बथुआ के औषधि उपयोग
AalGud  (Bathua medicinal Benifits)

बथुए के पौधे को क्षुप कहते हैं, इसका पौधा 4 से 5 फुट तक लंबा हो सकता है, इसके पौधे बहुत ही छोटे छोटे और हरे होते हैं बीच काले रंग के एवं सरसों के बीजों से भी महीन होते हैं, पकने पर बीज  खुद ही जमीन पर गिर जाते हैं एवं संपूर्ण 1 वर्ष तक धरती माता इन्हें अपने गर्भ में सुरक्षित रखे रहती हैं, अनुकूल जलवायु और परिस्थितियां मिलने पर खुद ही उग आते हैं.

नाम प्रथा गुणधर्म

चरक संहिता, सुश्रुत संहिता जो बहुत ही पुरातन चिकित्सा शास्त्र है उनमें बथुए का यथेष्ट उल्लेख मिलता है, आयुर्वेद में बथुआ दो प्रकार का माना गया है, पहला गौड़ वस्तुक जिसके पत्ते कुछ बड़े तथा लालिमा लिए होते हैं, इस प्रकार का बथुआ प्राय: सरसों गेहूं आदि फसलों के खेतों में प्राप्त होते हैं, दूसरा यवशाक है जिसके पत्तों पर लालिमा नहीं होती और ऊपर बताए गए बथुए की तुलना में पत्ते बहुत छोटे होते हैं, इस तरह बथुआ अक्सर जौ के खेतों में मिलता है.

बथुआ को हिंदी और पंजाबी भाषा में इसी नाम से जाना जाता है, बंगला भाषा में बथुआ साग या  चंदन बेटू, गुजराती में चील, मराठी में चाकवात, तमिल में पपुकुरा, इंग्लिश में ऑल गुड, लैट्रिन में चीनोपोडियम एल्बम कहा जाता है, बथुआ का वैज्ञानिक नाम चिनापाउटम है.  

यह हरी पत्तेदार सब्जियों में सर्वाधिक फायदेमंद है, बथुआ पाचन शक्ति को बढ़ाने एवं कब्जियत को दूर करने में अचूक है, रक्त की बढ़ोतरी व शुद्ध करता है, बुखार और उष्णता में इसका प्रयोग बहुत ही कारगर होता है, याददाश्त में वृद्धि करता है, पथरी को तोड़कर बाहर निकालता है, यह बलवीर्य को बढ़ाता है, बथुए का रस बच्चों को सेवन कराने से बहुत लाभकारी सिद्ध होता है, बथुआ आयरन तथा कैल्सियम का भंडार है, इसमें विटामिन सी, कैरोटीन, रिबोफ्लेविन, फोलिक एसिड तथा छार भी पाए जाते हैं, औरतों को आयरन तथा खून बढ़ाने वाली वस्तुओं की ज्यादा जरूरत होती है इसलिए उनके लिए इसका इस्तेमाल खासतौर से फायदेमंद है,  

खनिज लवणों की प्रचुरता से यह हरा साग काया की जीवनीय शक्ति को बढ़ाने में खास लाभकारी होता है इसकी पत्तियों का रस ठंडी तासीर युक्त होने की वजह से बुखार, फेफड़ो एवं आंतों की सूजन में फायदेमंद साबित होता है, इसके गुणों के बारे में भाव प्रकाश में लिखा है दोनों प्रकार के बथुए  स्वादिष्ट, क्षारीय, पाक में कटु, भूख बढ़ाने वाला तथा पाचन शक्ति को बढ़ाने वाला, रुचि कारक, हल्का, शुक्रजनक, बलवर्धक थोड़ा दस्तावर, रक्तपित्त, प्लीहा (तिल्ली) रक्तविकार, कृमि और त्रिदोष (वात पित्त कफ) को दूर करता है, बथुआ के पत्तों का साग, सब्जी की भांति पराठे तैयार कर, भाजी, रायता, या साधारण रूप में प्रयोग किया जाता है .
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बथुआ के औषधि प्रयोग:-  बथुआ चिकित्सा गुणों से भी भरपूर है जिसका निम्नांकित रोगों में उपयोग किया जाता है.

सफेद  दाग :- बथुआ सफेद दाग में बहुत फायदेमंद है, इस व्याधि में बथुए के पत्तों का रस दिन में चार से पांच बार सफेद दागों पर लेप करें या पत्ती को ही दागों के ऊपर मल दिया जाए, इसके साथ-साथ बथुआ की उबली सब्जी बिना नमक के केवल हल्दी धनिया डालकर काफी मात्रा में रोटी के साथ नित्य सेवन करने से दो-तीन माह में सफेद दाग खत्म हो जाते हैं, नमक, तेल, खटाई का परहेज करें.

खून की कमी :- जिस स्त्री पुरुष की काया में खून की कमी (एनीमिया) हो उसे बथुए का साग काफी मात्रा में सेवन कराएं या बथुए की रोटी बनाकर खिलाते रहने से निश्चित फायदा होता है.

सिजेरियन डिलेवरी :- बथुए के 10 ग्राम बीजों को कूटकर 800 लीटर जल में मिलाकर गर्म करें जब आधा रह जाए तब छानकर डिलीवरी के 20 दिन पहले से नित्य पिलाने से बिना ऑपरेशन के बच्चा हो जाता है.

पीलिया  :-  बथुए का साग या सूप खूब प्रयोग करना चाहिए.

 नेत्र रोग :- बथुए का साग मुफीद है यह नेत्रों की लालिमा और सुदूर करता है.

मासिक धर्म  :-  मासिक धर्म की प्रक्रिया सही ढंग से ना होने की अवस्था में बथुआ लाभकारी है, 50 ग्राम बथुआ को एक गिलास पानी में उबालकर छानकर पीते रहे और सब्जी भी खाते रहें इससे मासिक धर्म की खराबी दूर होगी.

जुए या लिख  :-  बथुए की पत्तियों को जल में उबालकर ठंडा कर इस जल से सिर के बाल धोने से जुआ-लीख खत्म हो जाते हैं एवं  बाल मुलायम हो जाते हैं.

कब्जियत  :-  बथुआ आमाशय को ताकत देता है, कब्ज दूर करता है, कुछ सप्ताह प्रतिदिन बथुआ की सब्जी खाने से कब्ज दूर होती है ,शरीर में शक्ति और स्फूर्ति आती है.

उदर क्रमी  :-  बथुए का रस एक कप में स्वाद के अनुसार नमक मिलाकर प्रातः पीते रहने से 1 सप्ताह में उधर क्रमी मर कर बाहर निकल जाते हैं और नए नहीं होते.

तिल्ली या जिगर  :-  जिगर या लीवर और तिल्ली की बीमारी में एक कप बथुआ का रस प्रतिदिन पिए और बथुए की सब्जी (बिना तेल, मिर्च, मसाला और नमक के) खूब खाएं निश्चित लाभ होगा.

त्वचा को चमकदार बनाएं :-  बथुए के रस में मुल्तानी मिट्टी घोलकर लेप बना लें इस लेप को चेहरे पर लेप करें और 15-20 मिनट पश्चात चेहरा धोकर साफ कर लें, इस क्रिया को 21 दिन करने से त्वचा को तमाम जरूरी पोषक तत्व मिल जाते हैं और चेहरे में चमक आ जाती है, साथ-साथ बथुए का साग खाने से भी और शीघ्र लाभ होता है.

फोड़ा :-  बथुए की पत्तियों को कूटकर सोंठ और नमक मिलाकर फोड़े पर प्रतिदिन बांधने से फोड़ा शीघ्र पककर फूट जाएगा या बैठ जाएगा.

मूत्र रोग  :- मूत्राशय, पथरी रोग और गुर्दा की कमजोरी में बथुआ का साग लाभदायक है, रस पीने से पेशाब खुलकर आता है तथा पथरी टूट टूट कर निकल जाती है.

बिवाई :-  बथुआ को उबालकर पीस लें और एड़ियों में 2 घंटे तक लेप लगाएं रखें, फिर साफ कर लें, ऐसा करते रहने से बिवाई ठीक होती है, जलने पर बथुआ की पत्तियों का रस लगाने से बहुत आराम मिलता है, बथुआ पेट की गैस, अपच तथा आंतों की कमजोरी में बहुत लाभकारी है.

बथुआ की सब्जी हमेशा कुकर में उबालकर बिना मिर्च मसाले के और संभव हो तो बिना नमक के खाना चाहिए, कढ़ाई में खूब भूनकर सब्जी बनाने से उसके पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं, बथुआ के पराठे और रोटियां भी बहुत फायदेमंद है 


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