बबूल के फायदे,
नुकसान और औषधीय गुण Babool
ke Fayde, Nuksan aur Aushadhiya Gun.
बबूल या कीकर संपूर्ण भारत में पाया जाता है, इसकी छाल एवं गोंद व्यवसायिक पदार्थ है, छाल फलियां और गोंद औषधीय काम में आते हैं । इसके वृक्ष 10 से 15 फुट ऊंचे मध्यम आकार के कटीले होते हैं, इनका तना भूरे रंग का या कालापन लिए हुए होता है, जिसमें लंबाई की और दो दरारें पड़ी रहती हैं । शाखाएं झुकी हुई एवं गोल होती हैं छोटी-छोटी टहनियां दातुन के लिए प्रसिद्ध हैं, इसकी दातुन शहरों के बाजारों में बिकती हैं, इसके कांटे धूषण वर्णी और लंबे नुकीले होते हैं ।
बबूल के पत्ते इमली पत्र छोटे संयुक्त और 10 से 18 तक के जोड़े में होते हैं । फूल पीले रंग के गोलाकार मुंडो जैसे और गर्मियों में आते हैं, इसकी फलियां 3 से 6 इंच लंबी, लगभग आधा इंच चौड़ी, चपटी, टेढ़ी और खाकी रंग की होती है, इसमें 8 से 12 बीज होते हैं और बीजों के उभार के इधर-उधर दबी दबी रहती है। यह देखने में माला जैसी लगती है।
बबूल के तने पर किंचित लालिमा युक्त श्वेत आभा वाला गोंद निकलता है । अगर तने में कहीं जरा सा काट कर दिया जाए तो वहीं से कुछ दिनों में गोंद निकलने लगेगा । यह नए वृक्षों में और गर्मियों में अधिक निकलता है।
विविध नाम –
संस्कृत - बब्बूल, युग्म कंटक, हिंदी- बबूल, कीकर, किक्कर, झारकर, झारकत आदि। लेटिन-एकेशिया अरेबिका, मिमोसा अरेबिका, अकेशिया फेरुगिनी, अकेसिया सेनेगाल।
उपयोगी अंग - छाल फल गोंद और पत्ते।
सामान्य मात्रा- गोंद 3 से 6 ग्राम, छाल क्वाथ के लिए 5 से 10 ग्राम, फलियों का चूर्ण 3 से 6 ग्राम तक, पत्तों का चूर्ण 2 से 5 ग्राम।
संग्रह और संरक्षण- पुराने वृक्ष की छाल अधिक उपयुक्त होती है, छाल शुष्क करके रखें अर्थात सुखाकर रखें , कलियां कच्ची ही विशेष गुणकारी होती है उन्हें कच्ची ही तोड़कर छाया में सुखाकर बंद डिब्बों में रखना चाहिए, गोंद भी सुखाकर ही रखना चाहिए, फलियां 1 वर्ष तक, छाल 2 वर्ष तक गुण युक्त बने रहते हैं, तथापि गोंद यदि सुरक्षित रूप में रखा जाता है तो कई वर्षों तक गुणकारी बना रहता है।
बबूल छोटे-बड़े के अनुसार दो किस्म का होता है
इनके रूप आकार प्रकार में थोड़ा फर्क होने पर भी गुणों में समानता होती है यहां बड़े आकार वाले बबूल का वर्णन प्रस्तुत है
गुणधर्म
यहां शीतवीर्य, गुरु, रुक्ष व मधुर कषाय, रस वाला होता है । बबूल कफ पित्त शामक , दहा शामक वर्णरूपेण , संकोचक , रक्तशोधक, स्तंभन, गर्भाशयशोथ, एवं गर्भाशय स्राव को ठीक करने वाला विषधन होता है । इसकी गोंद ग्राही, मूत्र जनन, शक्तिवर्धक , पुरुष प्रदायक होता है
इसकी छाल और फलियों में टैनिन बहुत पाया जाता है, गोंद में अरेबेरिक एसिड, किंचित मौलिक एसिड, कैल्शियम मैग्नीशियम पोटेशियम शर्करा व कुछ और आदि तत्व रहते हैं।
शास्त्रीय योग - बाबूलरिष्ट, लवंगादि बटी, दबाए जरयान, कोहना अककिया ।
विविध प्रयोग व उपयोग
कोकर चूर्ण - बबूल की कोमल कच्ची निर्जीव सुखी फलियों का चूर्ण घी में भूनकर बबूल के गोंद का महीन चूर्ण तथा बबूल की कोमल पत्तियों को सुखाकर बनाया हुआ चूर्ण बराबर मात्रा में अच्छी तरह मिलाकर रख लें मात्रा 4 से 6 ग्राम तक प्राय आसाम दूधिया जल के साथ दें
यह अत्यंत उपयोगी चूर्ण है यह प्रमेह , स्वप्नदोष , वीर्य विकार ,श्वेत रक्त प्रदर व मधुमेह आश्चर्यजनक लाभ होता है
बबूल की हरी पत्तियों को सिल पर पीसकर रस निकाल लें , यह रस 20 ग्राम होना चाहिए इसमें जरा सा शहद मिलाकर खूनी दस्तों के रोगी को दो या तीन बार पिलाने से तुरंत लाभ होता है
उत्तम मंजन - बबूल की लकड़ी को कोयला पिसा हुआ 250 ग्राम, फिटकरी का फूला 10 ग्राम, सेंधा नमक पिसा हुआ 10 ग्राम तथा कपूर 2 ग्राम को एक साथ मिलाएं तथा खूब अच्छी तरह पीसकर बारीक कपड़े में रखकर सीसी में बंद करके रखें , यह मंजन उंगली या ब्रश से प्रातः शाम दातों पर मलें, इससे दांत साफ मजबूत बने रहते हैं, मसूड़ों का ढीलापन, रक्त आना, पायरिया, दर्द रहना आदि में लाभ होता है
पलकों के बाल झड़ना - बबूल की कच्ची पत्तियों को धोकर साफ हाथों या उंगलियों से मसले, इससे एक प्रकार का लिसलिसा द्रव प्राप्त होता है, बस उस द्रव को पलकों पर लगाएं कुछ दिन लगातार कम से कम 4 बार इस तरह प्रयोग करते रहने से पलकों पर नए बाल निकलने लगते हैं।
वीर्य रोग (धातु रोग) में बबूल का औषधीय गुण लाभदायक
बबूल की फली को छाया में सुखाकर पीस लें। बराबर मात्रा में मिश्री मिला लें। एक चम्मच की मात्रा में सुबह और शाम रोज पानी के साथ लें। इससे वीर्य के विकार ठीक
होते हैं।
- बबूल के गोंद को घी में तलें। इसको खाने से पुरुषों का वीर्य बढ़ता है।
- बबूल के गोंद के फायदे से पुरुषों के यौन संबंधी समस्याओं को ठीक किया जा सकता है।
- 2 ग्राम बबूल के पत्ते में 1 ग्राम जीरा तथा चीनी मिलाएं। इसे 100 मिली दूध में मिलाकर सेवन करें। इससे शुक्राणु संबंधित रोगों में लाभ होता है।
बबूल के साइड इफेक्ट
बबूल के
अधिक सेवन से स्तन से संबंधित रोग होता है। अधिक मात्रा में इसके निर्यास का
प्रयोग करने से गुदा रोग होता है।
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