मूलहेठी जानकारी, उपयोग,

Mulheti information & drug uses.



मुलेठी - भारतीय औषधि में मुलेठी का नाम उल्लेखनीय है, चरक, सुश्रुत आदि आयुर्वेद ग्रंथों में इसके गुणों का पर्याप्त वर्णन मिलता है, इसकी पैदावार भारत में अब तक नहीं होती थी, दूसरे देशों से इसका आयात होता रहा है, ग्रीस, सीरिया, तुर्किस्तान, मध्य एशिया, अफगानिस्तान आदि में यह अधिक होती है । भारत मे यह अंडमान के टापुओं के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर और पंजाब में भी अब मुलहटी उगाई जाने लगी है । मुलेठी की जड़ों के टुकड़े और सत किराना व्यापारियों आदि के यहां मिल जाते हैं ।



स्वाद में मीठी मुलेठी, कैल्शियम, ग्लिसराइजिक एसिड, एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटीबायोटिक, प्रोटीन और वसा के गुणों से भरपूर होती है. इसका इस्तेमाल नेत्र रोग, मुख रोग, कंठ रोग, उदर रोग, सांस विकार, हृदय रोग, घाव के उपचार के लिए सदियों से किया जा रहा है. यह बात, कफ, पित्त तीनों दोषों को शांत करके कई रोगों के उपचार में रामबाण का काम करती है.



मुलेठी का पौधा कई वर्षों तक रहने वाला होता है । 3 से 5 वर्ष तक के पौधों की जड़े खोदी जाती है। पौधा लगभग 2 से 6 फुट तक ऊंचा होता है, पत्ते  कुछ-कुछ आयताकार ओर नुकीले होते हैं । पत्तियां एक शलाका में 4 से 7 जोड़े तक होती हैं और एक पत्ती आगे होती है, इसके फूल बैगनी रंग के आधे इंच से  कुछ बड़े होते हैं, इनमें छोटी 1 इंच लंबी फलियां आती है, फलियों के अंदर दो से चार बीज होते हैं। इसकी जड़ें लंबी प्राय: छोटी उंगली से लेकर अंगूठे से भी अधिक मोटी होती है, जड़ों का छिलका कुछ-कुछ मटीला, भूरा सा ओर अंदर का भाग पीलापन लिए होता है, यह स्वाद मे मीठी होती है।




विविध नाम – संस्कृत-  मधुयष्टि, यष्टिमधु, मधुआदि,  हिंदी – मुलहठी, मुलेठी, मौरेठी । लेटिन- ग्लीसरीजा ग्लाब्रा ।





उपयोगी अंग मूलहेठी की जड़ें उपयोग में लाई जाती हैं और उसका सत । 





गुणधर्म - यह शीतवीर्य, स्निग्ध, मधुरस, वायु वित्त शोधक, मृदुरेचन, मूत्रल, कफ को ढीला करके निकालने वाली, गले के रोगों में हितकर, चर्म रोगों को दूर करने वाली, स्वर सुधारक, रंग को निखारने वाली, शक्ति प्रदाय, वीर्य वर्धक एवं शुक्र वर्धक और शुक्र गाढ़ा और निर्दोष बनाने वाली है, यह ज्वर जुखाम, स्वर आदि को भी ठीक करती है एवं साधारण रेचक है । 



शास्त्री योग - मधुइष्टयादी चूर्ण, मधुयष्टयादि क्वाथ, मधुयश्त्यादि तेल। 



विविध प्रयोग तथा उपयोग


खांसी श्वास दमा - मुलेठी 20 ग्राम, छोटी पीपल, काकड़ा सिंगी, मीठे अनार का छिलका, यवक्षार 10-10 ग्राम, लोंग 5 ग्राम कूटपीस कर छान लें ।  फिर 10 ग्राम शहद और थोड़ा सा पानी डालकर इसे खरल में घोटकर मटर के बराबर गोलियां बना लें । इन्हें छाया में सुखाकर रख ले । दिन और रात में सात से आठ गोलियां एक-एक करके चूसते रहें । यहां हर प्रकार की खासी श्वास, गले की खराबी, जुकाम के लिए लाभदायक है । 



मुलहटी के टुकड़े धोकर पोछ्कर रख लें। एक-एक टुकड़ा मुंह में डालें और धीरे-धीरे उसका रस चूसे, इससे खांसी, श्वास में बहुत आराम होता है।




मुंह के छाले मुलेठी मूल के टुकड़े में शहद लगाकर चूसते रहने से लाभ होता है. मुलेठी को चूसने से खांसी और कंठ रोग भी दूर होता है. सूखी खांसी में कफ पैदा करने के लिए इसकी 1 चम्मच मात्रा को मधु के साथ दिन में 3 बार चटाना चाहिए. इसका 20-25 मिली क्वाथ प्रात: सायं पीने से श्वास नलिका साफ हो जाती है. मुलेठी को चूसने से हिचकी दूर होती है.




शरबत मुलेठी -मुलेठी 250 ग्राम, शतावरी 150 ग्राम, असगंध 75 ग्राम, सोंठ 50 ग्राम को कूटकर शाम को 4 लीटर पानी में भिगो दें, सुबह इसको पकाएं, जब पानी जल कर लगभग 1 लीटर रह जाए तो इसको तारकर छान लें । अब इस काढ़े में 1 किलो 500 ग्राम चीनी डालकर एक तार की चाशनी बना लें,  यदि चासनी पकते समय एक मटर भर फिटकरी 50 ग्राम जल में घोल कर छीटें मारते रहे तो शरबत अत्यंत साफ व पारदर्शक तैयार होगा, इसे सुरक्षित रखें । बच्चों को आयु के अनुसार ¼ चम्मच से ½ चम्मच तथा बड़ों को 3 से 6 चम्मच तक चटाये । इसे दूध या पानी में मिलाकर भी ले सकते हैं। 


यह शरीर, दिल व दिमाग की शक्ति को बढ़ाने वाला है। साथ ही इससे गहरी  निद्रा भी आती है। बीमारी के बाद पुनः शक्ति संचय के लिए भी उसका सेवन हितकर है। इससे पाचन भी सुधर जाता है, यह प्रदर, प्रमेह, मूत्र विकारों में भी उपयोगी है।




दूध वर्धक योग - मुलेठी चूर्ण 25 ग्राम तथा शतावर 100 ग्राम कूट कर रख लें, प्रतिदिन 20 - 20 ग्राम यह दवा 250 मिलीलीटर दूध और इतने ही जल में उबालें, जब दूध शेष रहने पर छान लें और इच्छा अनुसार चीनी मिलाकर पिए। इस प्रकार यह दोनों समय प्रयोग करने से स्तनों में दूध अच्छी मात्रा में उतरने लगता है। 





मुंह में छाले हो जाने की स्थिति में मुलहठी चूसना, इसके पानी से कुल्ला करना और उसे पीना बहुत जल्दी छालों से राहत देता है। साथ ही मुलहठी आवाज को मधुर और सुरीली बनाने के लिए भी उपयोग की जाती है।




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