कफ दोष क्या है? असंतुलित कफ से होने वाले रोग, लक्षण और उपाय,

Cough dosh kya hai ? cough se hone vale rog, lakshn, aur upay .  








वात और पित्त के साथ शरीर में कफ का संतुलन सही होना जरूरी है। आयुर्वेद में शरीर को तीन तरह का माना जाता है – वात, पित्त और कफ। आयुर्वेद के अनुसार, हम सभी का शरीर इन तीनों में से किसी एक प्रवृत्ति का होता है, यह दोष शरीर की मजबूती और इम्युनिटी क्षमता बढ़ाने में सहायक है। कफ दोष का शरीर में मुख्य स्थान पेट और छाती हैं।



कफ शरीर को पोषण देने के अलावा बाकी दोनों दोषों (वात और पित्त) को भी नियंत्रित करता है। इसकी कमी होने पर ये दोनों दोष अपने आप ही बढ़ जाते हैं। इसलिए शरीर में कफ का संतुलित अवस्था में रहना बहुत ज़रूरी है। साइनस, फेफड़ों का संक्रमण या कोई बीमारी, साइनोसाइटिस से होने वाले सिरदर्द, बुखार, ब्रोंकियल अस्थमा आदि के कारण भी शरीर में कफ का असंतुलन हो सकता है।





कफ के गुण

कफ भारी, ठंडा, चिकना, मीठा, स्थिर और चिपचिपा होता है। यही इसके स्वाभाविक गुण हैं। इसके अलावा कफ धीमा और गीला होता है। रंगों की बात करें तो कफ का रंग सफ़ेद और स्वाद मीठा होता है। 




कफ दोष के लक्षण
कफ दोष बढ़ने से मुंह में मीठे का स्‍वाद, त्‍वचा का पीला होना, शरीर में ठंडापन, खुजली, पेशाब और पसीने से जुड़ी समस्‍या, बेचैनी, साइनसाइटिस, कोल्‍ड, मुंह और आंख से मोकस सिक्रेशन का बढ़ना, अस्‍थमा, गली की खराश, खांसी ऐसा माना जाता है कि सिर से लेकर छाती के बीच तक के रोग कफ बिगड़ने से होते हैं। इसके अलावा शरीर के अवयवों में स्निग्धता, शीतलता व भारीपन उत्पन्न होना, सूजन, खुजली, भूख कम होना, कब्ज, अतिनिद्रा, मुख का स्वाद मीठा-नमकीन होना, शरीर का वर्ण श्वेत होना, रोगों का दीर्घकाल तक रहना – ये प्रकुपित कफ के लक्षण हैं।





कफ बढ़ने के कारण

मार्च-अप्रैल के महीने में, सुबह के समय, खाना खाने के बाद और छोटे बच्चों में कफ स्वाभाविक रुप से ही बढ़ा हुआ रहता है। इसलिए इन समयों में विशेष ख्याल रखना चाहिए। इसके अलावा खानपान, आदतों और स्वभाव की वजह से भी कफ असंतुलित हो जाता है। आइये जानते हैं कि शरीर में कफ दोष बढ़ने के मुख्य कारण क्या हैं।

·         मीठे, खट्टे और चिकनाई युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन

·         मांस-मछली का अधिक सेवन

·         तिल से बनी चीजें, गन्ना, दूध, नमक का अधिक सेवन

·         फ्रिज का ठंडा पानी पीना

·         आलसी स्वभाव और रोजाना व्यायाम ना करना

·         दूध-दही, घी, तिल-उड़द की खिचड़ी, सिंघाड़ा, नारियल, कद्दू आदि का सेवन





क्या खाएं

सुबह या दिन के भोजन के बाद गुड़ का सेवन फायदेमंद हो सकता है। गुड़ की तासीर गर्म होती है, यह कफ को कम करने के साथ ही पाचन क्रिया को बेहतर बनाता है।



तुलसी, सौंठअदरक और शहद जैसी चीजों का सेवन कफ को कम करने में बहुत फायदेमंद होता है, तो इन्हें किसी भी तरह से डाइट में शामिल करें।



बाजरा, मक्का, गेंहूं, किनोवा ब्राउन राइस ,राई आदि अनाजों का सेवन करें।

सब्जियों में पालक, पत्तागोभी, ब्रोकली, हरी सेम, शिमला मिर्च, मटर, आलू, मूली, चुकंदर आदि का सेवन करें।

तीखे और गर्म खाद्य पदार्थों का सेवन करें।

·         सभी तरह की दालों को अच्छे से पकाकर खाएं।

·         नमक का सेवन कम करें।







प्रकुपित कफ की चिकित्सा

कड़वे, तीखे, कसैले, रूखे, उष्ण व तीक्ष्ण पदार्थों का सेवन। घूमना-फिरना, दौड़ना, तैरना, योगासन, व्यायाम आदि का अभ्यास। आराम का सर्वथा त्याग। उपवास, मर्दन, उबटन, सेंक करना। कफनाशक सभी चिकित्साओं में वमन सर्वश्रेष्ठ है। वामक औषधियाँ सर्वप्रथम आमाशय में जाकर छाती में रहने वाले विकृत मलरूप कफ को मुँह से बाहर निकाल देती है। आमाशय व छाती, जो कफ के मुख्य स्थान है, वहाँ का कफ नष्ट होने से शरीर के विभिन्न भागों में होने वाले कफ के विकार स्वयं शांत हो जाते हैं। वमन के लिए चैत्र मास उत्तम है।

मुलहठी या मुलेठी कफ की ऐसी मीठी दवा है जो कफ से जुड़ी हर समस्या का नाश कर देती है। कफ से गला, नाक, छाती में जलन होने पर मुलहठी को शहद में मिलाकर चाटने से बहुत फायदा होता है। बड़ों के लिए मुलहठी के चूर्ण का इस्तेमाल कर सकते हैं। शिशुओं के लिए मुलहठी के जड़ को पत्थर पर पानी के साथ 6-7 बार घिसकर शहद या दूध में मिलाकर दिया जा सकता है। मुलहठी कफ की दुश्मन है दमा, टीबी एवं आवाज बदल जाना आदि फेफड़ों की बीमारियों में मुलहठी का एक छोटा टुकड़ा मुंह में रखकर चबाने से भी फायदा होता है। खांसी में मुलहठी को शहद में मिलाकर चाटने से बहुत लाभ होता है।











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