पित्त दोष क्या है, असंतुलित होने के लक्षण ओर उपाय।

Acidity, symptoms and prevention.
(एसिडिटी के कारण, लक्षण और बचाव के घरेलू उपाय.)





पित्त के कारण

यदि शरीर में वापहले से ही कुपित हो तो पित्त का प्रकोप बहुत जल्दी और अधिक मात्रा में बढ़ता है, बात यानी वायु और यानी अग्नि । वायु और अग्नि दोनों गहरे मित्र हैं जो एक दूसरे की खूब मदद करते हैं।  

उदाहरण के लिए यू समझो कि यदि हवा अपने सामान्य गति से चल रही है तो वह लाभदायक है। लेकिन हवा आंधी का रूप ले लें यानी सामान्य गति से अधिक गति से चले तो वह विनाशकारी होती है। ऐसे में यदि हवा तेज गति से चल रही हो और कहीं आग लग जाए तो आज बड़ी जल्दी और भयंकर रूप में फैलेगी। इस कारण जो व्यक्ति वायु के प्रकोप से पीड़ित रहते हैं उन्हें पित्त/अग्नि के कुपित करने वाले कारणों से विशेष सावधानी रखनी चाहिए। पित्त निम्नलिखित कारणों से कुपित होता है।

तले हुए तेज मिर्च मसालेदार पदार्थों का अधिक सेवन,

शराब, तंबाकू, मांस, अंडे का सेवन,

एक बार किए गए भोजन के पचने से पहले ही दोबारा भोजन करना,

पानी कम पीना,

तनावपूर्ण जीवन जीना,

कब्ज की शिकायत रहना,

व्यायाम की कमी, अमाशय में पित्त का इकट्ठा होना आदि।




पित्त प्रकोप के लक्षण-

हमारे शरीर में एक सामान्य तापमान की जो गर्मी रहती है वह पित्त/अग्नि के कारण ही रहती है। यह गर्मी शरीर में अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग काम करती है तब सारे शरीर में गर्मी बढ़ जाती है, इससे पेट में अम्लता बढ़ जाती है। अम्लता बढ़ जाने से निम्नलिखित लक्षण शरीर में प्रकट होते हैं।



गले, छाती व पेट में जलन, उल्टी जैसा मन होना या उल्टी होना, सर दर्द होना, पेशाब का रंग पीला होना, खट्टी व तीखी डकारे आना, जीभ पर छाले होना, भूख कम लगना, पेट में भारीपन महसूस होना, गले में अकड़न महसूस होना, आंखों में जलन होना आदि लक्षण प्रकट होते हैं।



उपाय-

एसिडिटी हो जाने पर सबसे पहले पित्त को कुपित करने वाले भोजन पर नियंत्रण करना है, जैसे यदि चूल्हे की आग तेज हो जाए तो उसे कम करने के लिए ईंधन कम कर देते हैं या पानी के छींटे मारकर आग को कम करते हैं, उसी प्रकार पित्त का प्रकोप होने पर आग बढ़ाने वाले पदार्थों की कम कर देना चाहिए।



दिन भर में कम से कम 8 से 10 गिलास पानी जरूर पिएं,

नींबू पानी व शक्कर की मीठी शिकंजी पीना लाभदायक है,

सुबह चाय पीते हैं तो खाली पेट ना पिए पहले बिस्कुट या ब्रेड खाकर फिर चाय पिए,

ठंडा मीठा दूध पिए,

भोजन चबा चबाकर करें बीच में पानी ना पिए भोजन के बाद एक पेठा जरूर खा लिया करें,

तली मसालेदार चीजें ना खाएं,

भोजन में हलके आहार जैसे दलिया, खिचड़ी खाएं अर्थात ताजा व सुपापचय भोजन करें,

क्रोध ईर्ष्या ना करें,

हमेशा खुश रहने की कोशिश करें,

रात को सोने से 2 घंटे पहले भोजन करें, सोते समय मीठा दूध पी पिए।

जहां तक हो सके गर्म तासीर वाले भोजन ना करके शीतल तासीर वाले आहार को शामिल करें।



आयुर्वेद में इसका इलाज संशमन और संशोधन दो प्रकार से किया जाता है। संशमन चिकित्सा में औषधियों का प्रयोग किया जाता है और संशोधन में पंचकर्म द्वारा इसका इलाज किया जाता है। इन सभी औषधियों का प्रयोग बिना चिकित्सक के परामर्श के बिल्कुल नही करना चाहिए।

1. अविपत्तिकर चूर्ण

2. सुतशेखर रस

3. कामदुधा रस

4. मौक्तिक कामदुधा

5. अमलपित्तान्तक रस

6. अग्नितुण्डि वटी

7. फलत्रिकादी क्वाथ पंचकर्म चिकित्सा में इसका इलाज़ वमन चिकित्सा द्वारा किया जाता है जिससे इस रोग से पूर्ण रूप से मुक्ति मिल जाती है

अम्लपित्त या एसिडिटी की समस्या से निपटने के लिए अस्थायी समाधान चुनने के बजाय, बेहतर है कि आप कुछ सरल घरेलू उपचार करें। प्राकृतिक उपचार का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता और इसका अधिक लम्बे समय तक प्रभाव भी रहता है।

·         सौंफ का चूर्ण, मुलेठी का चूर्ण, तुलसी की पत्तियां, और धनिया के बीज, सबको समान मात्रा में मिलाकर चूर्ण तैयार कर लें। इस मिश्रण का आधा चम्मच, आधे चम्मच पिसी मिश्री के साथ दोपहर और रात के खाने से 15 मिनट पहले लें।

·         मिश्री, सौंफ और छोटी इलायची को समान मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लें। जब भी आपको पेट में जलन महसूस हो, इस चूर्ण का एक चम्मच आधा कप ठंडे दूध के साथ लें।

·         सोते समय पानी के साथ ईसबगोल की भूसी 2-3 चम्मच लेने से पेट को साफ रखने में तथा पित्त के विरेचन में मदद मिलती है।

·         दोपहर और रात के खाने के बाद गुड़ का एक छोटा सा टुकड़ा लेकर खाएं। अगर अम्लता रहती है तो इसे दोबारा ले सकते हैं।

·         एक बोतल में 2-3 चम्मच धनिया का पाउडर लें और इसमें एक कप उबला हुआ पानी डालें। रात भर इसको रखा रहने दें। सुबह एक कपड़े से इसे छान लें। इसमें एक चम्मच मिश्री मिलाकर पी लें।

·         1 चम्मच जीरा आधा लीटर पानी में मिलाकर 3-5 मिनट तक उबाल लें। इस पानी को छान कर पी लें। इसे कई दिन लगातार लें।





अम्ल पित्त में प्राकृतिक चिकित्सा

सुबह खाली पेट गजकरनी क्रिया करें, इसके लिए 1 लीटर गुनगुने पानी में आधा चम्मच नमक मिलाकर कड़ू या कागासन में बैठकर पानी जल्दी-जल्दी पी जाए, पूरा 1 लीटर पानी पीना है, ताकि पेट भरा भरा सा लगे, अब बाया हाथ पीछे पीछे कमर पर रखकर 45 डिग्री तक झुके व दाहिने हाथ की तर्जनी या मध्यमा उंगली को गले में डालकर उल्टी करें।  ऐसा तब तक करें जब तक पूरा पानी बाहर ना निकल जाए।  इसमें पूरे पेट की सफाई हो जाती है, वह हाइपरएसिडिटी में फायदा होता है,से सप्ताह में एक-दो बार जरूर करें।



सावधानी-

खाना खाने के बाद कम से कम 3 घंटे तक यह क्रिया ना करें।  

जितना हो सके सुबह खाली पेट कुंजल (गजकरणी) करें, खाने के बाद वज्रासन जरूर करें।



विशेष

कई लोग समझते हैं कि एसिडिटी होने पर नींबू का सेवन नहीं करना चाहिए, सो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि नींबू स्वाद में अम्लीय है लेकिन पाचन में यह क्षारीय तत्व का काम करता है।  

इस प्रकार प्रकृतिक चिकित्सा द्वारा हम हाइपरएसिडिटी का उपचार आसानी से कर सकते हैं।

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