गोखरू - भारतीय चिकित्सा पद्धति में गोखरू धातु रोगों व मूत्र कष्टों को दूर करने में अत्यंत प्रसिद्ध वनस्पति है . वस्तुतः या दो प्रकार का होता है छोटा गोखरू और बड़ा को करो दोनों के वनस्पति को अलग अलग होने पर भी रंग रूप और गुणों में बहुत कुछ समानता है. 


यहां हम छोटे गोखरू का वर्णन करेंगे तथापि अभाव में उसके स्थान पर बड़े गोखरू का प्रयोग किया जा सकता है।

गोखरू भारत में खासतौर से उत्तरी व दक्षिणी क्षेत्रों में बहुतायत से पाया जाता है । यह मुख्यतः प्रति पड़ी जमीन या उसर तथा बागो आदि में स्वयं ऊग है,  इसके छोटे-छोटे पौधे 1 वर्षीय, जमीन पर फैलने वाले होते हैं,  यह दूर से देखने पर चने के पौधे से लगते हैं, इसका तना व शाखाएं मृदु - श्वेत रोमो वाली होती है, की पत्तियां 2 से 3 इंच तक लंबी, एक जगह 2-2 आमने सामने रहती है ।

इसके फूल छोटे-छोटे हल्के पीले रंग के चक्राकार तथा पांच पंखुड़ी वाले कंटक युक्त होते हैं । यह शरद ऋतु में आते हैं तथा इसके बाद ही फल लगते हैं।  गोखरू का फल गोल, कांटेदार और पंचकोष्टिय होता है । यह लगभग 6 से 10 तक कांटो एवं अनेक बीजो वाला होता है। बोजों में एक प्रकार का हल्का सा सुगंधित तेल होता है ।

गोखरू की जड़, मृदु, रेशेदार, बेलनाकार एवं चार से 5 इंच लंबी बाहर से हल्के भूरे रंग की दिखती है। यह स्वाद में कुछ मिठास लिए हुए कशेली, सुगंध माय होती है



गोखरू के विविध नाम - संस्कृत में गोक्षुर, त्रिकंकट, शवदंष्ट्रा, चणद्रुम, वन श्रृंगार आदि, हिंदी – गोखरू, छोटा गोखरू, गुलखुर आदि,   

लेटिन - त्रिबुलुस टेरेस्ट्रिस । 



उपयोगी अंग - मूल फल एवं पंचांग । चूर्ण बनाने के लिए गोखरू के फल एवं क्वाथ के लिए जुड़ पंचांग काम में लेना चाहिए, फलों का चूर्ण 3 से 5 ग्राम तथाक्वाथ के लिए पंचांग की मात्रा 20 से 40 ग्राम तक है । 


संग्रह एवं संरक्षण - फल पक जाने पर तोड़कर छाया में सुखाये। पंचांग व जड़ भी तभी ले जफल पक जाएं। फल पकने पर दूर से कुछ पीलापन लिए भूरे हो जाते हैं, इन्हें छाया में सुखाकर डिब्बों में बंद करके रखना चाहिए । 



गुणधर्म - गोखरू शीतवीर्य, स्निग्ध, मधुर, वात-पित्त शामक, अमाशय को बल प्रदान करने वाला, क्षुधावर्धक, रसायन, वस्ती शोधन, पौरुष वर्धक, मूत्रल,कफ निस्तारकतथा  वर्धक गर्भ स्थापक है, यह मूत्र क्रच्छ, पथरी, नाड़ी दुर्बलता, वात रोग, नपुंसकता, प्रमेह, कास स्वास, रक्तपित्त, अग्निमाऔर अर्श आदि रोगों में उपयोगी है । 


गोखरू सभी प्रकार के गुर्दे के विकारों में चमत्कारी प्रभाव दिखाता है । इसके सेवन से मूत्र की मात्रा बढ़ती है तथा पथरी भी टूट टूट कर निकल जाती है, प्राइमरी नेफ्रोसिस नामक रोग की स्थिति में यविशेष लाभप्रद है ।

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी तथा जामनगर में हुए प्रयोगों से पता चला है कि गोखरू चूर्ण प्रोस्टेट बढ़ने से मूत्र मार्ग में उत्पन्न अवरोध को समाप्त करता है, उस स्थान विशेष में रक्त के संचय को रोकता है तथा मूत्राशय के द्वारों को उत्तेजित करके मूत्र को निकाल कर बाहर करता है, अधिकांश रोगियों में गोखरू के प्रयोग के बाद ऑपरेशन की आवश्यकता नहीं पड़ती है, वैज्ञानिकों का सुझाव है कि इस कार्य के लिए गोखरू को अकेले ही अर्थात एक औषधि के रूप में उचित अनुपात में दिया जाना ही अधिक प्रभाव कारी रहता है ।


सब प्रकार के मूत्र रोगों जैसे कि प्रोस्टेट ग्रंथि का बढ़ना, मूत्र का रुक रुक कर आना, मूत्र का अपने आप निकल जाना, नपुंसकता, मूत्राशय की पुरानी सूजन इत्यादि में गोखरू 10 ग्राम दूध 250 मिलीलीटर तथा जल 250 मिलीलीटर को पका कर आधा रह जाने पर छानकर चीनी मिलाकर पीने से मूत्र मार्ग की समस्त विकृतियां दूर हो जाती है ।



स्त्रियों के प्रदर रोग में तथा स्त्री जननांगों के सामान्य संक्रमण में गोखरू बहुत लाभकारी है, इन रोगों में गोखरू चूर्ण 15 ग्राम रोजाना घी व मिश्री के साथ देना चाहिए। 




शास्त्री योग - गोक्षुरादि चूर्ण, गोक्षुरादि गुग्गुल, गोक्षुराधव्लेह, दशमूल क्वाथ एवं दशमूलारिष्ट आदि।






विविध प्रयोग एवं उपयोग – 


पथरी - गोखरू 50 ग्राम को मोटा मोटा कूट ले ।  इसको 1 ली॰ पानी में पकावे, आधा पानी जल जाए तो उतार लें, इसको छानकर इसमें यवक्षार 10 ग्राम तथा 40-50 ग्राम चीनी मिलाकर रखें, यहां 4 मात्रा दवा है, चार 4 घंटे बाद एक एक मात्रा खिलाए, कुछ दिनों में ही पथरी गल कर निकल जाएगी ।





धातु दुर्बल - गोखरू तथा सतावर प्रत्येक 200 ग्राम लेकर मोटा-मोटा कूटकर रख ले, लगभग 40 से 50 ग्राम यह चूर्ण 250 मिली लीटर दूध तथा 250 मिलीलीटर पानी मिलाकर उबाले, जब पानी जल जाए और दूध मात्र शेष रहे तो उतार कर छान कर थोड़ी-सी चीनी या शहद मिलाकर सुबह-शाम पिए । 40 दिन के प्रयोग से ही शरीर सबल बन जाता है, धातु दुर्बलता दूर होकर चैतन्यता जाती है ।





स्वप्नदोष -गोखरू फलों का महीन चूर्ण बनाएं, इसके बराबर चीनी पीसकर मिला लें, 2 से 3 ग्राम प्रातः सायं ताजे पानी से लें ।

गोखरू फल तथा असगंध को समान भाग लेकर चूर्ण करें सब के बराबर चीनी मिलाकर रख लें, मात्रा- 2 से 4 ग्राम सुबह-शाम दूध के साथ सेवन कराएं, इससे वीर के दुरुपयोग, हस्तमैथुनादि जन्य वात प्रकोप, दुर्बलता, शिथिलता, खांसी और शरीर की गिरावट आदि में अच्छा लाभ मिलता है ।



गोखरू सत्व - गोखरू फल जो पके हुए और उसी वर्ष के हो 50 ग्राम लेकर मोटा मोटा कूट लें, इन्हें एक बड़ी बोतल में डालकर उसमें 250 ग्राम रेक्टिफाइड स्प्रिट भर दे, इसको कार्क लगाकर 20 दिन तक सुरक्षित रख ले, तीन-चार दिन बाद बोतल को अच्छी तरह हिला दिया करें, अर्क तैयार है ।  मात्रा- 10 से 40 बूंद तक आठ से 10 गुने जल में मिलाकर सुबह-शाम पिलाएं, रोग की उग्रता के मुताबिक दिन में तीन चार बार भी दे सकते हैं, यह एक उत्तम औषधि है जिसे मूत्रक्रच्छ प्रमेह आदि रोगों में दे सकते हैं, इसमें भूख बढ़ जाती है और सौच शुद्ध होने लगता है।

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