भाँगरा, भृंगराज के फायदे व उपयोग , Bhrangraj Benefits & uses .
भाँगरा बहुप्रसिद्ध वनस्पति है । इसका आयुर्वेदिक दवाओं में तथा घरेलू औषधि के तौर पर व्यापक प्रयोग होता है । लोग इसे केशवर्धक व वालों को काला करने वाली दवा के रूप में अधिक जानते है । इसके पौधे समस्त भारतवर्ष में 6000 फूट की ऊंचाई तक प्राकृतिक रूप सै उत्पन्न होते हैं । जलाशयों के निकट तथा आद्र भूमि में ये पौधे पाए जाते हैं । पानी के स्रोत के निकट बारहों महीने यह उगता है । इसके छोटे-छोटे एक वर्षायु प्रसरणशील पौधे अनेक शाखाओं वाले होते है । शाखाएं सफेद रोम वाली खुरखुरी तथा गांठों पर जड़ युक्त होती है । पत्तियां प्राय अण्डाकार तथा नुकीली होती हैं । उनकी लम्बाई 1 सै 3 इंच तक तथा चौड़ाई 1/4 से ½ इंच तक होती है । पत्तों को मसलने पर हरा एवं कालापन लिए हुए रस निकलता है । इनका स्वाद कडुआ चरपरा-सा होता है एवं हल्की सुगन्ध भी आती है ।
पत्तियाँ कोनो सै निकली हुई छोटी-छोटी श्लाकाओं के अगले भाग पर चक्राकार श्वेत पुष्प होते हैं जिनका व्यास 1/4 सै 1/2 इंच होता है । पुष्प पंखुडियों के झड़ जाने पर वीजों की घुडियां रह जाती हैं, जिनमें नन्हें-नन्हें बीज होते हैं, जिनका रंग काला होता हैं । पुष्प व फ़ल शरद ऋतु में आते हैं । भांगरे की जड 2 सै 6 इंच तक लम्बी तया अनेक उपमूलों से युक्त होती हे ।
रंग भेद के हिसाब से भाँगरा तीन प्रकार का होता है- श्वेत, पीला और काला । किन्तु श्वेत मांगरा ही अधिक उपलब्ध है । यहां इसी का वर्णन किया जा रहा है ।
विविध नाम – संस्कृत - भृ'गराज, केशराज, मार्कव । हिन्दी - भंगरैया, भांगरा, भंगरा। लेटिन- एक्लिप्ता आल्वा ।
संग्रह एवं संरक्षण - यद्यपि इसको सदैव ताजा प्राप्त किया जा सकता है तथापि पंसारी लोग इसै सुखा कर रखते और बेचते हैं । इसको जड़ सहित खोदकर छाया में सुखाकर रखना चाहिए । सीलन और धूप में इसके गुण समाप्त हो जाते है । शीत ऋतु के बाद इसका संग्रह करना ठीक रहता है । यह 4-5 महीने तक खराब नहीं होता है ।
उपयोगी अंग – भांगरे का सदैव पंचांग लेना पाहिए । इसे सदैव छाया मे सुखाना चाहिए ।
मात्रा : - 3 से 6 ग्राम तक, वींज-पत्र से 1 से 3 ग्राम तक ।
गुम-धर्म - भाँगरा उष्णवीर्य, लघु, रुक्ष, कटु एवं तिक्त होता है । यह वायु कफ नाशक, व्रण शोधन तथा रोपण, शारीरिक वेदना नाशक, नेत्रों के लिए हितकर केश रंजक, बालों की जडों को शक्ति देने वाला एवं केशवर्धक है । भांगरे में दीपन पाचन, पित्त विरेचन, यकृत को उत्तेजित करने वाले गुण भी होते है । यह रक्तयर्धक, रक्त शोधक, वल वर्धक, रसायन तथा बाजीकरण भी होता है । इससे आम का पाचन होता, शूल शान्त होता तथा पांडु व कामला में भी उपयोगी है । इसके बीजों में मूत्रल गुण विशैष रहता है ।
कहीं-कहीं इसकी पत्तियों का शाक भी बनाकर खाया जाता है । भा'गरा ही ऐसी वनस्पति है जिसकी पत्तियों में अन्य सब ही हरी वनस्पतियों को अपेक्षा अधिक मात्रा में प्रोटीन होती है ।
शास्त्रीय योग – भ्रंगराज तेल, षडूविन्दु तेल, भृ'गराजादि चूर्ण, भृगराज घ्रत्त सूतशेखर रस , जलोदरादि रस, अश्वकंचुकि रस, भृंगराजासव आदि ।
विविध प्रयोग तथा उपयोग
भृ'गरांज केश तेल - भांगरा रस 2 किलो और तिल का तेल 750 ML मे नीचे लिखी दवाओं की कूट-पीस कर मिलायें - हल्दी, आँवला, हरड़, बहेडा, नागरमोथा, चन्दन सफेद, मुलहठी, सुगन्ध बाला, जटामांसी, मेंहदी 10-10 ग्राम तथा ब्राह्मी 20 ग्राम एवं शंखपुष्पी 20 ग्राम । अब इसी में 1 किलो दुध डालकर पकाएं । जब मात्र तेल बाकी बचे तो उतार छानकर रख लें । यदि इसमें डाली जाने वाली कोई वनस्पति न मिले तो उसे छोड सकते हैं । इसमें मुख्य औषधि भांगरे का रस ही है ।
इस तेल को प्रतिदिन सिर में लगायें । इससे असमय में बात सफेद होना, झड़ना, पतले पद जाना, गंजापन आदि मे भूत लाभ होता है । इससे सिर दर्द पी मिटता है। प्रतिदिन 3-4 मूंद इसका नस्य भी लेते रहना चाहिए।
उच्च रक्तचाप - उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) मे बहुत उपयोगी सिंद्ध हुआ है । हरे भांगरे की पत्तियों को कुचल कर'उनका स्वरस निकाल ले । यह स्वरस 20-20 ग्राम दिन में तीन बार शहद व धी में मिलाकर देना चाहिए । इस औषधि का प्रयोग लगभग तीन सप्ताह तक करके देखना चाहिए । इसके सेवन से प्रथम तीन दिन तक तो ब्लड प्रेशर कम नहीं होता परन्तु अगले सप्ताह से नार्मल हो जाता है । मजे की बात यह है कि नार्मल होने के बाद फिर बढता नहीं । इन रोगियों को पेट अवश्य माफ रखने की सलाह देनी चाहिए । इसके लिए अरण्डी के तेल में भुनी हुई हरड़ रात्रि को गर्म पानी से सेवन कराई जा सकती है ।
कामला रोग - भांगरे का ताजा रस 10 ग्राम, काली मिर्च का चूर्ण 1 ग्राम तथा चीनी 3 ग्राम मिलाकर ऐसी एक -एक मात्रा प्रात-सायं ताजे जल से लेते रहने से कामला रोग 10-15 दिन में ही एकदम ठीक हो जाता है । तली चीजों, भारी पदार्थों, लाल मिर्च, खटाई आदि से परहेज़ रखें ।
उदर विकार - छाया में सुखाया हुआ भांगरे का पंचांग तथा त्रिफला को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण कर लें । सबके बराबर मिश्री पीसकर मिला दें । मात्रा- 5 - 6 ग्राम गर्म जल से लेने रहने से अग्निमांदध, पान्डु, कामला, यकृत विकार, कब्ज, उदर शूल तथा उदरवात आदि अन्य उदर विकार ठीक हो जाते हैं ।
खांसी-श्वास - भांगरे का रस 2-3 चम्मच, मधु 1 चम्मच, अदरख सवरस 5-6 बूद तथा काली मिर्च का चूर्ण 1 चुटकी भर मिलाकर दिनमें 3-4 बार चाटने से हर तरह की खांसी-श्वास में लाभ डोता है । 1/4 से 1 /2 मात्रा में इसे बच्चो को भी दे सकते है ।
भांगरे के बीजों को कूट-छान कर चूर्ण बना ले । मात्रा - 1-2 ग्राम प्रतिदिन रात मे सोने से 2 घंटे पूर्व दूध से ले लिया करें । यह शरीर की बलवान बनाता है एव पौरुष शक्ति वर्धक है ।
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