनिंग। सही तरीके से खड़े होने और बैठने का तरीका सिखाया जाता है।
इलेक्ट्रोथेरेपी मशीनों का इस्तेमाल भी काफी फायदेमंद होता है जिसमें नई तकनीक वाली मशीन जैसे माइक्रोवेब डायथर्मी और कॉम्बिनेशन थेरेपी, क्लास 3 और क्लास 4 लेजर का इस्तेमाल होता है, जिससे सूजन और दर्द को कम करने में बहुत मदद मिलती है। कुछ मरीजों में मशीनों के साथ-साथ एक्सरसाइज थेरेपी से बहुत जल्दी आराम मिलता है।
स्पाइनल डी-कंप्रेशन थेरेपी जिसमें रीढ़ की हड्डी के दबाव को मशीन द्वारा खींचकर कम किया जाता है
खाद चिकित्सा द्वारा उपचार :-
250 ग्राम पारिजात के पत्तों को 1 लीटर पानी में उबालें, जब लगभग 700 ग्राम पानी बचे तब उससे छान लें। अब उसमें 1 ग्राम केसर पीसकर डाल दें, ठंडा कर बोतल में भरे। इसको रोजाना 50 50 ग्राम सुबह-शाम लें, यहां उपचार कम से कम 30 दिनों तक लगातार करें, फायदा होगा पानी खत्म हो जाने पर दोबारा बनाएं, पारिजात को हरसिंगार भी कहा जाता है।
100 ग्राम नेगड़ के बीज किराना की दुकान से मंगा पीस ले, 10 पुड़िया बना ले, सुबह सूर्योदय से पहले उठकर कुल्ला कर मुंह साफ करें, अब सूजी या आटे का हलवा शुद्ध घी में बनाएं, जितना हलवा खा सकते हैं उसको अलग निकाले, अब इस हलवे में एक पुड़िया नेगड़ के चूर्ण डालकर खाएं, मुंह धो लें परंतु पानी ना पिए, हो सके तो हलवे में शक्कर की जगह गुण मिलाए, कम से कम 10 दिन तक प्रयोग करें,
अजवाइन 10 ग्राम, सूखा आंवला 20 ग्राम, मेथीदाना 20 ग्राम, व काला नमक 5 ग्राम लेकर पिसे, रोजाना एक-एक चम्मच लें।
प्रतिदिन 2 नग अर्थात कली लहसुन की थोड़ी सी व अदरक खाने के साथ ले
काली मिर्च 5 तवे पर सेक कर सुबह खाली पेट मक्खन के साथ ले,
हरी मेथी, करेला ,लौकी, टिंडे, पालक, बथुआ का सेवन ज्यादा करें ।
फलों में पपीता, अंगूर आदि का सेवन करें।
सूखे मेवे में किशमिश, अंजीर,अखरोट, मुनक्का का सेवन करें।
बालारिष्ट, दशमूलारिष्ट, अश्वगंधारिष्ट, खाने के बाद लें। साथ में अश्वगंधा का चूर्ण, सिंहनाद गुग्गुल, योगराज गुग्गुल दर्द कम करने के लिए लें।
व्यायाम व योग :-
पीठ के बल सीधे लेट जाएं, दोनों पैरों को बिना घुटना मोड़ने ऊपर उठाएं, कम से कम 10 से 20 बार करें।
दोनों पैरों को मोड़कर घुटने पेट से लगा कर नाभि को दबाए ।
सीधे लेट कर घुटने में मोड़ते हुए साइकिल चलाये।
भुजंगासन, वज्रासन, उत्पानपादासन, नौकायन व श्वासन करें ।
परहेज :-
जहां तक हो सके दालों का सेवन नहीं करें, सिर्फ छिलके वाली दाल थोड़ी मात्रा में खाएं, तेल खटाई, मिठाई, दही, अचार, राजमा, छोले आदि का प्रयोग ना करें, तली हुई चीजें बंद कर दें, ठंडे पेय पदार्थ ना ले।
विशेष :-
पांच पत्तियां तुलसी की रोजाना सुबह खाएं, चिंता व क्रोध बिल्कुल ना करें, प्रतिदिन पैरों की सरसों के तेल से नीचे से ऊपर की ओर मालिश करें, इस प्रकार थोड़े से परिश्रम से आप साइटिका के दर्द से मुक्ति पा सकते हैं ।
साइटिका से बचाव –
· साइटिका से बचाव करना हमेशा संभव नहीं हो पाता है क्योंकि यह बीमारी बार-बार उत्पन्न हो सकती है। लेकिन कुछ उपायों के जरिए साइटिका उत्पन्न करने वाले कारकों से बचा जा सकता है।
· नियमित एक्सरसाइज- अपनी कमर और पीठ को मजबूत रखने के लिए प्रतिदिन एक्सरसाइज करना चाहिए। विशेषरूप से पेट की मांसपेशियों और कमर की मांसपेशियों के एक्सरसाइज पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
· सही मुद्रा में बैठना-बैठने के लिए ऐसी सीट का चयन करें जहां पीछे से आपको बेहतर सपोर्ट मिले। अपने सीट के पीछे तकिया या टॉवेल को मोड़कर भी लगाने से पीठ और कमर को सहारा मिलता है और उसका कर्व सामान्य रहता है। बैठते समय अपने कूल्हों और घुटने को सामान्य स्तर पर रखें।
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