ब्राह्मी के फायदे और नुकसान –

Brahmi Benefits and Side Effects .  


ब्रह्मी भारत की बहुचर्चित और सुप्रसिद्ध वनस्पति है, इसका प्रयोग आयुर्वेदिक औषधियों में अति प्राचीन काल से होता आ रहा है, यह रसायन तथा कल्प के लिए भी प्रयुक्त होती है। देश के र्म भागों में पंजाब से लंका तक, नदियों, नहरों और तालाबों के किनारे तथा अन्य आद्रता भरे स्थानों में 12 महीने पैदा होती है। कश्मीर के पर्वतों में, शिमला के आसपास, बर्फीले क्षेत्रों में प्रचुरता से होती है, बंगाल तथा असम में ब्रह्मपुत्र नदी के किनारों पर यह बहुत पैदा होती है, हिमालय में ऋषिकेश से ऊपर बद्रीनारायण तक प्रचुर मात्रा में मिल जाती है, राजस्थान में जरगा, आबू और सीता माता के पर्वतों में आद्रता वाले स्थानों में भी खूब मिलती है। भारत भर में ब्रह्मी का वितरण हरिद्वार के व्यापारी करते हैं।


ब्रह्मी का पौधा लता के रूप में जमीन पर फैला होता है,  इसका तना एक से 3 फुट तक लंबा होता है, जिसमें थोड़ी थोड़ी दूर पर गाठे  होती है, प्रत्येक गांठ पर से इसकी जड़ें निकलती  हैं जो भूमि में चली जाती हैं और इन्हीं गाठों  पर से शाखाएं और पत्ते निकलते हैं, इसमें बहुत सी शाखाएं होती हैं, जिनकी लंबाई 4 से 12 इंच तक होती है, एक-एक शाखा से कई कई पत्ते एक दूसरे से विपरीत दिशा में होते हैं, तना तथा शाखाएं मुलायम गूदेदार होती है, इसके पत्ते छोटे 1/4  से 1 इंच तक लंबे, 1/10 इंच से 2/ 5 इंच तक चौड़े, लंबोतत्री  आकृति के शीर्ष पर अधिक चौड़े  होते हैं, जिन पर छोटे छोटे काले दाग पड़े होते हैं, पत्तों में डंठल नहीं होते हैं,  फल पत्तों की बगल में से निकले हुए छोटे-छोटे डंठल  पर लगते हैं, फूल सफेद या हल्के नीले रंग के 1/2 से 3/4 इंच तक लंबी और आधा इंच व्यास के होते हैं । इसका फल गोल आकृति का परंतु अग्रभाग नोकदार  लगभग 1/4 इंच लंबा होता है, एक फल में से पीले रंग के चपटे, लंबे-गोल आकृति के कई बीच निकलते हैं। 



विविध नाम - संस्कृत तथा हिंदी – ब्रह्मी, लेटिन -  बकोपा  मोन्नियरी।



गुणधर्म -  ब्रह्मी लघु, तिक्त, कैसेली, मधुर, शीतवीर्य, वृद्धि प्रदायक रसायन, त्रिदोष शामक, स्वर शोधक, हृदय को बल देने वाली, स्मरण वर्धक, स्तन दूध वर्धक, बल प्रदायक, आयुवर्धक तथा उन्माद, हिस्टीरिया, अग्निमांध, अतिसार, कासस्वास  आदि पर उपयोगी एवं रक्तशोधक है । 





ब्रह्मी दिमागी शक्ति बढ़ाने वाली सुप्रसिद्ध वन औषधि है,

किंतु यह वातनाड़ियो और मस्तिष्क को मात्र उत्तेजना नहीं प्रदान करती बल्कि उनको शांति पहुंचाती है।  यह हृदय व मस्तिष्क के साथ-साथ समग्र धातुओं की दुर्बलता एवं अश्कत्ता को दूर करके शरीर के अंग प्रत्यांगों को भी सक्षम, सुदृढ़ और सक्रिय करने में उपयोगी सिद्ध हुई है।  उन्माद और मिर्गी आदि में ब्रह्म अति उपयोगी है। 



औषधि अंश -  ब्रह्मी के फल, पुष्प, डंठल जड़ और फल सभी यानी पंचांग का प्रयोग किया जाता है।  किंतु प्रायः डंठल सहित पत्ते अधिक प्रयोग में आते हैं। इसके पत्तों को तोड़कर पूरा पेड़ अर्थात पंचांग निकालकर छाया में सुखाकर ढक्कन दार पात्र में सुरक्षित रूप से रखना चाहिए, यो  हरि ब्रह्मी का प्रयोग अधिक उपयोगी है, किंतु विधिवत सुखा कर रखी गई ब्रह्मी को  लेना ही पर्याप्त होता है, ब्रहम्मी को हमेशा छाया में ही सुखाना चाहिए, क्योंकि धूप में सुखाने से इस में उपस्थित एक गुणकारी उड़न शील तेल उड़ जाता है, जिसके कारण इसके गुण कम हो जाते हैं इसी कारण से ब्रह्मी का कुछ भी नहीं बनाना चाहिए।



मात्रा -  सुखाया  हुआ चूर्ण  2 से 4 रत्ती, बच्चों को आधा से रत्ती,  ताजी हरी पत्तियां 10 से 15 तक, बच्चों को 2-4 रत्ती तक दी जा सकती है ।  



विशेष - ब्रह्मी के अधिक सेवन से पाचन क्रिया कभी बिगड़ जाती है, और भूख नहीं लगती।  अतः ब्रह्मी के साथ शंखपुष्पी तथा बच मिलाकर प्रयोग करने से एक तो यह दोष नहीं होने पातादूसरे इसके गुणों में महत्वपूर्ण वृद्धि हो जाती है । 



ब्रह्मी के सुप्रसिद्ध शास्त्रीय योग - ब्रह्मी रसायन, ब्रह्मी पाकब्रह्मी बटी, ब्रह्मीघ्रत,  सारस्वतचूर्ण, सरस्वतरिष्ट  आदि । 



प्रयोग तथा उपयोग -

मानसिक बौद्धिक और स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए -

सुखी ब्रह्मी 50 ग्राम सूखी हुई शंखपुष्पी 25 ग्राम, आंवला 25 ग्राम, कालीमिर्च 10 ग्राम को कूट-पीसकर छान लें, अब इसमें मिश्री का चूर्ण 75 ग्राम मिला दे, इसको 5 से 8 ग्राम तक प्रातः काल और शाम को जल से सेवन करें। 



केवल ब्रह्मी का चूर्ण 2 ग्राम, काली मिर्च तीन से चार नग पीसकर मिलाएं और सुबह-शाम इसे खाकर दूध पिए।  



उच्च रक्तचाप -  ब्रह्मी, सर्पगंधा, कूट, जटामांसी, अर्जुन छाल व शंखपुष्पी 20-20 ग्राम तथा बच 10 ग्राम लेकर कूट पीस छानकर चूर्ण बना लें, अब इसमें बीज रहित मुनक्के 75 ग्राम मिलाकर खरल में अच्छी तरह घोटे, हल्का पानी भी मिला सकते हैं, इसी तरह घुटाई होने पर और गोलियां बनाने लायक हो जाने पर मटर से लगभग दोगुनी बड़ी मात्रा में बड़ी-बड़ी गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें, इसकी दो से तीन गोली सुबह शाम दूध या जल से खाना चाहिए। 



इस योग का परहेज  के साथ सेवन करने से बड़ा हुआ रक्तचाप कम होता है, नींद अच्छी आती है, स्वभाव का चिड़चिड़ापन तथा हृदय की धड़कन भी ठीक हो जाती है, इनसे शारीरिक मानसिक शक्ति भी प्राप्त होती है, किंतु उच्च रक्तचाप में नमक ना लें या कम से कम ले।  भारी पदार्थों का सेवन ना करें और स्वास्थ्य के सामान्य नियमों का पालन भी अवश्य करते रहे। 



अनिद्रा रात्रि में बेचैनी -  ब्रह्मी और शंखपुष्पी दोनों सूखी हुई बराबर बराबर लेकर चूर्ण कर लें, इसका 3 से 6 ग्राम तक सुबह-शाम दूध के साथ लेने से अनिद्रा दूर होती है। 



ब्रह्मी की ठंडाई -  यह ठंडाई  शीतल, शांतिदायक, निद्राकर, पौष्टिकमूत्रल तथा धातु वर्धक होती है। 



सुखी ब्रह्मी 3 से 4 ग्राम, बादाम भिगोकर छिले  हुए 3 नग,  खसखस 2 ग्राम, छोटी इलायची 1 नग, काली मिर्च 5 से ग्राम, पानी के साथ खूब महीन पीसकर चीनी व पानी मिलाकर एक या दो गिलास ठंडाई बनाकर प्रातः शाम पिए। 



ब्रह्मी केश तेल -  सुखी ब्रह्मी 100  ग्राम अथवा ताजी ब्रह्मी 150 ग्राम, आंवला, जटा मासीश्वेत चंदन का बुरादा तथा सुगंधवाला 20-20 तोला ले । आंवला, सुगंधवाला और जटामासी को मोटा मोटा कुटे और शाम को इन सब को पानी में भिगोए, प्रातः सिल पर पानी के साथ पीसकर पतला पतला घोल बना लें, अब एक लोहे की बड़ी कढ़ाई में तिल का तेल 1 लीटर डालकर उसी में यह घोल भी मिला दें और मंद आग पर पकाएं, जब जल का अंश समाप्त हो जाए और मात्र तेल बाकी रहे तो उतार कर छान लें और बोतलों में भरकर रख दें चाहे तो इसमें थोड़ा सा कपूर मिला ले।  बस तेल तैयार है इससे मस्तिष्क की खुश्की, कमजोरी, गर्मी दूर होती है बाल बढ़ते हैं और मजबूत होते हैं।



ब्रह्मी केश तेल बनाने की दूसरी विधि यह है - कि उपर्युक्त सभी दवाओं को मोटा-मोटा पीसकर चूर्ण बनाएंकिसी कांच के बर्तन में 1 किलो या लीटर तेल डालकर उसी में इस चूर्ण को मिला दें, अब इस बर्तन को 15 से 20 दिन तक प्रतिदिन धूप में रख दिया करें, फिर छानकर शीशी  में भर ले, चाहे तो कपूर व सुगंध भी मिला सकते हैं, यहां तेल भी उपर्युक्त अनुसार परम उपयोगी है। 



विशेष - पकने पर तेल पर  कुछ गाढ़ा बनता है, जो बड़े लंबे बालों में चिपचिपाहट पैदा कर देता है, इसको पतला भी किया जा सकता है, जब कढ़ाई में तेल पक जाए और एकदम गरम हो तभी उसको नीचे उतार कर उसमें 1 1/2 चम्मच खाने वाला नमक मिला दें और ठंडा होने पर छान लें इससे तेल में चिपचिपाहट नहीं होगी। 



ब्राह्मी शरबत-  ब्रह्मी के पत्ते सूखे हुए 500 ग्राम, अश्वगंधा 100 ग्राम, सुखी शंखपुष्पी 150 ग्राम को थोड़ा कुचलकर 2 लीटर जल में शाम को भिगो दें, सुबह इस को आग पर पकावे, जब पानी जल कर लगभग 1 किलो 500 ग्राम शेष रहे तो उतार लें, अब कुछ ठंडा होने पर इस को मसलकर छान लें, इससे फिर कड़ाई में डालकर आग पर चढ़ावे और 1 किलो 500 ग्राम चीनी डालकर पकावे, एक तार की चाशनी बन जाने पर से उतार लें, शरबत तैयार है, बच्चों को उम्र के अनुसार 2 ग्राम से 10 ग्राम तक, बड़ों को 10 से 20 ग्राम तक, दूध या जल के साथ दें, यह शरबत बुद्धि वर्धक है, मस्तिष्क को शांत रखता है, उन्माद, हिस्टीरिया, मिर्गी जैसे सभी मस्तिष्क रोगों में इसका प्रयोग उत्तम लाभ देता है।  प्रदर व अन्य रोगों में ठीक होने के बाद शक्ति संचय के लिए भी यहां उत्तम पर है,  मस्तिष्क विकारों में प्रयुक्त औषधि योजना में इसे सहयोगी तौर पर शामिल करना निरापद और उपयोगी रहता है । 





याददाश्त बढ़ाने में
ब्राह्मी का सबसे महत्वपूर्ण इस्तेमाल यादाश्त बढ़ाने में किया जाता है. दरअसल ब्राम्ही हमारे स्मृति एकाग्रता और दिमाग को उत्तेजित कर सकती है. ब्राह्मी हमारे संज्ञानात्मक क्षमता को भी बढ़ाती है. और मस्तिष्क में होने वाले हलचलों को शांत करती हैं .



अन्य उपयोग -

1- जिन व्यक्तियों को अनिंद्रा से सम्बन्धित शिकायत रहती है, उन्हे यह प्रयोग करना चाहिए। सोने से 1 घन्टा पूर्व 250 मिली0 गर्म दूध में 1 चम्मच ब्रहमी का चूर्ण मिलाकर नित्य सेंवन करने से रात्रि में नींद अच्छी आती है, तनाव से मुक्ति मिलती है एंव स्मरण शक्ति तेज होती है। 2- जिन बच्चों का पढ़ने में मन नहीं लगता एंव घबराते है। उनको 200 मिली0 गर्म दूध में 1 चम्मच ब्रहमी का चूर्ण नित्य सेंवन कराने से स्मरण शक्ति में वृद्धि होती तथा उनका पढ़ाई में मन भी लगने लगता है।



ब्राह्मी के नुकसान

  • संवेदनशील पेट वाले लोग जिन्हें अल्सर है. या जिन्हें इसका सेवन जो इसका सेवन झेलना पा रहे हो वह घी के साथ प्रयोग कर सकते हैं.
  • ब्राह्मी का इस्तेमाल आवश्यकता से अधिक और बिना आवश्यकता के नहीं करना चाहिए.
  • ब्रह्मी का अधिक मात्रा में सेवन करने से सिरदर्द, घबराहट, खुजली, चक्कर आना और त्वचा का लाल होना, यहां तक कि बेहोशी भी हो सकती है. ब्रह्मी दस्तावर होता है, अतः सेवन में सावधानी बरतें और मात्रा के अनुसार ही सेवन करें, ब्रह्मी के दुष्प्रभाव को मिटाने के लिए सूखे धनिए का प्रयोग कर सकते हैं।
  • ब्राह्मी का इस्तेमाल किसी विशेषज्ञ की सलाह के बाद ही करना चाहिए। 

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