अश्वगंधा के फायदे, नुकसान व सेवन की विधि Ashwagandha Benefits. 






अश्वगंधा, असगंध भारत का एक सुप्रसिद्ध औषधिपौधा है, यह देश के गर्म और शुष्क क्षेत्रों में आम तौर से होता है, वर्षा ऋतु में इसके पौधे स्वयं उग जाते हैं और इसकी खेती भी की जाती है ।  इसका पौधा हरा-भरा छतीला और ½  से एक या सवा मीटर की ऊंचाई वाला तथा देखने में अत्यंत आकर्षक होता है। शाखाएं गोलाई लिए हुए और कांटों से रहित एवं उसमें सामान्य रॉम से होते हैं, पत्ते लगभग 3 से 4 इंच तक लंबे और नीचे गोलाई लिए होते हैं, जिनमें रॉम से रहते हैं ।



असगंध के पत्तों का डंठल बहुत ही छोटा होता है, इसमें पत्ते डंठल के स्थान से ही लंबे कवच से आच्छादित लगभग 1 फुट 4 इंच व्यास वाले मटर के समान गोल फल लगते हैं, यह पीली आभा लिए हरे रंग के चिकने होते हैं और पकने पर लाल हो जाते हैं, इन्हें तोड़ने पर लोयब सा निकलता है तथा अंदर सफेद पीलापन लिए हुए कटेरी के समान बहुत से बीज दिखाई पड़ते हैं। असगंध में फूल आने और फल लगने का समय सितंबर-अक्टूबर से लेकर अप्रैल-मई तक होता है।




असगंध की जड़ पतली पेंसिल या उससे भी कम-ज्यादा मोटाई मे काफी लंबी निकलती है। जड़ का ऊपरी रंग पीलापन लिए टीला होता है। तोड़ने पर यह अंदर एसआर सफेद निकलती है। ताजी जड़ से घोड़ेके मूत्र की तरह तेज गंध आती है, इसलिए इसको अश्वगंधा या असगंध खा जाता है, अधिकतर असगंध की जड़ दवाके रूप मे प्रयोग की जाती है, अपने आप मे उगने वाली जंगली असगंध की जड़ मे रेशे अधिक होते हैं, लेकिन खेतों में बोई जाने वाली अश्वगंधा की जड़ में स्टार्च  अधिक होता है।



विभिन्न नाम – असगंध का उपयोग औषधीय और और घरेलू द्व के रूप मे देश के सभी भागो मे  किया जाता है,  इसके क्षेत्रीय नाम भी अनेक है, जैसे संस्कृत – अश्वगंध, पुष्टिदा, बाजीरी, पलासपर्णी, वाराहकर्णी आदि,  हिंदी में अश्वगंधा, असगंध, नागौरी असगंध, असगंधी, घोड़ागांधी आदि लेटिन - विदानिया सोम्निफेरा।




 उपयोगिता और गुण धर्म-



आयुर्वेद के चरक, सुश्रुत और भाव प्रकाश आदि समस्त ग्रंथों में असगंध का वर्णन मिलता है। इनके अनुसार असगंध कसेली, कुछ कड़वी, हल्की, अत्यंत वीर्य वर्धक, शरीर में ज और कांति लाने वाली, एक रसायन गुण प्रदायक है। असगंध शुक्रऔषधि है, रोगों के कारण दुर्बलको शीघ्रता से मिटाती है तथा रोग उत्तर काल में इसके सेवन से प्रति सप्ताह एक से डेढ़ किलो तक भार बढ़ते देखा गया है।  इसके प्रयोग से स्त्री के स्तनों की दुख ग्रंथियां बढ़ कर सक्रिय हो जाती हैं और उनमें दुग्ध उत्पादन बढ़ जाता है। यह भी पता चला है कि समस्त तंत्रिका संस्थान पर असगंध का प्रभाव सामक और बल प्रदायक होता है। यह मूत्रल है ।



स्त्रियों के हिस्टीरिया तथा प्रसव उन्माद में इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए यह इन रोगों में वृद्धि करती है ।

अश्वगंधा मास भेद बढ़ाने वाली तथा रसायन सप्त धातु पोषक है




अश्वगंधा की जड़ों तथा पत्तों में जीवाणु नाशक व बैक्टीरियारोधी गुण बताए गए हैं। इसकी जड़ में एक क्षारीय तत्व पाया जाता है जिसे सोमनीफेरीकहते हैं, इसके अलावा इसमें  विथेनियाल और फाइटोस्टेरोल नामक तत्व उपलब्ध होते हैं। जड़ में स्टार्च के अलावा एक उड़नशील तेल भी मिलता है ।

सामान  मात्रा -  जड़ का चूर्ण 3 से 6 ग्राम तक, बच्चों को एक चौथाई से 1 ग्राम तक ।



शास्त्रीय योग – अश्वगंधारिष्ट, अश्वगंधापाक, अश्वगंधाअवलेह, अश्वगंधाचूर्ण, अश्वगंधाघृत आदि ।





विविध प्रयोग और उपयोग -

सर्व उपयोगी अश्वगंधा रसायन - अश्वगंधा का कपड़छन किया हुआ महीन चूर्ण 150 ग्राम, मुलेठी का महीन चूर्ण 50 ग्राम, सोंठ चूर्ण 25 ग्राम, सत गिलोय 25 ग्राम, सितोपलादि चूर्ण 50 ग्राम, पिसी हुई मिश्री 75 ग्राम, अच्छी तरह मिलाकर शीशी में बंद डब्बे में रख ले, मात्रा बड़ों को दो से तीन चाय के चम्मच भर प्रातः और शाम को एक कप दूध चाय या गर्म जल से मिलाकर पिलाएं, इसको मिलाने से दूध चाय का स्वाद भी अच्छा हो जाता हैबच्चों को चौथाई से आधा चम्मच सुभ-शाम चाय के साथ या उसमें मिलाकर पिलाएं, यह 1 वर्ष से ऊपर की उम्र वाले बच्चों के लिए है।




गुण- यहां चूर्ण शारीरिक मानसिक शक्ति प्रदान करता है, यह तंत्रिका संस्थान को पुष्ट बनाता है, शरीर में रोग अवरोधक शक्ति बनाए रखने में यह रसायन अत्यंत उपयोगी है, यदि मानसिक श्रम करने वाले लोग जैसे छात्र, वकील, डॉक्टर, बुद्धिजीवी लोग प्रतिदिन इससे लेते रहे तो उनके लिए उत्तम धातु वर्धक, व धातु पौष्टिक है । महिलाओं के गर्भाशय और जननांगों पर भी इसका प्रभाव अत्यंत अनुकूल पड़ता है तथा कमजोर बच्चों के शारीरिक विकास में भी सहायता देता है।



पौष्टिक योग - असगंध का कपड़छन महीन चूर्ण 6 ग्राम को देसी घी 5 ग्राम और इससे दुगने शहद में मिलाकर प्रतिदिन रात को दूध के साथ लेते रहने से वीर्य की तरलता मिटती है, वीर्य वृद्धि होती है एवं शरीर में स्फूर्ति बल और चेतन इता आती है।



गर्भधरणार्थ -  गर्भधारण के लिए भी असगंध का सफलतापूर्वक प्रयोग किया जाता है । इसके लिए 12 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण 250 ग्राम दूध तथा 250 ग्राम पानी में उबालें, जब लगभग 250 ग्राम दूध बाकी रहे तो एक चम्मच शुद्ध घी और थोड़ी सी मिश्री मिलाकर सुबह के समय पिए, यह प्रयोग स्त्रियों को मासिक धर्म की समाप्ति के बाद कम से कम 4 से 6 महीने तक करना चाहिए, इसके साथ ही पुरुष को भी यही प्रयोग अथवा किसी भी रूप में असगंध सेवन करना चाहिए, किसी स्त्री पुरुष में यदि किसी को भी कोई रोग है तो उसका इलाज भी अवश्य करा देना चाहिए।



स्तनों में दूध बढ़ाने के लिए सिर्फ असगंध को कूट छन कर रख लें, यहां चूर्ण प्रतिदिन 3 से 6 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सेवन करना चाहिए,

असगंध तथा शतावरी बराबर मात्रा में कूट कर रख लें, इस चूर्ण में से प्रतिदिन 25 ग्राम लेकर 250 ग्राम पानी में पकाएं जब लगभग 100 ग्राम पानी बाकी रहे तो उतार ले, इसको छानकर इसमें से आधी दवा सुबह और आधी शाम को दूध और मिश्री मिलाकर पिए गर्मियों में यहां सुबह शाम अलग-अलग उबालकर बनाना चाहिए, इससे थोड़े ही दिनों में स्तनों में दूध बढ़ जाएगा और शिशु के लिए परम पोस्टिक भी होगा साथ ही उस स्त्री का स्वास्थ्य भी अच्छा बन जाएगा ।






सरल असगंध अवलेह जौकूट की हुई असगंध 1 किलो को 20 किलो पानी में रात को भिगो दें, सवेरे इसको औटाए और जब 2 किलो शेष रह जाए तो मल कर छान लें, इसमें 2 किलो चीनी मिलाकर फिर आग पर पकाएं और जब यह चासनी शहद की तरह गाढ़ी हो जाए तो उतार कर चौड़े मुह की बोतलों से भरकर रख लें, इस अवलेह की मात्रा दो दो चाय के चम्मच सुबह व शाम व्यसको को तथा एक-एक चम्मच बच्चों को दें, इस अवलेह के सेवन से शरीर मोटा ताजा बनता है। सूखाग्रस्त बच्चे जो हा मास के पुतले रह गए हैं वह भी वरिष्ठ और मेघावी हो जाते हैं। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि जहां कहीं असगंध का प्रयोग करना हो वहां यह स्वादिष्ट अगले सेवन कराया जा सकता है।  





इंद्रिय दुर्बलता (लिंग की कमजोरी) दूर करता है अश्‍वगंधा का प्रयोग

असगंधा के चूर्ण को कपड़े से छान कर (कपड़छन चूर्ण) उसमें उतनी ही मात्रा में खांड मिलाकर रख लें। एक चम्मच की मात्रा में लेकर गाय के ताजे दूध के साथ सुबह में भोजन से तीन घंटे पहले सेवन करें।

रात के समय अश्‍वगंधा की जड़े के बारीक चूर्ण को चमेली के तेल में अच्छी तरह से घोंटकर लिंग में लगाने से लिंग की कमजोरी या शिथिलता दूर होती है।

असगंधा, दालचीनी और कूठ को बराबर मात्रा में मिलाकर कूटकर छान लें। इसे गाय के मक्खन में मिलाकर सुबह और शाम शिश्‍न (लिंग) के आगे का भाग छोड़कर शेष लिंग पर लगाएं। थोड़ी देर बाद लिंग को गुनगुने पानी से धो लें। इससे लिंग की कमजोरी या शिथिलता दूर होती है।





अश्वगंधा का गुम गठिया के इलाज के लिए फायदेमंद

2 ग्राम अश्वगंधा पाउडर को सुबह और शाम गर्म दूध या पानी या फिर गाय के घी या शक्‍कर के साथ खाने से गठिया में फायदा होता है।

·         इससे कमर दर्द और नींद न आने की समसया में भी लाभ होता है।

·         असगंधा के 30 ग्राम ताजा पत्तों को, 250 मिलीग्राम पानी में उबाल लें। जब पानी आधा रह जाए तो छानकर पी लें। एक सप्ताह तक पीने से कफ से होने वाले वात तथा गठिया रोग में विशेष लाभ होता है। इसका लेप भी लाभदायक है।



अश्वगंधा के सेवन से दूर होती है शारीरिक कमजोरी



·         2-4 ग्राम अश्‍वगंधा चूर्ण को एक वर्ष तक बताई गई विधि से सेवन करने से शरीर रोग मुक्‍त तथा बलवान हो जाता है।

·         10-10 ग्राम अश्‍वगंधा चूर्ण, तिल व घी लें। इसमें तीन ग्राम शहर मिलाकर जाड़े के दिनों में रोजाना 1-2 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से शरीर मजबूत बनता है।

·         6 ग्राम असगंधा चूर्ण में उतने ही भाग मिश्री और शहद मिला लें। इसमें 10 ग्राम गाय का घी मिलाएं। इस मिश्रण को 2-4 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम शीतकाल में 4 महीने तक सेवन करने से शरीर का पोषण होता है।

·         3 ग्राम असगंधा मूल चूर्ण को पित्त प्रकृति वाला व्‍यक्ति ताजे दूध (कच्चा/धारोष्ण) के साथ सेवन करें। वात प्रकृति वाला शुद्ध तिल के साथ सेवन करें और कफ प्रकृति का व्‍यक्ति गुनगुने जल के साथ एक साल तक सेवन करें। इससे शारीरिक कमोजरी दूर होती है और सभी रोगों से मुक्ति मिलती है।

·         20 ग्राम असगंधा चूर्ण, तिल 40 ग्राम और उड़द 160 ग्राम लें। इन तीनों को महीन पीसकर इसके बड़े बनाकर ताजे-ताजे एक महीने तक सेवन करने से शरीर की दुर्बलता खत्‍म हो जाती है।

·         असगंधा की जड़ और चिरायता को बराबर भाग में लेकर अच्‍छी तरह से कूट कर मिला लें। इस चूर्ण को 2-4 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करने से शरीर की दुर्बलता खत्‍म हो जाती है।

·         एक ग्राम असगंधा चूर्ण में 125 मिग्रा मिश्री डालकर, गुनगुने दूध के साथ सेवन करने से वीर्य विकार दूर होकर वीर्य मजबूत होता है तथा बल बढ़ता है।



अश्वगंधा का सेवन कैसे करें

अश्वगंधा का सही लाभ पाने के लिए अश्वगंधा का सेवन कैसे करें ये पता होना ज़रूरी होता है। अश्वगंधा के सही फायदा पाने और नुकसान से बचने के लिए चिकित्सक के परामर्श के अनुसार सेवन करना चाहिए-

·         जड़ का चूर्ण – 2-4 ग्राम

·         काढ़ा – 10-30 मिलीग्राम

·          

अश्वगंधा से नुकसान

गर्म प्रकृति वाले व्‍यक्ति के लिए अश्‍वगंधा का प्रयोग नुकसानदेह होता है।

अश्‍वगंधा के नुकसानदेह प्रभाव को गोंद, कतीरा एवं घी के सेवन से ठीक किया जाता है।


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